हिमाचल दस्तक : विजय कुमार : संपादकीय : देश में ग्रीन दिवाली मनाने की बातें दशकों से की जा रही हैं, मगर अभी यह सपना ही लगती है। दिवाली पर करोड़ों रुपये के पटाखे जलाने का सिलसिला कई सालों से जारी है। कुछ दशकों से देश में ग्रीन दिवाली मनाने की बातें की जा रही हैं। कई संस्थाएं इसके लिए अभियान चलाती हैं।
छात्र स्कूलों और शिक्षण संस्थानों में ग्रीन दिवाली मनाने की शपथ लेते हैं। ऐसे विभिन्न कार्यक्रमों में वक्ता लंबे-लंबे भाषण देते हैं। इस सबसे हर साल लगने लगता है कि इस बार ग्रीन दिवाली मनाई जाएगी। मगर दिवाली की रात आते-आते सारी शपथ और इरादे धराशयी हो जाते हैं। और तो और प्रशासन द्वारा आतिशबाजी नियंत्रित करने एवं प्रदूषण घटाने को लेकर लगाए गए प्रतिबंधों का भी कोई ध्यान नहीं रहता है। फिर शुरू होती है देखा-देखी, एक-दूसरे से ज्यादा पटाखे करने की होड़। इस कड़ी में देखते ही देखते चंद घंटों में करोड़ों के पटाखों को आग लगा दी जाती है। इस धनराशि से किसी भला नहीं होता है।
इससे नुकसान ही मानव जाति को उठाने पड़ते हैं। कई बार तो पटाखों से लोग अपाहिज तक हो जाते हैं। कई बार तो पटाखों के कारण भीषण अग्रिकांड तक हो जाते हैं। इनसे जान और लाखों की संपत्ति की हानि भी होती है। पटाखों का सबसे बड़ा नुकसान वायु प्रदूषण के रूप में होता है। वातारण इतना दूषित हो जाता है कि सांस लेना तक मुश्किल हो जाती है। यह वायु प्रदूषण कई लोगों को धीमी मौत देता है। सांस के रोगियों की दिक्कतें और बढ़ जाती हैं।
दिल्ली जैसे शहरों में तो दिवाली की रात और इसके एक-दो दिन तक खतरनाक धुएं के गुब्बार हवा फैल जाते हैं। ऐसे माहौल में सांस लेना मुश्किल हो जाता है। यहां तो प्रदूषण की समस्या आम है। उस पर दिवाली की आतिशबाजी आग में घी का काम करती है। हर बार अदालतों के आदशों की अनुपालना के लिए प्रशासन एडवाजरी और कुछ प्रतिबंंध लगा देता है। मगर इन पर कितना अमल हुआ या नहीं हुआ, इस बारे में कोई ध्यान नहीं दिया जाता है। यही वजह है कि दिवाली पर आतिशबाजी का दौर नहीं थमता है। अब समय आ गया है कि ग्रीन दिवाली मनाने की शुरुआत की जाए। मगर यह तभी संभव होगा, जब प्रशासन सख्त और लोग जागरूक होंगे।