राजीव भनोट, ऊना।
इंसान के बुरे कर्म ही इंसान को डराते हैं, अगर अच्छे कर्म किए हो तो इंसान में आत्मविश्वास बढ़ता है। यह बात उत्तर भारत के प्रसिद्व धार्मिल स्थल श्री राधाकृष्ण मंदिर में चल रहे वार्षिक महासम्मलेन के तीसरे दिन महामंडलेश्वर गीता मनीषी स्वामी श्री ज्ञानानंद महाराज ने कही।
कथा को आगे बढ़ाते हुए ज्ञानानंद महाराज ने कहा कि बुरो कर्मों वालो को डर लगता है, जबकि अच्छे कर्मों वाले निडर होकर जीवन व्यतीत करते हैं। इससे पहले राष्ट्रीय संत बाबा बाल जी महाराज ने सैकड़ों की तादाद में भक्तों ने आशीर्वाद दिया। स्वामी श्री ज्ञानानंद महाराज ने कथा की शुरूआत चाहे राम हो चाहे श्याम हो तेरे चरणों मे मेरा प्रणाम हो से की। इसके बाद महाराज ने मेरी जिंदगी में तेरा ही सहारा, मेरा श्याम आया सहित अन्य भजन गाकर श्रद्धालुओं को झूमने पर विवश कर दिया।
कथा को आगे बढ़ाते हुए गीता मनीषी महामंडलेश्वर स्वामी ज्ञानानंद महाराज श्रद्धालुओं को गीता ज्ञान गंगा में डुबकी लगवाएंगे। उन्होंने कहा कि गीता ज्ञान से चिंताओं से मुक्ति मिलती है। उन्होंने कहा कि मनुष्य को अपने कर्मों का फल भुगतना पड़ता है। भागय में अगर कुछ न लिखा हो, तो कुछ नहीं मिलता। उन्होंने कहा कि सत्ता में सत्य बोलना आसान नहीं है। संजय भी श्रृतराष्ट्र को सच से अवगत करवाया था, न कि चाटुकारिता की थी। उन्होंने कहा कि आशा की किरण गीता है, जो बुराईयों से अच्छाई की ओर ले जाती है।
उन्होंने कहा कि जाति, धर्म, रंग रूप का भेद इंसान ने धरती पर खुद ही बनाया है। भगवान श्री कृष्ण के द्वारा कही वाणी में सभी इंसान एक समान है। जीवन में दो मार्ग अच्छाई और बुराई वाले हैं। मगर इंसान को अपना मार्ग खुद चुनना पड़ता है। भगवत गीता में अर्जुन और दुर्योधन दो अलग-अलग नीतियों के मानने वाले हैं। अर्जुन भगवान श्री कृष्ण में अपार श्रद्धा रखते हैं। उसकी अटूट विश्वास में उन्होंने अपना सब कुछ भगवान पर छोड़ रखा है।
मगर दूसरी और दुर्योधन भगवान कृष्ण का विरोधी है। जो भौतिकवाद तक सोच रखने वाला केवल शरीर के सुख तक की सोचता है, लेकिन अर्जुन अध्यात्मिक सोच रखने वाला है। पहले वह भगवान को समर्पित करता है। उन्होंने कहा कि भगवान का सहारा जिसने जीवन में लिया वह दिक्कतों से पार पा गया। रावण के पास बल, विद्या सब कुछ था, मगर राम न थे। सभी परिस्थितियों में भगवान को याद जरूर रखना चाहिए।
परोपकारी होता है प्रभु को प्रिया: बाबा बाल
संत बाबा बाल जी महाराज ने कहा कि दुनिया में परोपकार करने वाला व्यक्ति हमेशा प्रभु को प्रिय होता है। उन्होंने कहा कि यदि प्रभु की इच्छा न हो तो सत्संग में हिस्सा नहीं लिया जा सकता। बाबा बाल जी महाराज ने कहा कि वर्तमान समय में दौड़ धूप पैसा कमाने की हौड़ में नैतिकता व धर्म के मार्ग को पीछे छोड़ा जा रहा है। संत बाबा बाल ने कहा कि संत वैर विरोध का भाव न रखकर दया का भाव रखते हैं और सदैव दयालू स्वभाव के कारण श्रद्धालुओं की इच्छा पूर्ण करते हैं।