आनंद सिंह
बजट एक है, नजरिया अनेक। किसी को लगता है कि यह बजट बाजार में लिक्विडिटी को बढ़ावा देगा तो किसी को लगता है कि इस बजट से महंगाई बढ़ जाएगी। एक अत्यंत अप्रत्याशित महामारी की चपेट से निकलते हुए देश के लिए इस किस्म का बजट अपेक्षित था या नहीं, यह तो पाठक तय करें, पर देश के बड़े-बड़े अर्थशास्त्री मानते हैं कि आगाज बढिय़ा है, अंजाम खुदा जानें।
खुद को सामने रख कर देखें तो यह साफ है कि नौकरीपेशा वर्ग के लिए इस बजट में दरअसल कुछ है ही नहीं। आयकर का स्लैब जैसा था, वैसा ही है। न तो उसमें कोई बढ़ोतरी की गई और न ही कोई कमी। सालाना 2 लाख पचास हजार रुपये से ज्यादा की आमदनी पर आपको कर देना होता था, अब भी आपको कर देना होगा।
इसलिए, सर्विस क्लास के लिए यहां झुनझुना ही है। हां, जो लोग 75 साल या उससे ऊपर के हैं, पेंशन पर ही जिंदगी गुजार रहे हैं और पेंशन भी इतनी हो कि आय कर के दायरे में आते हों तो उनके लिए बड़ी राहत है: उन्हें आयकर नहीं देना होगा। बड़ा सवाल यह कि 130 करोड़ की आबादी में कितने लोग ऐसे होंगे, जो 75 या उससे ज्यादा की उम्र के होंगे और पेंशन ले रहे होंगे? लेकिन चतुर वित्त मंत्री के लिए उनका यह कदम लोगों के गिनाने के काम आएगा।
चूंकि अभी हम लोग कोरोना काल में जी रहे हैं, लिहाजा इसे तवज्जो देने की जरूरत थी। वित्त मंत्री ने दिया भी। हेल्थ सेक्टर के लिए वित्त मंत्री ने 2 लाख 33 हजार करोड़ रुपये आवंटित करने का प्रस्ताव रखा है, जो कहीं से भी अनुचित नहीं है। यह तो होना ही चाहिए था। इसके अलावा कोरोना वैक्सीन के लिए वित्त मंत्री ने 35000 करोड़ रुपये का अलग से प्रावधान किया हुआ है। यह भी बेहतर कदम माना जाएगा। गत बजट से तुलना करें तो हेल्थ सेक्टर में इस बार 137 फीसदी ज्यादा बजट का प्रस्ताव है, जो कहीं से भी गलत नहीं है। आदमी के जिंदा रहने के लिए जो उचित है, वह किया गया, ऐसा माना जा सकता है।
इस बजट ने चौंकाया भी है। जिस बीमा क्षेत्र में मात्र 49 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश था, इस बजट में उसे बढ़ाकर 74 फीसदी करने का प्रस्ताव है। आने वाले वक्त में अगर भारतीय जीवन बीमा निगम भी निजी हाथों में चला जाए, प्रीमियम की दरें बढ़-घट जाएं तो अचरज नहीं होना चाहिए। प्रस्ताव तो यह भी है कि निवेशकों के लिए चार्टर बनाया जाए। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में बीमा और बैंकिंग क्षेत्र में खूब नौकरियां मिलेंगी, क्योंकि जब प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 74 फीसदी कर दिया जा रहा है तो जाहिर है, इन क्षेत्रों में बाहरी खिलाड़ी भी आएंगे और उन्हें बिजनेस भारत में ही करना होगा। ऐसे में रोजगार सृजन की पूरी संभावना है।
यह लग रहा था कि एक महिला होने के नाते वित्त मंत्री कुछ नया सोचेंगी, महिलाओं के लिए कोई स्कीम निकालेंगी, जैसा कि उन्होंने पहले के दो बजट में किया था। लेकिन इस बार के बजट में ऐसा कुछ भी नहीं है। हां, चूंकि इस साल पांच राज्यों: पश्चिम बंगाल, केरल, पुडुचेरी (केंद्र शासित) असम और तमिलनाडु में चुनाव होने वाले हैं तो इन पांच राज्यों पर विशेष कृपा बरसाई गई है।
इसके तहत प. बंगाल और असम के चाय बागानों में काम करने वाले मजदूरों के लिए एक हजार करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है तो प. बंगाल में हाईवे के क्षेत्र में 25000 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है। केरल में 1100 किलोमीटर नेशनल हाईवे बनाने की बात की गई है, जिसके लिए 6000 करोड़ रुपये अलग से आवंटित किए गए हैं। कुल मिलाकर देखें तो यह बजट एक तरफ जहां नौकरीपेशा वर्ग के लिए निल बटा सन्नाटा है तो दूसरी तरफ निजीकरण की मुहिम में काफी आगे निकलता दिखाई देता है।
निश्चित तौर पर वित्त मंत्री के मन में दो किस्म के भाव होंगे: एक, लोग खरीदारी करने के लिए ज्यादा से ज्यादा निकलें, ताकि बाजार में लिक्विडिटी बनी रहे और दो: निजी क्षेत्र झूम कर बाजार में आए, पैसा लगाए, मुनाफा कमाए और भारत के नवनिर्माण में अहम भूमिका निभाए। इस बजट का अंजाम क्या होगा, यह तो पता नहीं, पर आगाज उम्दा है। बाजार का भरोसा अर्जित करने के लिए जो जरूरी कदम उठाए जाने चाहिए थे, वो बजट भाषण में दिखे हैं।