सचिन शर्मा। देहरा
कोरोना वायरस के दौर में हर ओर इम्युनिटी बढ़ाने की बातें हो रही हैं। इम्युनिटी बढ़ाने में हल्दी रामबाण मानी जाती है। ऐसे में इन दिनों देशभर में हल्दी की डिमांड बढ़ गई है, लेकिन यह कम ही लोग जानते हैं कि मार्केट में किस हल्दी की ज्यादा कीमत होती है।
हिमाचली किसानों की इसी समस्या का समाधान करने जा रहे हैं देहरा से संबंध रखने वाले फाइटो केमिकल साइंटिस्ट सुदेश्वर साकी। साकी ने हिमाचल में लगाई जा रही करीब 25 किस्म की हल्दी को दिल्ली की लैब में टेस्ट करने का बीड़ा उठाया है। टेस्ट के बाद तुरंत पता चलेगा कि किसानों को कौन सी हल्दी का बीज लगाना है।
दरअसल हल्दी में कुकुमिन ऑयल होता है। हल्दी की जिस किस्म में कुकुमिन ऑयल चार फीसदी से ज्यादा होगा, उस किस्म की उतनी ही डिमांड होगी। अभी प्रदेश में सैकड़ों ऐसे किसान भाई हैं, जो जानकारी के अभाव में वे किस्में लगा रहे हैं, जिनमें यह ऑयल चार फीसदी से कम होता है।
खास बात यह भी कि जो किसान ज्यादा कुकुमिन ऑयल वाली किस्म भी रोपते हैं, उन्हें भी वाजिब दाम नहीं मिल पाते हैं। ऐसे में साकी ने यह मुहिम छेड़ी है। यह मुहिम सफल रही, तो हिमाचल की हल्दी को बाहरी बाजारों में सही कीमत मिल सकेगी। साकी ने बताया कि वह हल्दी को अपनी लैब में टेस्ट करेंगे। उन्होंने कहा कि हल्दी दवाओं के साथ-साथ कॉस्मेटिक्स में भी पड़ती है।
उन्होंने कहा कि किसानों के खाली पड़े खेतों में लेमन ग्रास भी उगाया जा सकता है, जिसे परफ्यूम, दवाओं आदि में डाला जाता है। उन्होंने कहा कि हल्दी और लेमन ग्रास में यह खासियत भी है कि इसे कोई भी जंगली जानवर नुकसान नहीं पहुंचाता है व बंदर भी नजदीक नहीं आते। ऐसे मेंं हल्दी के साथ लेमन ग्रास भी अच्छा विकल्प है।
खैर बात हल्दी की है, तो सामान्य हल्दी की फसल में 2 से 3 वर्ष का समय लगता है, वही प्रगति हल्दी का यह बीज 6 महीने यानी 180 दिन में तैयार हो जाता है। साकी ने बताया कि उन्होंने अपने स्तर पर ही प्रयास शुरू किए और पिछले 2 सालों में तकरीबन 300 किसानों को अपने साथ जोडकऱ हल्दी की खेती को बढ़ावा दे रहे हैं।
इस समय वह खुद तकरीबन 80 कनाल भूमि में हल्दी की खेती कर रहे हैं। यदि आप 1 टन हल्दी के बीज की बिजाई करें तो जिससे 6 महीने में 24 टन हल्दी की पैदावार होती है, जिसकी कीमत 24 लाख रुपये है। बहरहाल साकी की मुहिम कामयाब रही, तो हिमाचल में किसान हल्दी से कामयाबी की कहानी लिखेंगे।