विशेष संवाददाता। शिमला
हिमाचल प्रदेश में बागवानों को राहत देने के लिए सरकार ने एपीएमसी एक्ट लाकर उसमें प्रावधान किया कि सेब को प्रति किलो के हिसाब से बेचा जाएगा। मगर आज तक इस व्यवस्था को लागू नहीं किया जा सका है। देशभर के बाजार और सभी मंडियों में सेब किलो के हिसाब से बिकता है लेकिन हिमाचल में इसका मोल-भाव अंदाजे से किया जाता है। इस वजह से बाजार भाव में तेजी के दौरान कई बार बागवानों को 400 से 700 रुपए तक और कम रेट में भी 100 से 300 रुपए प्रति पेटी तक का नुकसान उठाना पड़ता है।
आज तक की सरकारें इस सुनियोजित लूट को रोकने में नाकाम रही हैं जबकि एपीएमसी एक्ट में सेब को किलो के हिसाब से बेचे जाने का प्रावधान है। जिस एक्ट को सरकार ने करीब दो दशक पहले खुद बनाया है, उसे ही आज तक लागू नहीं कर पाई। इससे सेब कारोबारी तो चांदी कूट रहे हैं मगर बागवानों को नुकसान हो रहा है। प्रदेश के बागवान कई बार सेब को किलो के हिसाब से बेचने की मांग कर चुके हैं। दो रोज पहले मुख्यमंत्री के साथ हुई बैठक में भी बागवानों ने यह मुद्दा उठाया है लेकिन बागवानों की कहीं कोई सुनवाई नहीं है। वहीं आढ़ती और लदानी बागवानों को हाई ग्रेडिंग के लिए मजबूर कर रहे हंै। इनके दबाव में बागवान भी पांच तह सेब की जगह छह तह, छह की जगह सात और सात की जगह अब आठ तह तक सेब भर रहे हंै। इससे 20 किलो की पेटी में कई बार 30 से 36 किलो तक सेब भरा जा रहा है जबकि रेट 20 से 25 किलो की पेटी मानकर तय होता है।
जिस सेब को हिमाचल की मंडियों में लदानी अंदाजे से 20 से 25 किलो की पेटी समझकर खरीदते हैं, उसी सेब को जब लदानी देशभर की मंडियों में बेचते हैं तो इसका मोलभाव किलो के हिसाब से होता है। इससे लदानियों को कई बार प्रति पेटी 5 से 10 किलो ज्यादा सेब मिल जाता है। हैरानी इस बात की है कि हिमाचल के ही कुल्लू जिला की मंडियों में सेब किलो के हिसाब से बिकता है। एक राज्य के भीतर दो अलग-अलग तरह के कानून दर्शाते हैं कि सरकार और इसके उपक्रम एपीएमसी व मार्केटिंग बोर्ड ने किस तरह लूट की छूट दे रखी है।