- मुझसे मत पूछ, मेरे इश्क में क्या रखा है,
- एक शोला है, जो सीने में छुपा रखा है…
- खुद कोई जिम्मा लिया नहीं, पर सबक दिया पढ़ा
पर्दा उठा, राज खुला
हिमाचल दस्तक :उदयबीर पठानिया : यह पुरानी फिल्म अनारकली के एक गीत के बोल हैं। बुधवार को यह गीत और इसके अल्फाज दशकों बाद राजनीतिक तौर पर जीवंत होते उस वक्त नजर आए, जब पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल धर्मशाला में मीडिया से रू-ब-रू हुए। पत्रकार वार्ता शुरू करने का आगाज सबसे जुदा था तो अंजाम भी अलहदा ही था।
धूमल जब सामने आए तो देखा कि उनके साथ बैठने वालों सहित मीडिया की भी बड़ी भीड़ है तो तब तक खुद खड़े रहे, जब तक सब एडजस्ट नहीं हो गए। पत्रकार वार्ता शुरू होते ही खुद यह एलान कर दिया कि क्यों न आज सवालों से ही आगाज किया जाए? सवालों का आगाज हुआ तो उनका हर जवाब सरकार को लाजवाब करने वाला आया। सिलसिलेवार ये सवाल उठे कि जनाब,आपके वक्त में सभी मंत्री धर्मशाला के सचिवालय में बैठते थे, अब नई जयराम सरकार का कोई मंत्री यहां नहीं बैठता? दूसरी राजधानी के नाम पर शांता कुमार बट्टा लगा गए हैं? अब जो जवाब आए, वह वहां मौजूद हर आदमी के लिए हैरानी की वजह बन गए।
प्रो. धूमल ने एक भी सवाल के लिए खुद को जिम्मेदार नहीं माना। साफ कहा कि मेरे दौर से जुड़े सवाल मुझसे पूछिए। जिनके लिए मैं जिम्मेदार ही नहीं हूं,उनको मेरे आगे मत उछालो। साफ संकेत था कि धूमल ने मुद्दों के मरे हुए सियासी सांपों को अपने गले में आने की हर वजह खत्म कर दी। यह कहा कि मंत्री बैठते तो बैठते थे। अब क्यों नहीं बैठते, यह मंत्री जाने या फिर पार्टी अध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती। इशारा साफ था कि सरकार और संगठन को इस बाबत जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
शीतकालीन प्रवास के बंद होने की वजह से आम गरीब आदमी के सरकार से दूर होने के सवाल पर उन्होंने बड़ी ही चतुराई से यह समझा दिया कि जनता को उसकी मजबूरियों को सरकार द्वारा समझा जाना चाहिए। कहा कि वीरभद्र सिंह के दौर में कागजी नोटिफिकेशन ही हुई थी, मैंने तो लोअर हिमाचल को तरजीह देने में कोई कमी नहीं रखी थी। मेरे दौर में तो कई दफ्तर यहां जनता के लिए खुले थे।
अब अगर बंद या ट्रांसफर हो रहे हैं तो जयराम से पूछिए। मेरी जवाबदेही तो मेरे कार्यकाल तक ही सिमित रहेगी। ओल्ड पेंशन स्कीम, कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारी, नियमित कर्मचारियों की बात पर कहा कि हमने तो लगातार दो वेतनमान दिए। अब क्या है, सरकार का विषय है। एक मर्तबा तो संभावित से भी ज्यादा की अंतरिम राहत बांटी थी। धर्मशाला उपचुनाव में अपनी ही पार्टी के बागी के सवाल पर यह कहा कि बहुत सारी गणनाओं के बाद टिकट फाइनल होता है।
साथ ही जोड़ दिया कि प्रदेश अध्यक्ष इस बाबत सही बता सकते हैं। जो मंत्री साथ बैठे थे, वे भी चुप थे और सत्ती भी। दरअसल प्रो. धूमल मीडिया के सवालों के जरिए ऐसा लेक्चर दे गए, जो असल में सरकार के लिए सवालों का पुलिंदा थे। निचले हिमाचल से लग रहे भेदभाव के आरोपों पर उन्होंने सरकार को कोई सलाह तो नहीं दी, अलबत्ता यह समझा दिया कि पहले की सरकारें किस तरह से निचले हिमाचल के साथ सरोकार रखती थीं ? सियासी माहिर भी यह मान रहे हैं कि शिमला की राह खोलने में अगर इस बार मंडयाली भाइयों ने खोली है तो फोरलेन करने में निचले हिमाचल का भी रोल रहा है।
इनका मानना है कि शायद धूमल भी इस खतरे को वक्त रहते पहचान गए हैं। क्योंकि साल 2012 में उन पर भी यह आरोप लगे थे कि वह माइनस कांगड़ा सरकार बनाने की हसरत पाले हुए थे। पहले दो साल में ही सरकार धर्मशाला में अपनी एक उपलब्धि नहीं बता पा रही है। यह बहुत स्ट्रोंग अलार्मिंग सिग्नल है। खैर, धूमल का अंदाज-ए-बयां बहुत कुछ बोल-समझा गया है। सरकार को अगर भला नहीं कहा तो बुरा भी नहीं कहा। जिम्मेदारियों का एहसास ही करवाया।