शकील कुरैशी : शिमला
सालों से प्रस्तावित जंगी थोपन परियोजना को लेकर राह आसान नहीं है। बेशक प्रदेश सरकार ने ऊर्जा क्षेत्र की सबसे बड़ी कंपनी सतलुज जल विद्युत निगम को यह प्रोजेक्ट सौंप दिया है, मगर एसजेवीएनएल भी इसमें फंस कर रह गया है। तत्कालीन धूमल सरकार के समय में इस परियोजना का स्वरूप सामने आया था, जोकि आज तक नहीं बन पाया है। परियोजना के निर्माण का जिम्मा सतलुज जल विद्युत निगम को सौंपने के बाद सरकार ने राहत की सांस ली, परंतु अब सरकार की बेचैनी भी बढऩा शुरू हो चुकी है। जानकारी के अनुसार परियोजना प्रभावित क्षेत्रों के लोग पूरी तरह से प्रोजेक्ट के विरोध में उतर चुके हैं। करीब आधा दर्जन पंचायतों की तरफ से प्रोजेक्ट के लिए एनओसी नहीं मिल पा रही है।
बताया जाता है कि सतलुज जल विद्युत निगम की टीम यहां पहुंची है, जिसने नए सिरे से लोगों से बातचीत भी की है। मगर ज्यादा कोई कामयाबी हासिल होती नहीं दिख रही है। ऐसे में सालों से लटका प्रोजेक्ट कब तक सिरे चढ़ेगा, इस पर सवालिया निशान खड़ा हो गया है। उल्लेखनीय है कि जंगी थोपन परियोजना शुरुआत में 960 मेगावॉट की चिह्नित की गई थी। तब यह परियोजना निजी क्षेत्र में ब्रेकल कंपनी को सौंपी गई।
तब भी इस प्रोजेक्ट को लेकर जनता का विरोध चल रहा था, जोकि आज भी कायम है। हालांकि अब यह परियोजना 804 मेगावॉट की प्रस्तावित है। बता दें कि ब्रेकल कंपनी के साथ सरकार का बड़ा विवाद भी शुरू हो गया और मामला हाईकोर्ट तक पहुंचा। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट तक यह मसला गया। ब्रेकल कंपनी को पैसे देने वाली अदानी कंपनी का पैसा इस परियोजना में अपरोक्ष रूप से लगा था।
सरकर को 280 करोड़ रुपये देने के हैं आदेश
अदालती आदेशों में सरकार को 280 करोड़ रुपये की राशि चुकता करने को भी कहा गया है, जिसमें सरकार फंस चुकी है। बहरहाल जंगी थोपन परियोजना को सरकार ने एसजेवीएनएल को सौंपा है, जिसने शुरुआती सर्वेक्षण का काम शुरू कर रखा है, परंतु जनता का विरोध उन्हें सहना पड़ रहा है। बताया जा रहा है कि एसजेवीएनएल ने प्रभावित पंचायतों से कहा है कि फिलहाल सर्वे व इन्वेस्टिगेशन का काम उन्हें करने दें।
इसके बाद अगली बातचीत प्रभावी रूप से की जा सकेगी। बता दें कि विधानसभा के बजट सत्र में भी यह मामला काफी ज्यादा उछला था। कांग्रेस के विधायक ने विधानसभा में यह आरोप लगाए थे कि प्रभावित पंचायतों से बिना एनओसी के इस काम को आगे बढ़ाया जा रहा है। बहरहाल जंगी थोपन परियोजना स्थानीय पंचायतों के विरोध के कारण फंसी हुई है।