15 अगस्त स्पेशल
जीवन ऋषि, धर्मशाला
समूचा देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। तेरह से लेकर पंद्रह अगस्त तक हर घर पर तिरंगा फहराया जा रहा है, लेकिन दुनिया की सबसे बड़ी मैन मेड डिस्प्लेसमेंट (विस्थापन) हमारे सिस्टम पर बड़ा सवाल बनी हुई है। साल 1972 में पौंग बांध बना था, विस्थान 1970 से ही शुरू हो गया था। विस्थापित एंव प्रदेश पौंग बांध विस्थापित समिति के महासचिव हुक्म चंद गुलेरी को अब भी याद है कि कैसे 20722 परिवारों को एक साथ दूसरे प्रदेश के लिए विस्थापित कर दिया था। इन परिवारों में डेढ़ लाख की आबादी थी।
इनमें ज्यादातर को राजस्थान व कइयों को पंजाब-हरियाणा में अलाटमेंट की बात कही गई। इनमें 15124 परिवार अलाटमेंट के हकदार पाए गए थे। साल 1973 से 75 तक महज 9195 अलाटमेंट हुईं। साल 1976 से 78 तक 6575 अलाटमेंट कैंसिल हुई। इसी बीच कुछ अलाटमेंट रिस्टोर भी हुईं। साल 1992 तक 4983 लोगों तक ही पोजेशन था। अभी भी 8713 पौंग बांध विस्थापितों को ही जमीन मिल पाई है। इन 8713 परिवारों में 1468 का कहना है कि उनकी जमीन बंजर है। विस्थापितों के 7639 परिवार अब भी जमीन से वंचित हैं।
राजस्थान के गंगानगर में सवा दो लाख एकड़ जमीन थी। विस्थापितों का कहना है कि इसमें आधी जमीन वहां के लोगों व माफिया ने कब्जा ली थी। एक अन्य विस्थापित हंसराज कहते हैं कि राजस्थान में जो जमीन मिली थी, उसकी भी कीमत चुकानी पड़ी थी। इसमें सियासत ने कभी इन लोगों का दर्द न समझा । इसमें चार हजार मुरब्बे मोहनगढ़ आदि तहसील जैसलमेर में हैं। यह जमीन बंजर है, इस कारण आबाद नहीं हो सकी। वहां स्कूल, अस्पताल,सड़क, पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं की कमी है। तो आइए, आजादी के अमृत महोत्सव पर यह उम्मीद करें कि विस्थापितों के सैकड़ों पत्रों में से किसी एक पर केंद्र सरकार गौर कर ले या फिर हिमाचल के सांसद इस मसले को पुख्ता ढंग से उठाएं।
पांच-पांच करोड़ दे सरकार
विस्थापित एंव शिक्षाविद पीसी विश्वकर्मा कहते हैं कि हल्दून वैली में नमक को छोड़कर सारी चीजें खेतों में पैदा होती थी। जैसे जैसे पानी चढ़ता गया, गरीब किसान विस्थापन को मजबू हो गए। हक से वंचित हर परिवार को पांच-पांच करोड़ रुपए मिलने चाहिए। हिमाचल से लोग विस्थापित हुए हैं, तो हिमाचल की सरकारों और नेताओं का ही फर्ज है कि वे राजस्थान से अपना हक मांगें, उसके बाद जमीन या पैसे को विस्थापितों को अलाट करे।