हिमाचल दस्तक : विजय कुमार : संपादकीय: सराज विधानसभा क्षेत्र की उपतहसील बालीचौकी में सामने आए जातीय भेदभाव के मसले ने एक बार फिर शर्मसार किया है। यहां की प्राथमिक पाठशाला नौणा के नौनिहालों को जातीय भेदभाव का अपमान झेलना पड़ा है। यहां जाति विशेष के बच्चों को मिड-डे मील के दौरान अन्य बच्चों से अलग बिठाया गया है।
कुल्लू-मंडी जिलों से अकसर इस तरह की खबरें सामने आती हैं। बार-बार ऐसी घटनाएं सामने आने के दो ही मतलब हो सकते हैं। एक तो यह कि लोगों के मन में कानून का कोई डर नहीं है। दूसरा प्रशासन अपने कर्तव्य का पालन नहीं कर रहा है। देश से छुआछूत के खात्मे के लिए तो आजादी से पहले ही कई सुधार आंदोलन किए जा चुके थे। मगर आजादी के बाद तो इसे गैर कानूनी घोषित कर दिया था। इसका प्रावधान देश के संविधान में ही कर दिया गया है। फिर भी लोगों के मन से यह बात न निकल पाना बेहद शर्मनाक है। हिमाचल जैसे शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी होने का दावा करने वाले प्रदेश के लिए तो यह बात और भी शर्मसार करने वाली है।
ऐसी शिक्षा व्यवस्था भी सवालों के घेरे में है। अगर ऐसा ही होना है तो शिक्षा के क्या मायने रह जाएंगे? ऐसे शिक्षक जो जाति के आधार पर बच्चों को अलग बिठाएं, उनसे बेहतर शिक्षा की उम्मीद करना बेमानी ही लगती है। ऐसे शिक्षक अपने पेशे से गद्दारी कर रहे हैं। इन्हें शिक्षक कहना इस पद की गरिमा को घटाने के समान है। इन्हें शिक्षा विभाग में रहने का कोई हक नहीं है। समाज को सही दिशा शिक्षक नहीं तो और कौन दिखाएगा? विधानसभा में भी इस शर्मनाक घटना की गूंज सुनाई दी। इस पर कार्रवाई की बात भी कही गई है। कुछ एक्शन धरातल पर भी दिखा है। मगर इतनेभर से बात नहीं बनेगी। इस तरह की घटना फिर न हो, इसकी व्यवस्था करनी ही पड़ेगी।