आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र परागपुर से योगराज सन 1972 निर्दलीय चुनाव लड़े और हारे। सन 1977 में जनता पार्टी से जीते और सन 1980 में दल बदल करके कांग्रेस जॉइन की तो शांता कुमार की सरकार गिराने वाले आखरी व्यक्ति थे। शांता कुमार की सरकार गिराने की बड़ी बजह उस वक्त जसवां विधानसभा क्षेत्र के विधायक ठाकुर आज्ञा राम से छत्तीस का आंकड़ा था। ठाकुर आज्ञा राम गरली से थे जोकि परागपुर विधानसभा क्षेत्र में पड़ता था, लेकिन वह अपने विधायक जसवां से थे। इसलिए परागपुर में दखल अंदाजी बढ़ गई थी।
आरएसएस के साथ सम्बंधों की बजह से एक बार कटा था टिकट…
वहीं सन 1982 में एक दिन के लिए टिकट मिला, लेकिन सन 1972 के पूर्व विधायक दिलीप सिंह चौधरी को टिकट मिल गया। योगराज के साथ आरएसएस के संबंधों के सबूत दिलीप कुमार ने हाई कमान को सौंपे थे। फिर योगराज बागी होकर निर्दलीय चुनाव लड़े दूसरे स्थान पर रहे और मात्र एक हजार वोटों से हारे, जबकि कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही। जीत भाजपा के मास्टर वीरेंद्र कुमार की हुई। लेकिन उसी दौरान मास्टर वीरेंद्र कुमार ने सरकारी नौकरी से अपना त्यागपत्र मंजूर नहीं करवाया था। तो योगराज ने हाईकोर्ट में रिट की इस आधार पर चुनाव रद्द हुआ।
योगराज राजा वीरभद्र सिंह (Virbhadra Singh) के बफादारों की अग्रिम पंक्ति में थे शुमार…
सन 1984 में बाय इलेक्शन हुआ। योगराज को पुनः कांग्रेस में शामिल किया गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने एक महीना पहले योगराज को कांग्रेस पार्टी में शामिल किया। सन 1984 में योगराज कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़े। यहां योगराज लगभग 1700 वोटों से जीते। तभी से योगराज राजा वीरभद्र सिंह के बफादारों की अग्रिम पंक्ति में शुमार हो गए। सन 1985 में आम चुनाव हुए जहां कांग्रेस की टिकट पर योगराज से चुनाव लड़ा और भाजपा के मास्टर वीरेंद्र कुमार से 750 मतों से जीते। सन 1990 में योगराज को कांग्रेस ने फिर टिकट दी और अब भाजपा के मास्टर वीरेंद्र कुमार से दस हजार मतों से हारे। सन 1993 के मध्यावधि चुनाव हुए तब योगराज से टिकट कटकर प्रीतम चंद शेरिया की झोली में गिरा। योगराज फिर अपने पुराने ढर्रे पर चल पड़े और निर्दलीय पर्चा भर दिया। यहां योगराज कांटेदार मुकाबले में 1700 मतों से हार गए। कांग्रेस प्रत्याशी को तीसरे स्थान पर धकेल दिया।
सन 1998 में फिर कांग्रेस से टिकट मिली फिर भी 1200 मतों से हारे। लेकिन चुने हुए विधायक मास्टर वीरेंद्र कुमार का देहांत होने के चलते बाय इलेक्शन में भाजपा की प्रत्याशी मास्टर वीरेंद्र कुमार की पत्नी निर्मला देवी से 9000 वोटों से हारे। सन 2002 में योगराज का टिकट काटकर प्रदीप कुमार को दिया गया। योगराज ने फिर बगावत की और चुनाव लड़ा। निर्दलीय चुनाव लड़ रहे मास्टर वीरेंद्र कुमार के बेटे नवीन धीमान से 4000 मतों से हारे। यहां मुकाबला दो निर्दलीयों के बीच रहा और कांग्रेस भाजपा तीसरे चौथे स्थान पर रही, दोनों राष्ट्रीय पार्टियों की जमानत भी जब्त हुई। सन 2007 योगराज को कांग्रेस की टिकट मिली। यहां भाजपा के नवीन धीमान से 342 मतों से जीते योगराज।
परिसीमन के बाद बिखर गया योगराज का बर्चस्व, राजपूत विरादरी में अब भी है मजबूत पकड़
परिसीमन के बाद योगराज का बर्चस्व भी बिखर गया। परागपुर विधानसभा क्षेत्र को तीन हिस्सों में बांट दिया गया। आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र को अनारक्षित किया गया और एक तरफ जसवां परागपुर विधानसभा क्षेत्र उभर कर आया तो दूसरी तरफ अनारक्षित निर्वाचन क्षेत्र देहरा। अब एक बार फिर देहरा से योगराज ने चुनावी ताल ठोक दी। लेकिन जातीय समीकरण के अनुसार यहां नए विधानसभा क्षेत्र देहरा से ब्रिगेडियर राजेन्द्र राणा को टिकट मिली। यहां योगराज फिर सन 2012 में निर्दलीय चुनाव लड़े और भाजपा के रविन्द्र सिंह रवि से लगभग 15000 मतों से हार गए। यहां भी कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही।
उसके बाद निष्कासित चल रहे योगराज को 2017 में कांग्रेस ने अपने साथ जोड़कर कांग्रेस प्रदेश महासचिव पद पर नियुक्ति दी थी। उस वक्त कांग्रेस की विप्लव ठाकुर चुनाव लड़ी थी। सन 2017 में विप्लव ठाकुर का खुलकर समर्थन किया। यह पहली मर्तबा था कि योगराज ने निर्दलीय चुनाव लड़ने को मना कर दिया। यहां अपनी राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी विप्लव ठाकुर के पक्ष में काम किया और अपने प्रभाव वाले क्षेत्र में दूसरे स्थान पर कांग्रेस प्रत्याशी को पहुंचाया। लेकिन विप्लव ठाकुर अपने पुराने इलाके में बुरी तरह हारी। योगराज की सबसे ज्यादा पकड़ राजपूत विरादरी में रही है जो आज भी कायम है।