संदीप शर्मा : कुल्लू
मनाली के निजी स्कूल में टीबी से ग्रसित बच्चों की संख्या अब छह तक पहुंच गई है। इनको अब स्वास्थ्य विभाग की निगरानी में छह माह तक दवाइयां दी जाएंगी। वहीं 32 बच्चे जो भी टीबी ग्रसित रोगियों के संपर्क में आए थे, उन्हें तीन माह तक टीपीटी दी जाएगी।
टीबी को रोकने के लिए इन बच्चों को यह दवाइयां दी जाएंगी। मनाली के निजी स्कूल में बच्चों में टीबी पाए जाने के बाद स्वास्थ्य विभाग की टीमें भी अलर्ट हो चुकी हैं।
मिशन डायरेक्टर हेल्थ व डिप्टी डायरेक्टर ने कुल्लू में स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक कर स्कूल में टीबी फैलने को लेकर भी विस्तार से चर्चा की। वहीं इंडो स्विस स्कूल का निरीक्षण कर स्कूल प्रबंधन को भी जरूरी दिशा निर्देश दिए। इतना ही नहीं स्कूल के होस्टल व मैसआदि भी निरीक्षण स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के द्वारा किया गया। बता दें कि हर माह टीबी को रोकने के लिए स्वास्थ्य विभाग को सरकार की ओर से विभिन्न शिविरों का आयोजन करने के लिए बजट भी मुहैया करवाया जाता है। वहीं हिमाचल प्रदेश सरकार ने प्रदेश को टीबी मुक्त बनाने के लिए 2023 का लक्ष्य रखा हुआ था, लेकिन कुल्लू में टीबी के रोगियों की संख्या एक दम से जिस तरह से बढ़ी है वह इस अभियान को शायद ही अब पूरा होने दे।
हालांकि भारत सरकार ने भी देश को टीबी मुक्त बनाने के लिए 2025 तक का लक्ष्य रखा हुआ है। बता दें कि स्वास्थ्य विभाग की टीम ने जिन नौ बच्चों को एडमिट कर गैस्टिक लेवाज टेस्ट किया था उन सभी बच्चों की रिपोर्ट नेगेटिव आई है, जिससे कि स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने भी थोड़ी राहत की सांस ली है। फिर भी कहीं न कहीं जो अन्य बच्चे टीबी के संक्रमित पाए गए हैं तथा जिन 32 बच्चों को तीन माह तक टीपीटी लगी है उससे स्कूल प्रबंधन के रहन-सहन व खान पान के साथ-साथ स्वास्थ्य विभाग के खाद्य विंग पर भी कई तरह के प्रश्न चिह्न लग रहे हैं।
हर साल मिलता है करोड़ों का बजट:
भारत सरकार से हर वर्ष टीबी के रोकने के लिए करोड़ों रुपयों का बजट मुहैया करवाया जाता है। बकायदा इसके लिए हर जिले में रिवाइज्ड नेशनल टयूवरक्लौसिस कंट्रोल प्रोग्राम के तहत प्रोग्राम आफिसर रखे गए हैं, लेकिन अब इस मिशन पर भी कई तरह के प्रश्न लग रहे हैं कि आखिर गांव-गांव में कब ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन कर लोगों को टीबी के रोग से बचाने के लिए जागरूक किया गया। मात्र कागजों में ही लीपापोती की जा रही हैद्व, जोकि एक चिंता का विषय बना हुआ है।
बच्चों में टीबी रोग फैलने के तीन मुख्य कारण
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने जब स्कूल का निरीक्षण किया गया तो यह पाया गया कि इंडो स्विस स्कूल क्लाथ में बच्चों में टीबी फैलने के तीन मुख्य कारण हैं। पहला होस्टल में जरूरत से ज्यादा बच्चे रखे गए हैं। वहीं दूसरा क्रॉस वैंटीलेशन की सुविधा भी नहीं है और जो बच्चे कम खाना खाते हैं, जिनकी इम्यूनिटी कमजोर थी वह बच्चे टीबी रोग से ग्रसित हो गए हैं।
शिक्षा उपनिदेशक उच्च सुरजीव रॉव का कहना है कि अगर होस्टल के मानक गलत हैं और अन्य खामियां हैं तो स्कूल प्रबंधन पर सख्त कार्रवाई अमल में लाई जाएगी।
क्या है टीपीटी:
टीपीटी को ट्यूवरक्लोसिस प्रीवैंटिव ट्रीटमेंट कहते हैं। यह उन लोगों को दिया जाता है जो सीधे-सीधे टीबी रोगियों के संपर्क में आए हों या उनके साथ रह रहे हों। ऐसे में इन लोगों को टीबी के रोग से बचाने के लिए तीन या छह माह तक टीपीटी दी जाती है।
इंडो स्विस स्कूल में टीबी के रोगी बच्चों की संख्या छह तक पहुंच गई है। स्वास्थ्य विभाग इस पर पूरी तरह से नजर बनाए हुए है। छह बच्चे जो टीबी के रोगी पाए गए हैं उन्हें छह माह तक दवाइयां दी जाएंगी। वहीं 32 बच्चे ऐसे हैं, जिन्हें तीन माह तक टीबी के रोग को रोकने के लिए टीपीटी दी जाएगी।
-डॉ. रणजीत ठाकुर
बीएमओ, नग्गर।