उदयबीर पठानिया : फतेहपुर में फतह
फतेहपुर में भाजपा-कांग्रेस और डॉ. राजन सुशांत तीनों फंस गए हैं। भाजपा को यह पता नहीं है कि दांव किस चेहरे पर खेलना है, कांग्रेस इस मुगालते में है कि कोई नया चेहरा दिया जाए या फिर पठानिया फैमिली पर दांव खेला जाए। डॉ. राजन सुशांत इसलिए परेशान हैं कि हमला किस पर किया जाए। सही मायनों में फतेहपुर एक ट्राइएंगुलर पॉलिटकल लव स्टोरी का प्लाट बन कर रह गया है।
फतेहपुर की मौजूदा ग्राउंड जीरों पर सभी जीरो ही नजर आ रहे हैं।
हैरानी की बात तो यह है कि सत्तारूढ़ भाजपा भी यह तय नहीं कर पा रही है कि दाव किस चेहरे पर खेला जाए। शनिवार को रैहन में सरकारी मंच पर हुई जनसभा में भी कोई ऐसा पुख्ता इशारा नहीं मिला, जो यह बताता कि पूर्व प्रत्याशी रहे कृपाल परमार पर ही हाईकमान की कृपा बरसेगी? उनके ऊपर कृपा रुकी हुई है, यह संकेत जरूर मिल गए कि कृपा रुकी हुई है। न मुख्यमंत्री ने कोई इशारा दिया न ही प्रदेशाध्यक्ष ने।
स्टेज पर जनता से जुड़ी मांगे तो सीएम ने मान लीं, पर परमार की उम्मीदों की मांग में किसी ने कोई रंग न भरा। हालांकि जिस तरह से परमार गाहे-बगाहे पीएम नरेंद्र मोदी से अपनी नजदीकियों का जिक्र करते हैं, उसको देखते हुए शनिवार को उनके हक में कोई मजबूत इशारा देना हिमाचल भाजपा और सरकार की मजबूरी बन सकता था। पर यह हो न सका और परमार भी भाजपा के अन्य टिकटार्थियों की लिस्ट में शामिल होकर रह गए हैं। ऐसे में यह इशारा जरूर मिल गया कि परमार के नाम पर भी फिलहाल कई इफ़-बट और कौमे लगे हुए हैं। यह भी तय नहीं है कि टिकट परमार को मिलना तय है। इसकी भी कई वजहें हैं।
फतेहपुर की सियासी जमीन में यह करंट दौड़ा दिया गया है कि परमार चक्की पार यानी पठानकोट के बाशिंदे हैं। परमार लगातार ये सफाइयां दे रहे हैं कि उनका घर हिमाचल की फलां तहसील फलां डाकघर के तहत है। पर उनके विरोधी करंट का फ्लो इतना तेज कर दिया है कि कभी शॉर्ट सर्किट होने का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। भाजपा को यह खतरा सता रहा है कि कहीं यह करंट सरकार की छवि तक को नुकसान न पहुंचा दे। ऐसे में भाजपा भी वेट एंड वॉच की हालत में माहौल को स्टडी कर रही है।
कांग्रेस में भी हाल कोई सही नहीं है। कांग्रेस का एक बहुत बड़ा धड़ा स्व. सुजान सिंह पठानिया जी के बेटे भवानी पठानिया की पैरवी कर रहा है। भवानी की पैरवी के पीछे दो अहम कारण गिनवाए जा रहे हैं। पहला यह कि कांग्रेस यह चुनाव सिम्पथी फैक्टर के दम पर जीतना चाहती है। दूसरा कारण बहुत हैरान-परेशान करने वाला है। यह बताया जा रहा है वो है धन की कमी। कांग्रेस में उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक पार्टी उपचुनाव के खर्चे को वहन करने की स्थिति में नहीं है। ऐसे में चुनाव भी अपना, खर्चा भी अपना का फार्मूला बड़े कांग्रेसी नेताओं को रास आ रहा है। जबकि भवानी के चेहरे में स्व. पठानिया के चेहरे जैसा सियासी नूर सिम्पथी वेव में कांग्रेस को जरूर नजर आ रहा है।
कांग्रेस में भी फिलहाल माहौल ऐसा है कि भवानी ने एक बार भी खुल कर न अपने लिए टिकट का दावा किया है न ही सुजान सिंह के अंग-संग रहने वाले उनके दामाद रवि ठाकुर ने अपनी कोई इच्छा जताई है। जबकि इस बीच कांग्रेस के पुराने खिलाड़ी और पीसीसी सदस्य निशवार सिंह फ्रंट फुट पर आ गए हैं। लंबे अरसे से खुड्डेलाइन रहे निशवार सिंह मैदान में उतर आए हैं। लोकसंपर्क अभियान शुरू कर दिया है। यह अलग बात है कि अभी तक निशवार सिंह अपने लिए वोट नहीं मांग रहे हैं, बल्कि टिकट की आस में कांग्रेस के लिए वोट मांग रहे हैं।
इतना तो है फतेहपुर में कांग्रेस के अंदर भी एक ऐसी कांग्रेस काम करने शुरू हो गई है जो परिवारवाद के विरोध में चली हुई है। कांग्रेस में तरक्की पाने के लिए एक बड़ा धड़ा खूब ताकत झोंक रहा है। इसी तरह फतेहपुर के अग्निबाण डॉ. राजन सुशांत एकमात्र ऐसे नेता हैं, जो खुद ही हाईकमान और खुद ही पार्टी हैं। ऐसे में वह अकेले चलते हुए काफिला बनने की आस में आगे निकल चुके हैं।
दोनों हाथों में भाजपा और भाजपाई सरकार के खिलाफ मुद्दों की मशाल उठाकर बवाल काटने के मूड में हैं। कांग्रेस की झोली में पड़े सिम्पथी फैक्टर से वह बिना कोई छेड़छाड़ किए उल्टा सुजान फैन क्लब की तर्ज पर काम कर रहे हैं।
एक चौराहे पर सुजान सिंह पठानिया की मूर्ति लगाकर उसके आगे शीश नवा का वह पहले ही करके पठानिया समर्थकों के दिल जीतने की कोशिश कर चुके हैं। यह भी सच है कि डॉ. साहब बीजेपी-कांग्रेस दोनों पाटों में बुरी तरह उलझे हुए हैं। खैर, फतेहपुर आज की डेट में त्रिकोणीय सियासी प्रेम कथा की कहानी का गवाह बना हुआ है। लव स्टोरीज सरेआम तो हेट स्टोरीज पर्दे के पीछे चल रही हैं। देखना यह होगा कि इस फिल्म का दी ऐंड किस तरह से होता है…
भवानी के चर्चे…
मजे की बात देखिए, भवानी पठानिया के लिए उनका हाई एंड रोजगार ही समस्या बनने शुरू हो गया है। लोगों में चर्चा है कि सालाना करोड़ों का सैलरी पैकेज लेने वाले भवानी क्या इसको छोड़ कर वापस लौटेंगे? सवाल जायज भी है। प्रदेश के लाखों बेरोजगारों में हजारों फतेहपुर में भी बैठे हैं। इनका कहना है कि हम रोजगार को तरस रहे हैं, हमें तो सालाना हजारों का पैकेज भी मिल जाए तो कुछ और न चाहें। ज्यादातर युवाओं का यह मानना है कि काबलियत के गद्दे पर बैठे भवानी, सियासत में दलदल में क्यों उतरेंगे?