विजय ठाकुर। सरकाघाट
किसी समय आटा पीसने का एकमात्र साधन घराट थे पर वर्तमान मेंं विलुप्त होते नजर आ रहे हैं। अब इक्का-दुक्का लोग ही घराट में आते जाते हैं। लेकिन, इनमें पिसे आटे में पौष्टिकता भरपूर रहती है। हालांकि, अब इन्हें चलाने में भी संचालकों को अनेकों परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। समय के अभाव में इस परंपरा को लोग भी भूलते जा रहे हैं।
खड्डों व कूहलों के पानी से चलने वाले घराट पौष्टिक आटा तैयार कर लोगों को मुहैया करवाते थे। लोगों की कतारें भी घराटों के बाहर देखने को मिलती थी। घराट बिना बिजली से चलते हैं और इनमें तैयार होने वाला आटा स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक होता है। आधुनिकता के दौर में लोग घराटों से मुंह फेरने लगे हैं और बिजली से चलने वाली आटा चक्की की ओर रुख कर गए हैं अब यूं कहें तो हर घर छोटी चक्की आ गई है। लेकिन पानी के बेग से चलनी वाली चक्की में पिसे आटे के कई फायदे हैं जिन्हें हम सब जानते हैं।
कैसे चलता है घराट
किसी खड्ड या नाले के किनारे कूहल के पानी की ग्रेविटी से घराट चलते हैं। यह आम तौर पर डेढ़ मंजिला घर की तरह होते हैं। ऊपर की मंजिल में बड़ी चट्टानों से काटकर बनाए पहिए लकड़ी या लोहे की फिरकियों पर पानी के बेग से घूमते हैं और चक्कियों में आटा पिसता है।
अब बिजली से चलने लगी चक्कियां
अब बिजली से चलने वाली चक्कियों से आटे की पिसाई की जाती है। आटा पीसने के लिए दो बड़े गोल पत्थर लगे होते हैं और इनके बीच आकर गेहूं, मक्की,वाजरा आदि अनाज पीसते हैं। चक्कियों को घुमाने के लिए बिजली की मोटर लगाई जाती है।
क्या फर्क है चक्की और घराट के आटे में
घराट धीमी गति से चलता है। इसके आटे में शक्तिवर्धक गुण होते हैं। इसके विपरीत बिजली मशीन की चक्की से निकलने वाले आटे में ताकत खत्म हो जाती है। घराट से पीसा हुआ आटा ज्यादा लाभदायक और स्वादिष्ट होता है।
क्या कहते हैं लोग
अब जिला मंडी के सरकाघाट व धर्मपुर क्षेत्र में घराट संचालक नाममात्र ही हैं। जो हैं भी वह भी कभी-कभार ही चलते हैं। सरकार यदि प्रोत्साहन दे तो घराटों को चलाया जा सकता है। -सुनील कुमार शर्मा, समाजिक कार्यकर्ता। सरकाघाट के आसपास में पहले काफी संख्या में घराट होते थे लेकिन वर्तमान में दो-तीन ही नजर आते हैं।
पहले घराट में इतना अनाज इक्ट्ठा हो जाता था कि ग्रामीणों को आठ-दस दिन इंतजार करना पड़ता था। अब चक्की होने से इक्का-दुक्का लोग ही घराट में आते हैं। पहले घराटों में खूब आटा पीसा जाता था। इससे बनी रोटी का स्वाद भी चक्की के आटे से अलग होता है। कूहलें टूटी होने के कारण पानी के लिए मेहनत करनी पड़ती है। सरकार घराटों की मरम्मत के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करे।