शिमला:
राज्य में कमर्शियल वाहनों में व्हीकल लोकेशन ट्रैकिंग डिवाइस लगाने का मामला हाईकोर्ट चला गया है। राज्य सरकार और परिवहन विभाग के खिलाफ ये केस इस डिवाइस की निर्माता 17 कंपनियों ने किया है। इनका आरोप है कि परिवहन विभाग ने केवल 5 कंपनियों को फायदा देने के लिए इंपैनलमेंट प्रक्रिया को बीच रास्ते में ही गलत तरीके से रोक दिया, जबकि विभाग ने खुद ये हल्फनामा दिया हुआ था कि इंपैनलमेंट प्रक्रिया पूरी करने वाली कंपनियों को जल्द अनुमति दे दी जाएगी।
मैसर्ज स्मार्ट मोबिलिटी एसोसिएशन की ओर से दायर इस केस में जस्टिस ज्योत्सा रिवाल दुआ ने अब परिवहन सचिव से जवाब मांगा है और शुक्रवार 7 फरवरी को अब मामले की सुनवाई होनी है। इससे पहले संबंधित केस में ही परिवहन विभाग ने खुद कहा था कि इंपैनलमेंट एक नियमित प्रक्रिया है और इसे अचानक नहीं रोका जाएगा।
अब ऐसा लग रहा है कि चहेती कंपनियों को लाभ देने के लिए पहले इस प्रक्रिया को लेट किया गया और अब टाला जा रहा है।
इसी कारण इस डिवाइस की निर्माता वे सभी कंपनियां कोर्ट गई हैं, जिनकी इंपैनलमेंट के लिए विभागीय प्रक्रिया पूरी हो गई है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट और भारत सरकार के सड़क परिवहन मंत्रालय के निर्देश पर प्रदेश में भी सभी कमर्शियल वाहनों पर अब व्हीकल लोकेशन ट्रेकिंग डिवाइस लगाना जरूरी है। इस डिवाइस को लगाने का मकसद सड़क सुरक्षा को बढ़ाना था और इस डिवाइस से मिलने वाले डाटा का इस्तेमाल भी रोड से$फटी और अन्य जरूरतों के लिये किया जाना है। लेकिन हिमाचल में इस इंपैनलमेंट प्रक्रिया को बीच में रोके जाने के कारण अब विवाद हो गया है।
ट्रांसपोर्टर लुट रहे हैं विभाग की गलती से
केंद्र सरकार ने राज्य के परिवहन विभाग को कहा था कि राज्य केवल ये डिवाइस लगाने वाली कंपनियों को अपने नियमों के अनुसार इंपैनल करेंगे। ये वाहन मालिक पर होगा कि वे किस कंपनी का डिवाइस लगाते हैं? ये इसलिए किया गया था ताकि इस डिवाइस के लिए प्रतियोगिता बढ़े और वाहन मालिकों को कम रेट पर ये उपलब्ध हो।
लेकिन चुनिंदा पांच कंपनियों को ही अनुमति देने से अब 8 हजार का डिवाइस 15 से 20 हजार में लगाया जा रहा है और ट्रांसपोर्टर भी परेशान हैं। दूसरी दिक्कत ये आ रही है कि लाइन फिटिंग वाली गाडिय़ां जिनमें इन बिल्ट ये लगा हो, वो यहां रजिस्टर नहीं हो पा रही हैं, क्योंकि उनकी कंपनियों को इंपैनल नहीं किया जा रहा है।