शकील कुरैशी: शिमला
हिमाचल प्रदेश में बिजली क्षेत्र से जुड़ी सरकारी एजेंंसियों को अब इंवेस्टमेंट अप्रूवल हासिल करने के लिए हर साल लाखों रुपये की अदायगी करनी होगी। राज्य बिजली बोर्ड समेत दूसरी एजेंसियां पावर कॉर्पोरेशन, पावर ट्रांसमिशन कॉर्पोरेशन और स्टेट लोड डिस्पैच सेंटर को भी अब अपने वार्षिक प्लान की अप्रूवल के लिए पैसा देना होगा क्योंकि विद्युत नियामक आयोग ने इसके लिए फीस रख दी है। अभी तक इस पर कोई पैसा नहीं लिया जाता था मगर भविष्य में पैसे देने होंगे। इन सभी उपक्रमों के लिए अलग-अलग फीस निर्धारित कर दी गई है, जिसे बाकायदा अधिसूचित भी कर दिया गया है।
बताया जाता है कि राज्य बिजली बोर्ड को अपना वार्षिक इंवेस्टमेंट प्लान अप्रूव करवाने के लिए विद्युत नियामक आयोग को 15 लाख रुपये की अदायगी करनी होगी। पहले इसपर कोई पैसा नहीं लगता था। इसी तरह से ट्रांसमिशन कॉर्पोरेशन को 10 लाख रुपये देने होंगे, जबकि पावर कॉर्पोरेशन को भी 10 लाख और एसएलडीसी को 2 लाख रुपये की राशि देनी होगी। इन सरकारी उपक्रमों के लिए यह फीस निर्धारित हुई है। बता दें कि बिजली बोर्ड राज्य में बिजली डिस्ट्रीब्यूशन का काम करता है, जिसका काम प्रदेश भर में हर घर को बिजली पहुंचाने का है।
हर साल बिजली के रेट निर्धारित करने के लिए इनकी ओर से टैरिफ, नियामक आयोग को भेजा जाता है जो दरें निर्धारित करते हैं। इसके साथ इंवेस्टमेंट का प्लान हर साल भेजा जाता है, जिसमें बिजली बोर्ड की 800 से 1 हजार करोड़ रुपये तक की इंवेस्टमेंट रहती है। इस प्लान को नियामक आयोग मंजूरी देता है। अब इसके लिए बोर्ड को हर साल 15 लाख रुपये की राशि चुकता करनी होगी।
ट्रांसमिशन कॉर्पोरेशन को चुकाने होंगे 10 लाख
ट्रांसमिशन कॉर्पोरेशन का भी इंवेस्टमेंट प्लान रहता है, जिसने कौन से नए ट्रांसमिशन सेंटर बनाने हैं, कहां-कहां पर ट्रांसमिशन लाइनें डाली जानी है इस तरह का सालाना प्लान होता है। इसके लिए अब उसे 10 लाख देने होंगे। इसी तरह से पावर जनरेशन का काम पावर कॉर्पोरेशन कर रहा है, जिसके अपने प्रोजेक्टों का निर्माण होता है और उसका भी इंवेस्टमेंट प्लान बनाया जाता है। इसके लिए उसे 10 लाख देने होंगे। स्टेट लोड डिस्पैच सेंटर का काम बिजली की बिक्री करने का है।
दूसरे राज्यों को हिमाचल की बिजली को बेचना और वह बिजली किस रेट पर किस एजेंसी को दी जाएगी इसका करार यह एजेंसी करती है। इस एजेंसी का काम बिजली के लिए दूसरी एजेंसियों से करार करना और बोर्ड के लिए पैसा जुटाना है। इसका वार्षिक प्लान भी नियामक आयोग ही अप्रूव करता है। लिहाजा इस एजेंसी को अब 2 लाख की राशि चुकता करनी होगी।
नियामक आयोग को खुद करना होगा खर्चे का इंतजाम
सरकार की ओर से अब नियामक आयोग का कामकाज चलाने के लिए पैसा नहीं दिया जा रहा है। इसलिए नियामक आयोग को अपने खर्चों को चलाने के लिए खुद इंतजाम करना होगा और उसने अब इंतजाम करने शुरू कर दिए हैं। नियामक आयोग का सालाना 6 करोड़ तक का खर्च है जिसे पूरा करने के लिए अब वह अलग-अलग एजेंसियों से धनराशि लेगा। नियामक आयोग के पास कई तरह की पेटीशन आती हैं जिनके निपटारे के लिए भी फीस की वसूली कर रहा है।