शैलेश सैनी। नाहन
2022 के विधानसभा चुनावों में सत्तााधारी भाजपा सरकार के लिए नाहन का आर्मी-सिविलियन विवाद गले की फांस बनेगा। जबकि यदि प्रदेश में 2017 के चुनाव के बाद पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की सरकार बनती तो यह समस्या कभी की हल हो जाती।
करीब दस हजार से अधिक लोगों से जुड़ी इस बड़ी समस्या को लेकर आर्मी-सिविलियन विवाद को लेकर बनाई गई संघर्ष समिति अजय सोलंकी के नेतृत्व में वीरभद्र सिंह से मिली थी। हालांकि वीरभद्र सिंह इस बड़े मुद्दे को लेकर लंबे अरसे से समस्या के समाधान के विकल्प तलाश रहे थे। मगर 2016-2017 में जाकर इस मुद्दे पर चंडीगढ़ के चंडीमंदिर आर्मी के साथ हुई बैठक में पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह खुद हुए शरीक हुए थे।
इसके बाद इस प्रदेश के इसी प्रकार के 19 मुद्दों पर ज्वाइंट कमेटी का गठन किया गया, जिसमें यह तय किया गया था कि जितनी जमीन नाहन में विवादित है, उतनी जमीन आर्मी को सरकार के द्वारा दी जाएगी। इसके बाद 105 एकड़ के आसपास जमीन चयनित भी की गई। जिस पर वेस्टन कमांड के द्वारा सहमति भी हो गई थी।
क्या है पूरा मामला
नाहन की आबादी का एक बहुत बड़ा क्षेत्र कैंट एरिया में आता है। इस क्षेत्र में सैंकड़ों ऐसे परिवार हैं, जो आजादी के पहले से यहां रह रहे थे। 1987 से पहले एचपी टैनेंसी एंड लेंड रिफार्मर्स एक्ट 1972 के सैक्शन 4 का सब सैक्शन 9 उस समय नहीं था। 1978 में जब इस जमीन का इंतकाल हुआ तो जमीन प्रदेश सरकार से आर्मी को ट्रांसफर की जानी थी।
इस जमीन के कुछ हिस्से पर काफी लोग रह रहे थे, जिन्हें मुजारे कहा गया। चूंकि एक्ट के अनुसार 1978 में ही इन मुजारों को जमीन का मालिक बना दिया जाना चाहिए था, मगर उस दौरान प्रदेश के राजस्व विभाग द्वारा एक बड़ी गलती की गई और इन मुजारों को एक्ट से हटकर अनावश्यक रूप से खारिज कर दिया गया।
इस मुद्दे पर संघर्ष समिति के द्वारा और वरिष्ठ अधिवक्ता विरेंद्र पाल शर्मा के द्वारा नाहन में पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को अवगत भी करवाया गया। वीरभद्र सिंह ने इस पर अंतिम निर्णय लेते हुए समस्या का समाधान करने का पूर्ण आश्वासन भी दिया। वीरभद्र सिंह ने इस मुद्दे पर राजस्व विभाग को फटकार भी लगाई थी। क्योंकि जो मुजारे थे उनका माल महकमा द्वारा बगैर एक्ट का समझे हुए उन्हें एनक्र्रोचर दिखाया गया था। यहां यह भी याद दिला दें कि 1987 में जब 104 का सब रूल 9 लागू हुआ तो 1988 में यह जमीन राजस्व विभाग द्वारा यह जमीन आर्मी को टांसफर कर दी।
वीरभद्र सिंह द्वारा इस पर ली गई लीगन ओपिनियन के बाद उन्होंने नाहन सर्किट हाउस में डेपूटेशन के दौरान उन्होंने खुद कहा था कि यह सब गलत हुआ है। मगर सरकार लोगों को उनक हक दिलवाएगी। जिसके बाद जमीन का भी चयन हो गया। करीब 90 फीसदी काम सिरे चढ़ जाने के बाद सरकार और वैस्टन कमांड की ओर से दो बड़े उच्चाधिकारियों ने केवल लेंड हैंड ओवर की फाइल दस्तक करने थे। इसी दौरान 2017 में वीरभद्र सरकार चुनाव हार गई और प्रदेश मं भाजपा सरकार जोकि डबल इंजन की सरकार थी इस वायदे को भूल गई।
नाहन के मौजूदा विधायक द्वारा उस दौरान पीडि़त लोगों को आश्वासन दिलाया गया था कि यदि वे जीत कर आते हैं और प्रदेश में भाजपा सरकार बनती है तो उनकी प्राथमिकता आर्मी-सिविलियन विवाद को हल करवाने की होगी। इस मुद्दे के सबसे बड़े पैरोकार दुनिया को अलविदा कह गए हैं, मगर आज इस मुद्दे से जुड़े करीब दस हजार लोग पूर्व मुख्यमंत्री को याद करते हुए एक ही बात कहते हैं हमने यह बड़ी गलती 2017 में की थी।