नई दिल्ली :
उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि भगोड़ा आर्थिक अपराधी विजय माल्या शीर्ष अदालत में लंबित अपनी याचिका का इस्तेमाल दूसरे देशों में कर्जदाताओं द्वारा उसके खिलाफ शुरू की गई दिवालिया कार्यवाही रुकवाने के लिए नहीं कर सकता।
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने केन्द्र की इस दलील को सुनने के बाद यह आदेश दिया कि माल्या ने ब्रिटेन की अदालत में दिवालिया कार्यवाही में फैसला सुनाने से रोकने के लिए अपनी लंबित याचिका का इस्तेमाल किया था। पीठ ने कहा कि यहां मामला लंबित होना दुनिया के किसी भी हिस्से में किसी मामले को रोकने का आधार नहीं हो सकता है।
पीठ ने कहा, ”याचिकाकर्ता के एडवोकेट ऑन रिकार्ड के पत्र के मद्देनजर इस मामले को 10 जनवरी, 2020 के लिए इस शर्त के साथ सूचीबद्ध किया जाए कि इन लंबित याचिकाओं का इस्तेमाल किसी भी न्यायाधिकरण, अदालत या अन्य प्राधिकारी के समक्ष लंबित किसी मामले की सुनवाई स्थगित कराने के लिए नहीं किया जाएगा।” केन्द्र की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को सूचित किया कि स्टेट बैंक द्वारा माल्या के खिलाफ ब्रिटेन में दायर दिवालिया मामले में कार्यवाही पूरी हो गई है और अब आदेश की प्रतीक्षा है।
मेहता ने कहा कि माल्या के वकील ने ब्रिटेन की अदालत से इस मामले में कोई आदेश पारित नहीं करने का अनुरोध किया और दलील दी कि भारत की शीर्ष अदालत में समझौता प्रस्ताव लंबित है। उन्होंने न्यायालय से इस मामले में स्थिति स्पष्ट करने का अनुरोध किया। माल्या इस समय ब्रिटेन में है और उस पर प्रवर्तन निदेशालय ने बैंकों से लिए गए 9,000 करोड़ रुपए के कर्ज वापस नहीं करने का आरोप लगाया है। ब्रिटेन में माल्या के खिलाफ प्रत्यार्पण कार्रवाई भी चल रही है।
विशेष धन शोधन अदालत ने पिछले साल पांच जनवरी को विजय माल्या को भगोड़ा आर्थिक अपराधी घोषित करने के साथ ही उसकी संपत्तियों को जब्त करने की कार्यवाही शुरू कर दी थी। बंबई उच्च न्यायालय ने भी माल्या की संपत्ति जब्त करने के लिए विशेष अदालत के समक्ष चल रही कार्यवाही पर पिछले साल 11 जुलाई को रोक लगाने से इंकार कर दिया था। इसके बाद, उच्च न्यायालय की खंड़पीठ ने धन शोधन रोकथाम कानून से संबंधित मामलों की विशेष अदालत में सुनवाई पर रोक के लिए माल्या का आवेदन पिछले महीने खारिज कर दिया था।