हिमाचल दस्तक : विजय कुमार : संपादकीय : राहुल गांधी के रेप को लेकर दिए बयान से संसद में इतना उबाल आ गया, जितना ऐसी वारदातों के बाद भी नहीं आता है। भाजपा के सांसद चाहे वे महिलाएं हों या पुरुष, इसे देश और महिला-पुरुषों का अपमान बताकर खूब हो-हल्ला करने लग गए। बयान को लेकर कई तरह की परिभाषाएं गढ़ी गईं। बयान के कई अर्थ निकाले गए।
सभी इसे लेकर राहुल गांधी के खिलाफ स्पीकर से कड़ी कार्रवाई की मांग करने लगे गए। हालांकि यह बयान संसद में नहीं दिया गया था। यहां तक कह दिया गया कि ऐसा बयान पहले नहीं दिया गया है। जो नेता राहुल गांधी को गंभीरता से न लेने की बात करते थे, उनके रुतबे के बारे में कहने लग गए। वे यह बताने में लग गए कि एक पार्टी के बड़े नेता को यह शोभा नहीं नहीं देता। उनके खानदान, जिसे वे कोसते रहते हैं, उसके महिमा मंडन के बाद कहते सुने गए कि ये उनके परिवार की प्रतिष्ठा के अनुरूप नहीं है। अगर ऐसी ऊर्जा देश में हो रहीं रेप की घिनौनी वारदातों के लिए बचा ली जाए तो शायद तस्वीर कुछ और हो।
राहुल गांधी ने जो कहा, वह गलत है या सही, यह अलग मसला है। उसके विरोध के कई और तरीके भी हैं। उनके खिलाफ मामला दर्ज करवाया जा सकता है। अगर उन्हें सजा देनी होगी तो अदालत यह काम बखूबी कर सकती है। पहले भी वह अपने बयान के लिए माफी मांग चुके हैं। इस मसले के लिए संसद का समय खराब करना उचित नहीं है।
सांसदों को अपनी ऊर्जा देश के अन्य बड़े मसलों के हल पर लगानी चाहिए। राहुल गांधी भागे नहीं जा रहे, जो उनकी माफी के लिए जल्दबाजी की जाए। और इस नेता की माफी से कुछ बड़ा हासिल होने वाला भी नहीं है। यह सही है कि उनको सोचकर बयान देना चाहिए, लेकिन उनके गलत बयानों का नुकसान किसको ज्यादा हुआ है, यह तो जग जाहिर है। बयानों से आहत होने के बजाय सांसदों को बेटियों से हो रही बर्बरता पर अंकुश लगाने का प्रबंध करना चाहिए।