राजेंद्र ठाकुर। स्वारघाट
करीब 15 वर्षों की लंबी ब्रेक के बाद जिला मंडी की गुम्मा नमक खानों में दोहन होने से अब पुनः पशुपालकों को गुम्मा नमक मिलना शुरू हो गया है।
बाजारों में गुम्मा नमक दिखने से जहां पशुपालकों व भेड़पालकों के चेहरे पर झलक रही खुशी को साफ देखा जा सकता है तो वहीं पहले की तुलना में अब इस नमक का 10 गुना अधिक मूल्य हो जाने से किसानों के बीच निराशा का भी माहौल है।
आपको बता दें कि हिमाचल के जिला मंडी में द्रंग, गुम्मा तथा मैगल नामक स्थानों पर इस चट्टानी नमक के भंडार उपलब्ध हैं जिनका दोहन स्वतंत्रता प्राप्ति से भी पूर्व किया जा रहा है, परंतु पिछले कई वर्षों से कुछ कानूनी औपचारिकताओं तथा अनधिकृत तौर पर इस चट्टानी नमक का दोहन होने से इस खनन कार्य को पूर्ण रूप से बंद कर दिया गया था जिसके फलस्वरूप बाजार में इस चट्टानी नमक की कमी आ गई थी।
इस औषधीय नमक के न मिलने से मजबूरी में पशुपालकों को सिंधु या अन्य सफेद नमक पशुओं को देकर ही काम चलाया जा रहा था। स्वारघाट में बाजार तथा हाईवे किनारे ट्रालियों के माध्यम से बिक रहे इस गुम्मा नमक को स्थानीय किसानों सहित गुजरते पर्यटक भी इस औषधीय नमक को हाथोंहाथ ले रहे हैं।
गुम्मा नमक के सेवन से पशुओं में होने वाली आयोडीन की कमी पूरी होती है। पशुओं की पाचन शक्ति को दुरुस्त रहती है, पशुओं की प्रजनन क्षमता बढ़ती है। गुम्मा नमक पशुओं की गर्भ धारण प्रक्रिया में भी सहायक होता है। गुम्मा नमक हमारे लिए भी किसी औषधि से कम नहीं है। जुकाम या गले की खराश होने पर गुम्मा नमक के गरारे करने से फायदा मिलता है। मोच आने पर मोच वाले स्थान पर गुम्मा नमक बांधने से आराम हो जाता है।