हिमाचल दस्तक : विजय कुमार : संपादकीय : प्रदेश में आये दिन जातीय भेदभाव के मामले सामने आने से यह साफ हो गया है कि यहां के लोग इस बुराई से दूर नहीं हो पाए हैं। कुल्लू और मंडी जिला जातीय भेदभाव के मामलों में काफी आगे है। शिमला जिले से भी इस तरह की शिकायतें सामने आती रहती हैं। प्रदेश के अन्य जिलों में इस बुराई का ज्यादा प्रभाव नहीं है।
हालांकि हमारे संविधान में सभी तरह के भेदभाव पर पूर्णतया रोक की व्यवस्था की गई है, मगर लोगों की मानसिकता नहीं बदल पाई है। पूर्ण साक्षर प्रदेश होने के दावे करने वाले हिमाचल में जातीय भेदभाव के मामले सामने आना बेहद शर्मनाक है। इसका बड़ा कारण जागरूकता का अभाव है। रही-सही कसर नेताओं की बांटने की राजनीति पूरी कर देती है। इस बुराई का दंश बेगुनाह लोगों को झेलना पड़ता है। मासूम बच्चे भी इससे अछूते नहीं हैं। उन्हें भी समाज के ठेकेदारों की बर्बरता का शिकार होना पड़ता है। कई बार उन्हें अपने सार्थियों के साथ खेलने और खाने से भी वंचित कर दिया जाता है।
समाज तो समाज, स्कूलों में भी इस तरह का भेदभाव उन्हें सहन करना पड़ता है। स्कूलों में बैठने, खेलने और तो और, मिड-डे मील के लिए जाति के हिसाब से व्यवस्था कर दी जाती है। शिक्षक जिन पर राष्ट्र निर्माण का जिम्मा होता है, वे भी इन मामलों में कुछ नहीं बोलते हैं। कई बार तो वे भी समाज के ठेकेदारों का साथ देते हैं। ऐसे में स्थिति और भी शर्मनाक हो जाती है।
ताजा मामला मंडी जिले से सामने आया है। यहां खेल प्रतियोगिता के दौरान जातीय भेदभाव हुआ। हाईकोर्ट ने इस मसले पर स्वत: संज्ञान लिया है। कोर्ट ने दो सप्ताह में सरकार से इस बारे में जवाब मांगा है। अब समय आ गया है कि ऐसे मामलों में कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाए, ताकि प्रदेश को बार-बार शर्मिंदगी न झेलनी पड़े।