कमल शर्मा। शाहतलाई
शिवरात्रि के महापर्व पर शिव मंदिर बच्छरेटू में खूब चहल-पहल रही, वहीँ शिव भक्तों ने झांकियां निकाल कर मंदिरों में पूजा-अर्चना के साथ जल अभिषेक भी किया। शिव मंदिर बम-बम भोले के जयकारों से गूंज उठा और मंदिरों में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी।
ऐतिहासिक शिव मंदिरों को दुल्हन की तरह सजाया था। शिव मंदिर बच्छरेटू में हिमाचल ही नहीं बल्कि पंजाब, हरियाणा और दिल्ली से आए श्रद्धालुओं ने भी शीश नवाया। शिव मंदिर बच्छरेटू के प्रांगण में बनी 6 फुट ऊंची नंदी गण की मूर्ति और शीतल जल का तालाब आकर्षण का केंद्र बना रहा।
इस अवसर पर डॉ. कपिलदेव भारद्वाज (वशिष्ट शास्त्री, ज्योतिष आचार्य, शिक्षाशास्त्री श्री लाल बहादुर शास्त्री केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय दिल्ली) ने बताया कि प्राचीन शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव पर अर्पित करने हेतु बिल्व पत्र तोड़ने से पहले एक विशेष मंत्र का उच्चारण कर बिल्व वृक्ष को श्रद्धापूर्वक प्रणाम करना चाहिए, उसके बाद ही बिल्व पत्र तोड़ने चाहिए।
इतना ही नहीं बल्कि उन्होंने बताया कि शिव पुराण में कहा गया है कि भगवान शिव ही स्वयं जल हैं शिव पर जल चढ़ाने का महत्व भी समुद्र मंथन की कथा से जुड़ा है। अग्नि के समान विष पीने के बाद शिव का कंठ एकदम नीला पड़ गया था।
विष की ऊष्णता को शांत करके शिव को शीतलता प्रदान करने के लिए समस्त देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया। इसलिए शिव पूजा में जल का विशेष महत्व है।
उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो भी महाशिवरात्रि की रात बेहद खास होती है। दरअसल इस रात ग्रह का उत्तरी गोलार्द्ध इस प्रकार अवस्थित होता है कि मनुष्य के भीतर की ऊर्जा प्राकृतिक रूप से ऊपर की ओर जाने लगती है यानी प्रकृति स्वयं मनुष्य को उसके आध्यात्मिक शिखर तक जाने में मदद कर रही होती है। धार्मिक रूप से बात करें तो प्रकृति उस रात मनुष्य को परमात्मा से जोड़ती है। इसका पूरा लाभ लोगों को मिल सके, इसलिए महाशिवरात्रि की रात में जागरण करने व रीढ़ की हड्डी सीधी करके ध्यान मुद्रा में बैठने की बात कही गई है।