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पैर में दिक्कत के चलते दिहाड़ी-मजदूरी करने में भी समर्थ नहीं है प्रकाश चंद
पंकज ठाकुर। ज्वालामुखी
सरकार भले ही दावा करे कि कोई भी गरीब बिना आवास के नहीं रहेगा। दावा होता है कि कच्चे मकानों में रहने वाले गरीबों को पक्के आवास बनाकर देंगे, जबकि जमीनी हकीकत यह है कि अब भी कई परिवार ऐसे हैं जो सालों से पक्के मकान का इंतजार कर रहे हैं।
इन्हें अभी तक प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवास नहीं मिला है। जिला कांगड़ा के ज्वालामुखी क्षेत्र की खुंडियां तहसील के भटवाल गांव में रहने वाले प्रकाश चंद उर्फ़ सुग्रीव (39) की भी स्थिति कुछ ऐसी ही है।
सुग्रीव अपनी 74 वर्षीय मां रोशनी देवी पत्नी स्वर्गीय तहल सिंह जो कि ब्रेस्ट कैंसर से पीड़ित है, के साथ सालों से आदिवासी जैसी जिंदगी व्यतीत कर रहा है। गरीबी रेखा के नीचे बीपीएल में काफी वर्ष से आज तक प्रधानमंत्री आवास योजना या अन्य किसी प्रकार की सरकारी योजना का लाभ इस परिवार को नहीं मिला है।
यहां तक कि घर में शौचालय तक नहीं है। घर की दीवारें भी इतनी कमजोर हैं कि बरसात में हर समय गिरने का खतरा बना रहता है। प्रकाश चंद 1 कमरे के मकान में रहते हैं। बताया जा रहा है कि प्रकाश के पिता तहल सिंह का निधन 13 वर्ष पहले हो गया था। निधन के बाद से यह लोगों के घरों में काम करके 2 वक़्त के खाने का गुज़ारा करते हैं।
अव्यवस्था का आलम यह है कि इतने सालों से कई सरकारें आईं और गईं, कई पंचायत प्रधान आए जो इन्हें प्रलोभन देकर गए, पर आज दिन तक न ही इनकी सुध किसी ने ली और न ही कोई इनकी सहायता करने के लिए आगे आया है।
हालत यह है कि यह सिर्फ एक कमरे में गुज़ारा करते हैं और मकान की इतनी बुरी हालत हो चुकी है कि कभी भी यह गिर सकता है। इस परिवार की हालत इतनी पतली है कि प्रकाश चंद पैर में दिक्कत के चलते दिहाड़ी-मजदूरी करने में भी समर्थ नहीं है।