इंटरव्यू : प्रो. प्रेम कुमार धूमल, पूर्व मुख्यमंत्री
प्रेम कुमार धूमल तीन बार सांसद, दो बार मुख्यमंत्री रहे। सड़कों वाले सीएम के तमगे से मशहूर हुए और प्रदेश में भाजपा के लिए नए दरवाजे खोले। आज भी रोजाना सैकड़ों लोग उनसे मिलने आते हैं। वह आज भी जनता के दिल-ओ-दिमाग में बसते हैं। हिमाचल दस्तक के उदयबीर पठानिया के साथ उनकी लंबी बातचीत हुई। भाजपाई जमात में प्रोफेसर साहब के नाम से विख्यात धूमल ने कोई ऐसी बात नहीं कही, जो सियासत के नजरिये से ‘कुख्यात’ कही जा सके। आज के माहौल में सियासतदान चाहें तो उनकी कही बातों को गांठ भी बांध सकते हैं। इसमें सियासी सद्भाव के संदेश हैं तो कार्यशैली का नक्शा भी। बातचीत के मुख्य अंश…
- आप सियासत से भाजपा के पॉलिटिकल इंस्टीट्यूशन के धाकड़ एचओडी हैं। बावजूद इसके बिना किसी से सियासी हिल-हुज्जत किए सबको इज्जत देते आ रहे हैं। हिमाचल का भाजपाई इतिहास गवाह है कि चुप बैठने वाले कम ही नजर आते हैं…
घर है मेरा भाजपा। घर में सब अपने होते हैं। जरूरी नहीं कि शिकवे-शिकायतें ही हों। अहम आपसी सद्भाव है, वहम नहीं। सियासत में दबका नहीं, अपनेपन से भरा हुआ तबका होना चाहिए। - अक्सर कहा जाता है कि सरकारों में अफसरशाही बेकाबू है। अफसर ही सरकार चला रहे हैं। इससे आप कितना इत्तेेफाक रखते हैं?
सीखने में वक्त लगता है। मैं अपना एक किस्सा साझा करता हूं। सीएम बनने से पहले मैं कभी सचिवालय नहीं गया था। संसद भवन से ही वाकिफ था। खैर, शपथ ग्रहण करने के बाद कर्मचारियों से मिला। तब मैंने उनसे कहा था कि सरकार कैसे चलानी है, यह तो सीखना पड़ेगा। हां, इतना जरूर जानता हूं कि फाइल कैसे चलती है और कैसे चलवाई जाती है। - किस्सा मजेदार है…
मैंने फिर तमाम आईएएस अफसरों की माीटिंग बुलवाई। भरोसा था कि आईएएस बेस्ट ब्रेन होते हैं। इनको बेस्ट फॉर द स्टेट करने के लिए रणनीति बनाने की बात कही। विजन के साथ बात में वजन जरूरी रहता है। पढऩे-लिखने की आदत वरदान बनी और सरकारें भी कामयाब हुईं। - विजन किसका? अफसरशाही या नेताशाही का?
हर स्तर पर विजन जरूरी रहता है। बाद में नतीजों का वजन यह तय करता है कि विजन में कहां कमी थी या किस पहलू में दम था। - सरकार नेताशाही और अफसरशाही का तालमेल है। अब तो घालमेल जैसा बन रहा है… देखिए, यह नजरिए की बात है। अगर आपको शेर की सवारी करनी है तो आपको शेर से ज्यादा ताकतवर और फुर्तीला बनना होगा। अगर शेर की पीठ से गिरे तो शेर खा जाएगा। एडमिनिस्ट्रेटिव स्किल्स जरूरी हैं। अगर शेर सामने होगा तो भी खा जाएगा और पीछे होगा तब भी यही हश्र करेगा। तो, जरूरी है कि आप उसकी पीठ पर टिके रहो।
- यानी तालमेल न होने से ऐसा होता है…
शत-प्रतिशत ऐसा भी नहीं है। मोदी सरकार जिस तरह से देश और दुनिया में अपना आकार बना चुकी है, उसका प्रभाव हिमाचल में भी कदम-कदम पर देखने को मिलता है। जनता का पूरा भरोसा सरकारों पर है। अगर आप दिल से किसी से बात करोगे तो सामने वाले के दिल तक आपकी बात पहुंचेगी। अलबत्ता बात भी बात न रह कर सिर्फ आवाज बनकर रह जाती है। फिर चाहे यह बात आप जनता से करें, अफसरों से या केंद्र से। - क्या आपको लगता है कि केंद्र में हिमाचल की सरकारों को तरजीह कम मिलती है?
