अनूप शर्मा। बिलासपुर
एक तरफ जहां पूरे देश में कोविड 19 की दूसरी लहर के कारण सभी तरह की आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हुई है।वहीं इससे मत्स्य उद्योग भी इससे अछूता नहीं रहा है। इससे मत्स्य उत्पादन क्षेत्र भी प्रभावित हुआ है। इसी के चलते बिलासपुर के कोलडैम क्षेत्र में मस्त्य विभाग द्धारा स्वयं टरायल आधाार पर स्वयं पहली बार उत्पादित टराउट को भी कोरोनाकाल में बाजार नहीं मिल पाया।
कोरोनाकाल के कारण कोलडैम झील में उत्पादित लगभग साढे छह टन टराउट प्रदेश से बाहर नहीं जा सकी है। जिसका लाखों रूपपये का नुकसान भी विभाग को हुआ है। टराउट की न केवल हिमाचल बल्कि दिल्ली सहित अन्य राज्यों में भारी मांग रहती है। लेकिन इस बार कोविड 19 की दूसरी लहर के कारण बाहरी राज्यों से वाहनों की आवाजाही नहीं हो पाई। जिस कारण इसे भी बाहर नहीं भेजा जा सका ।
गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश मेें आमतौर पर टराउट उपरी जिलों कुल्लू जिले के बर्फीले क्षेत्रों में अधिक मात्रा में इसका उत्पादन होता है। लेकिन गत वर्ष मस्स्य विभाग ने टरायल आधार पर कोलडैम में टराउट का बीज डाला था। व स्वयं इसका उत्पादन व रखरखाव भी किया। जिसके परिणाम स्वरूप उत्पादन भी बेहतर हुआ ।
इस बार कोरोना काल की दूसरी लहर के कारण प्रदेश से बाहर बिकने के लिए नहीं जा सकी। उधर, बिलासपुर स्थित मत्स्य निदेशालय के निदेशक सतपाल मैहता का कहना है कि मस्त्य विभाग द्धारा स्वयं टरायल आधाार पर स्वयं पहली बार उत्पादित टराउट को भी कोरोनाकाल मंें बाजार नहीं मिल पाया। कोरोनाकाल के कारण कोलडैम झील में उत्पादित लगभग साढे छह टन टराउट प्रदेश से बाहर नहीं जा सकी है। अगर कोलडैम में तैयार टराउट को बाजार नहीं मिल पाया तो विभाग कोलडैम में तैयार को पतलीकूहल भेज देगा। क्योंकि बिलासपुर में जैसे जैेसे गर्मी का मौसम होने के कारण तापमान बढेगा तो इससे टराउट प्रभावित हो सकती है।