उदयवीर पठानिया
ओजी, अपणा-अपणा कल्चर होता है। कांग्रेसियों में तो कल्चर के नाम पर एग्रीकल्चर ही होता है। खैर आपको एक खप्प सुणाते हैं। हुआ यूं कि कांगड़े के फतेहपुर में सरकारी मंच पर भाजपा की जनसभा चली हुई थी। खर्चा सरकारी था पर तम्बू-बम्बू भगवा रंग में लगे हुए थे। फतेहपुर के इस मंच पर टिकटार्थी कृपाल परमार भी थे। मंच पर माइक का गला पकड़ कर संबोधन कर रहे थे। अचानक परमार साब को लगा कि भाजपा के जान-प्राण और संगठन महामंत्री पवन राणा जी तो मंच पर कहीं दिख ही नहीं रहे।
अब परमार जी ने मंच से ही गुहार लगा दी कि ‘राणा जी जहां भी हो, प्लीज आ जाओ’ बस यही नहीं कहा कि राणा जी माफ करना, गलती म्हारे से हो गई। बाकि सब स्तुतिगान कर दिए। पर न राणा जी ने आना था न आए। क्योंकि भाजपा में यह असूल है कि महामंत्री जी कभी भी मंच का हिस्सा नहीं बनते हैं और न ही सरकार संग सार्वजनिक मंचों को साझा करते हैं। यह अलग बात है कि सरकार के मंच में वह बाहर बैठे-बैठे ही उठक-बैठक करवाने का दम रखते हैं।
अब परमार साहब का लाड़ प्यार उमड़ गया पर फायदा कुछ न हुआ। ज्वालाजी वाले मियां जी प्रकट ही नहीं हुए। यह अलग बात है कि अगर यही फंक्शन कांग्रेसियों का होता और इनके महामंत्री को मंच पर न बिठाया होता तो ठीक वैसा हंगामा होणा था जैसे बारात में दूल्हे के जीजे, फुफ्फड़ वगैरा मुंह फुला कर करते हैं। वैसे कांग्रेसियों की दाद देणी तो बणती है।
मोदी ने ऐसा माहौल बनाया हुआ है कि कांग्रेसियों के मंचों के आगे भीड़ तो नहीं होती है,अलबत्ता सब कांग्रेसी मंच पर भीड़ बणा कर बैठ जाते हैं। तभी कहा था न कल्चर और एग्रीकल्चर में बड़ा फर्क होता है। भाजपा में छलिए हैं सामने नहीं आते उनको बुलाना पड़ता है,जबकि कांग्रेसी छलिए तो सच मे बड़े क्यूट होते हैं,बिन बुलाए ही प्रकट हो जाते हैं…