यह बिल्कुल निराधार है। मेरे पास पीएमओ में एनी टाइम अपॉइंटी का सम्मान रहा है। यह अटल जी के वक्त से मोदी जी तक जारी है। हिमाचल के हक नरेंद्र भाई के आशीर्वाद से आज भी उतने ही सुरक्षित हैं, जितने अटल जी के वक्त से चले आ रहे हैं। - क्या सरकारें वीवीआईपी कल्चर से बाहर निकल पाई हैं ?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की सोच ने इस कल्चर को ही खत्म कर दिया है। यह जरूरी भी है। मेरे कार्यकाल में वीवीआइपी कल्चर पर पहली दफा रोक लगी थी। उस दौर में जब भी कोई मंत्री या खुद मुख्यमंत्री दौरे पर निकलते थे तो हर जगह उनको सलामी देने के लिए पुलिस गारद तैनात होती थी। कई मर्तबा थानों में नफरी नहीं बचती थी। जनता प्रथम थी, सो यह प्रथा खत्म की गई। - सरकारी फिजूलखर्ची भी मुद्दा रहता है…
अगर मैं अपने कार्यकाल की बात करूं तो उस दौर में मंत्री को जितनी तनख्वाह मिलती थी उसका दस फीसदी कोठी के किराए में काटा जाता था। संदेश देने के लिए हम तो घर से सचिवालय तक पैदल भी चले थे।
अटल जी की आत्मीयता
अटल जी का तो हिमाचल घर रहा है। उनका प्यार आज भी हिमाचल के लिए जीवंत बना हुआ है। यह हमेशा रहेगा। आज एक और ऐसा किस्सा सुनो जो जाहिर तौर पर अटल जी की शख्सियत को अमर करता है। हुआ यूं कि एक मर्तबा मैं अटल जी के साथ हिमाचल लौटा। हवाई जहाज में मैंने उनसे मदद की दरख्वास्त की। आर्थिक हालत खराब थी। मैंने कहा कि सर! 400 करोड़ रुपये चाहिए। अटल जी ने कहा कि वह एलान कर देंगे। यही वजह रही कि मैंने मंच से कोई मांग नहीं की पर एक नेता जी ने अपने संबोधन में पैसे मांग लिए।
अटल जी ने इस मांग को लेकर मंच से 200 करोड़ रुपयों की मदद का एलान कर दिया। इधर एलान हुआ और उधर मैं व्यथित हो गया। कहां 400 करोड़ रुपये मिलने थे, कहां 200 की घोषणा…स्टेट को नुकसान हो गया। अटल जी ने मेरा चेहरा पढ़ लिया। जनसभा के बाद चायपान के दौरान उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए पिता तुल्य स्नेह जताते हुए पूछा कि उदास क्यों हो? मैंने वजह बताई तो उन्होंने सशर्त कहा कि मैं 200 करोड़ और दे दूंगा, पर तुम्हें मेरे साथ सूप पीना होगा। हिमाचल का 400 करोड़ रुपया पूरा हो जाएगा। इधर उन्होंने मेरे साथ सूप ग्रहण किया, उधर यह एलान कर दिया कि मंच से भूल हो गई और वह गलती से 200 करोड़ बोल गए थे। ऐसे थे बाजपेयी साहेब।
पीएमओ में आपका दोस्त बैठा है
