सुप्रीम कोर्ट ने रामलला को ही विवादित जमीन का असल मालिक माना है। यह रामलला न तो कोई संस्था हैं और न ही कोई ट्रस्ट। यह भगवान राम के बाल स्वरूप हैं।
2010 के फैसले में भी था रामलला का हिस्सा
30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अयोध्या के विवादित स्थल को राम जन्मभूमि करार दिया था। हाईकोर्ट ने 2.77 एकड़ जमीन का बंटवारा कर दिया था। कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच जमीन बराबर बांटने का आदेश दिया था।
मुकदमे में हुई थी विशाल मंदिर की बात
इस मुकदमे में पहली बार कहा गया था कि राम जन्म भूमि न्यास इस स्थान पर एक विशाल मंदिर बनाना चाहता है। इस दावे में राम जन्म भूमि न्यास को भी प्रतिवादी बनाया गया था। अशोक सिंघल इस न्यास के मुख्य पदाधिकारी थे। इस तरह पहली बार विश्व हिंदू परिषद भी परोक्ष रूप से पक्षकार बना।
बाबर का किया गया था उल्लेख
इस मुकदमे में मुख्य तौर पर इस बात का उल्लेख किया गया था कि बाबर ने एक पुराना राम मंदिर तोड़कर वहां एक मस्जिद बनवाई थी। दावे के समर्थन में अनेक इतिहासकारों, सरकारी गजेटियर्स और पुरातात्विक साक्ष्यों का हवाला भी दिया गया था।
1 जुलाई, 1989 को कहा गया-राम इस संपत्ति के मालिक
1989 के आम चुनाव से पहले विश्व हिंदू परिषद के एक नेता और रिटायर्ड जज देवकी नंदन अग्रवाल ने 1 जुलाई को भगवान राम के मित्र के रूप में पांचवां दावा फैजाबाद की अदालत में दायर किया था। इस दावे में स्वीकार किया गया था कि 23 दिसंबर, 1949 को राम चबूतरे की मूर्तियां मस्जिद के अंदर रखी गई थीं। इसके साथ ही यह स्पष्ट दावा किया गया कि जन्म स्थान और भगवान राम दोनों पूज्य हैं और वही इस संपत्ति के मालिक भी हैं।
नरसिम्हा राव की किताब में है पूरी घटना का जिक्र
पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने अपनी किताब अयोध्या: 6 दिसंबर 1992 में उस एफआईआर का ब्यौरा दिया है, जो 23 दिसंबर, 1949 की सुबह लिखी गई थी। एसएचओ रामदेव दुबे ने भारतीय दंड संहिता की धारा 147/448/295 के तहत एफआईआर दर्ज की थी। उसमें घटना का जिक्र करते हुए लिखा गया था-रात में 50-60 लोग ताला तोड़कर और दीवार फांदकर मस्जिद में घुस गए और वहां उन्होंने श्री रामचंद्रजी की मूर्ति की स्थापना की। उन्होंने दीवार पर अंदर और बाहर गेरू और पीले रंग से सीताराम आदि भी लिखा। उस समय ड्यूटी पर तैनात कांस्टेबल ने उन्हें ऐसा करने से मना किया, लेकिन उन्होंने उसकी बात नहीं सुनी। वहां तैनात पीएसी को भी बुलाया गया, लेकिन उस समय तक वे मंदिर में प्रवेश कर चुके थे।