उदयबीर पठानिया : फतेहपुर में फतह
फतेहपुर उपचुनाव में फतह की आस में बैठी भाजपा के लिए अचानक एक नया नाम सामने आ गया है। जिनका जिक्र शुरू हुआ है वह एक यह एक सीनियर आईएएस अफसर हैं। इन साहब का घर फतेहपुर में ही है। बड़ी बात यह है कि यह नाम ‘चला’ नहीं बल्कि भाजपा के खाते ‘उठा’ है। नाम उठने की वजह भी कम रोचक नहीं है और के तर्क के लिहाज से कम तीखी भी नहीं है।
वजह है, पूर्व में डॉ. राजन सुशांत के स्वभाव की बदौलत भाजपाई दौलत लुटने की टीस। फतेहपुर की जनता के पास स्व. सुजान सिंह पठानिया की वजह से ठसक तो रही पर भाजपा के नाम से यहां जनता को दर्द ही मिले। डॉ. सुशांत के भाजपा में रहते उनके बगावती तेवरों की वजह से ठसक का जेवर न तो जनता और न ही पार्टी को मिल पाया। अब कुछ भाजपाई नेताओं का कहना है कि विकास चाहिए तो क्यों न किसी अफसर को भाजपा मैदान में उतारे और कांग्रेस को टक्कर दे। सामान्य उम्मीदवारों को लेकर जमीनी भाजपा नेता साफ कहते हैं कि भाजपा में जो बगावत का इतिहास रहा है, उससे निपटने के लिए ऐसा चेहरा जरूरी होगा जो निर्विवाद हो और उसके खिलाफ सियासी तौर पर कांग्रेस के पास कहने को कुछ न हो।
बस इसी कवायद में आईएएस अफसर का नाम अचानक से उभरा और अब चर्चा का विषय बन गया है। सियासी माहिर भी यह मान रहे हैं कि फतेहपुर में बागियों का इतिहास ऐसा रहा है कि किसी को भी कम ‘चालू’ नहीं माना जा सकता। वजह गिनवाते हुए वह कहते हैं कि पूर्व विधानसभा चुनावों में जब कृपाल परमार पर टिकट की कृपा बरसाई गई थी, तब यह तमगा भी प्रचारित किया गया था कि वह पीएम नरेंद्र मोदी के करीबी हैं। पीएम की जनसभा भी करवाई गई।
पर उन पर बाहरी होने का तमगा इतना कष्टकारी रहा कि पीएम से दोस्ती का ठप्पा भी काम नहीं कर पाया। दो बागियों ने ऐसा बाग उजाड़ा कि आज तक भाजपा सियासी फलों के लिए तरस-तड़प रही है। फतेहपुर में जब पीएम के करीबी होने की बात असर नहीं कर पाई तो अब किसी अचंभे की उम्मीद करना तो बेमानी ही होगा। भाजपा में पीएम से बड़ा ब्रैंड एंबेसडर तो कोई नहीं सकता। सरकार के कार्यकाल का भी कॉउंट डाउन शुरू हो चुका है।
भाजपा की सबसे बड़ी मजबूरी यह भी है कि जनता में स्व. पठानिया के प्रति सम्मान और सहानुभूति से भी उसको जूझना होगा। सियासी टस्सल और ताकत तो अलग मुद्दे हैं। भाजपा फिलहाल तो इसलिए भी बेहाल है कि कांग्रेस की तरफ से अधिकारिक उम्मीदवार का कोई अता-पता नहीं है। ऐसे में भाजपा का एक धड़ा किसी ऐसे उम्मीदवार इस तलाश में है कि पॉलिटिकली की बजाय किसी विजनरी आदमी पर दांव खेला जाए जो इमोशनल फैक्टर को प्रोफेशनल तरीके से हैंडल कर पाए।
वो अपनी बात भी रख सके और भाजपा को इस दुविधा से निकाल भी पाए। जाहिर सी बात है कि इमोशनल ग्राउंड पर भाजपा का मुकाबला कांग्रेस से होगा न कि पॉलिटिकल जमीन पर यह भिड़ंत होगी। खैर, यह फतेहपुर है। यहां फतह आसमानी नहीं जमीनी ही होगी। आसमानी होती तो सुजान सिंह जी साल 2017 में खराब सेहत में भी जीत कर विधानसभा नहीं पहुंचते…
माहौल बदला हुआ है
उपचुनाव से पहले ही फतेहपुर का सामाजिक माहौल बदला हुआ है। पठानिया साहब का सारा फ्रेंड एंड पॉलिटिकल सर्कल बुजुर्गों और अधेड़ों संग रहा था। उनकी सियासत की एक ग्रेस रही है। युवा शक्ति के दावों से दूर वह सामाजिक शक्ति के पक्षधर थे तो उनके पास युवा कम ही जाते थे। पर अब यूथ प्लस हो रहा है। उनके बेटे भवानी सिंह पठानिया के पास युवाओं की भीड़ बढ़ रही है। ऐसे में भाजपा के लिए पॉलिटिकल से ज्यादा सोशल प्रेशर भी रहेगा।
हिरदा राम की जीत…
दरअसल, आईएएस अफसर को मैदान में उतारने का मकसद उस पूर्व धूमल सरकार के कार्यकाल से प्रेरित है जब श्री रेणुका जी के तत्कालीन विधायक डॉ. प्रेम जी का निधन होने से यहां उपचुनाव हुआ था। इमोशनल ग्राउंड पर लड़े गए इस चुनाव में प्रो. धूमल ने तत्कालीन एचएएस अधिकारी हिरदा राम को मैदान में उतारा था। वह भी तब जब आम विधानसभा चुनावों भी बहुत दूर नहीं थे। हिरदा राम जीते थे। ऐसे में तब एचएएस थे तो अब आईएएस पर सोच चल रही है।