यह सच है कि केंद्र की मदद के बिना कोई भी प्रदेश को नहीं चला सकता। यहां आपसे एक और बात शेयर करता हूं। सन 1989 में मैं लोकसभा गया तो सन 1990 में सरदार मनमोहन सिंह राज्यसभा पहुंच गए। लिहाजा दोस्ताना रिश्ते बन गए थे। फिर मैं मुख्यमंत्री बना और सरदार जी भी पीएम बन गए।
शपथ ग्रहण के बाद मैं दिल्ली गया और सिंह साहेब के पास पहुंच गया। उनसे मदद को कहा तो जवाब आया, ‘धूमल जी! आप बस आवाज कीजिएगा। आप बस एक फोन करना, पीएमओ में आपका दोस्त (खुद पीएम) बैठा है।’ तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम से 3200 करोड़ रुपये एशियन डेवल्पमेंट बैंक से 90:10 की रेशियो में पावर सेक्टर के लिए हाथों-हाथ स्वीकृत करवाया था।
बैड वर्कमैन क्वार्लस विद हिज़ टूल्स
एक और किस्सा सुनाता हूं। इसे समझिए। साल 2010-11 की बात है। मैं महाराष्ट्र के राम भाऊ महातगे संस्थान में एक प्रशिक्षण वर्ग में हिस्सा लेने गया था। वहां कई भाजपा शाषित राज्यों की तरफ से मुद्दा उठा कि मुख्यमंत्री-मंत्री जो कहते हैं, अफसर मानते नहीं। इस मुद्दे पर वरिष्ठ नेताओं में शामिल अनंत कुमार, रवि शंकर प्रसाद ने अपने विचार रखे। मुझे इस सत्र का समापन संबोधन करने को कहा गया।
मैंने कहा था कि अगर कैबिनेट में कोई मेमो आता है तो मंत्री को पता नहीं होता। मंत्री अफसर से पूछता है कि यह क्या है ? जाहिर सी बात है कि व्यवस्था को नियंत्रण में रखने के लिए सभी नेताओं को पढऩे-लिखने की आदत डालनी होगी। विजन बनाना आना चाहिए। अफसर टूल हो सकते हैं, मैकेनिज्म नहीं। अंग्रेजी में एक कहावत है, ‘ए बैड वर्कमैन क्वार्लस विद हिज टूल्स’। पढ़ो, खुद मास्टर बनो, टारगेट फिक्स करो, उनको अचीव करो। दोषारोपण न करो।
जुर्माना नहीं, थप्पड़ याद रहेगा
मौजूदा दौर में जरूरी है कि जनता के साथ-साथ प्रशासनिक कुनबा भी खुद को सरकार के करीब महसूस करे। मुझे याद है, जब हमने सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान पर रोक लगाई थी, तब हमें भी चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। मॉलरोड की बात है। एक अमीर खानदान के एक व्यक्ति ने स्कैडल प्वाइंट पर सिगरेट जलाई। इसे एक महिला पुलिस ऑफिसर ने देखा और मौके पर ही थप्पड़ जड़ दिया। व्यक्ति ने कहा कि आप मुझे फाइन भी कर सकती थीं।
महिला ऑफिसर को सरकार के इरादों पर भरोसा था। उसने जवाब दिया कि तुम्हें फाइन करने का कोई फायदा नहीं होना था। अब अगर तुम घर में भी सिगरेट लगाओगे तो तुम्हें यह थप्पड़ याद आएगा। इसी तरह हमने प्लास्टिक बैन को भी सफल करने में पूरी ताकत झोंकी थी। समाज को साथ जोड़ा और नतीजा यह है कि आज प्लास्टिक बैन को लेकर हिमाचल देश में एक मॉडल स्टेट है।