हिमाचल दस्तक। सराहां
सराहां बाजार के बीचों बीच बना ऐतिहासिक शिरगुल तालाब यहां आने वाले हर किसी के लिए आस्था और सौंदर्यता का प्रतीक है। आस्था के जुड़े इस तालाब के पानी से पूरा सराहां कस्बा और ग्रामवासियों की खेती निर्भर करती है। रविवार को समस्त सराहां ग्रामवासियों ने सामुहिक होकर हर साल की भान्ति इस बार भी तालाब की साफ सफाई की। ग्रामवासियों ने तालाब के अंदर पड़े कचरे और काई तथा दीवारों पर जमे घास को हटाया। तालाब के बाहर चारों तरफ़ साफ सफाई की गई।
इसके साथ ही ग्रामीण परिवेश में मान्यता है कि जब गर्मी में बारिश कम होती है या फिर यूं कहें कि सूखा पडऩे की स्तिथि होती है तो जल देवता को पूजा जाता है। पहाड़ों में जल देवता की इस पूजा को बुजड़ू कहते है। इसमें ग्रामवासियों द्वारा पानी की बावड़ी या प्राकृतिक चश्मो के साथ साथ तलाबों ओर जोहडिय़ों की साफ सफाई सामुहिक होकर करते है। साफ सफ़ाई के साथ ही उसी स्थान पर जल देवता (ख्वाजा ) के नाम का बुजड़ू ( मीठे चावल) बनाया जाता है। इसी बुजड़ू से सभी के द्वारा जल देवता( ख्वाजा ) की पूजा की जाती है। मान्यता है कि ऐसा करने से जल देवता प्रसन्न होते है और बारिश होती है।
बता दे कि गर्मी का मौसम आते ही पानी की कीमत हर किसी को माइने रखती है। कुओं, तालाब, बावड़ी तथा पानी के प्राकृतिक चश्मों की साफ सफाई सदियों से इस मौसम में पुश्तों से होती आ रहीं है। ताकि गर्मियों में इंसानो के साथ साथ वन प्राणियों व पशुओं के पीने योग्य पानी मिले।