जीवन ऋषि : धर्मशाला
‘इन्हां अखियां च पावां किवें कजली वे अखियां च तू बसदा’ पंजाब की मशहूर लोक कलाकार डॉली गुलेरिया ने लिट फेस्ट में जैसे ही इस तराने को छेड़ा तो पूरा ऑडिटोरियम भावुक हो गया। मौका था धर्मशाला कॉलेज ऑडिटोरियम में लिट फेस्ट के अंतिम सत्र का। लिट फेस्ट के दूसरे दिन कुल छह सत्र हुए। अंतिम सत्र महान गायिका सुरिंदर कौर की बेटी डॉली गुलेरिया और उनकी बेटी सुनयनी शर्मा का था, जिसका हर कोई बेसब्री से इंतजार कर रहा था। मंच संचालक राघव गुलेरिया द्वारा परिचय सत्र के बाद डॉली गुलेरिया ने अपनी पुस्तक ‘बगदे पाणियां दा संगीत’ के बारे में बताया।
यह किताब गुलेरिया ने अपनी माता महान गायिका सुरिंदर कौर को लेकर लिखी है। सुरिंदर कौर को नाइटेंगल ऑफ पंजाब कहा जाता है। दो सौ फोटो वाली इस दुर्लभ किताब में सुरिंदर कौर के सफर के बारे में जानकारी है। किताब के अनछुए पहलुओं के साथ ही दर्शक दीर्घा से डॉली गुलेरिया के समक्ष गीतों की फरमाइशें आना शुरू हो गई और फिर शुरू हुआ लोकगीतों का ऐसा अनूठा दौर कि हर कोई अपनी सीट से टस से मस न हुआ।
इस दौरान मां-बेटी ने बाजरे दा सिट्टा गीत की प्रस्तुति से दर्शकों को भाव विभोर कर दिया, ‘मांवां ते धियां’ की प्रस्तुति से हर कोई भावुक हो उठा। डॉली गुलेरिया ने ‘लट्ठे दी चादरÓ गीत का अर्थ समझाते हुए पेशकश दी। इसी तरह ‘जुत्ती कसूरी, पैरी न पूरी, हाय ओ रब्बा सानूं टुरना पेयाÓ से भी खूब रंग जमाया। बिना म्यूजिक प्रस्तुतियों का आलम यह रहा कि सोशल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के प्लेटफॉर्म के जरिये देश भर से लाइक्स और कमेंट की बौछार हो उठी। मां-बेटी ने ‘इक मेरी अख काशनी’ गीत भी गाया। उन्होंने बताया कि पंजाबी को उन्होंने कभी एक सब्जेक्ट के तौर पर स्टडी नहीं किया है।
बाद में दर्शक दीर्घा में बैठे उपायुक्त डॉ. निपुण जिंदल समेत कई वीवीआईपी ने गीतों की फरमाइश की, जिस पर ‘काला डोरियाÓ, डाची वालेया, ‘चन्न कित्थे गुजारी आई रात’ और ‘मैंनूं हीरे हीरे आखे, हाय नी मुंडा लंबड़ां दा’ गीतों पर दर्शकों ने तालियां बजाकर उनका साथ दिया। कुल मिलाकर डॉली गुलेरिया ने इस लिट फेस्ट को यादगार बना दिया।
डॉ. गौतम ने सिखाया संस्कृति का संरक्षण
पहाड़ी के मशहूर साहित्यकार एवं लेखक डॉ. गौतम व्यथित ने अपने सत्र के दौरान बताया कि कैसे पहाड़ी साहित्य और संरक्षण के लिए प्रयास हुए हैं और आगे क्या करने की जरूरत है। चर्चा में सुनीला शर्मा, अभ्युदिता, प्रज्ञा मिश्रा शामिल रहे।
सौंदर्य, संघर्ष, युद्ध और ममता की देवी है नारी : सौम्या सांबशिवन
धर्मशाला। ‘दो कदम अभी चले नहीं, रफ्तार की बातें करते हैं’। धर्मशाला लिट फेस्ट आईपीएस ऑफिसर सौम्या सांबशिवन ने बेहद सहज अंदाज में जब ये शब्द एक पंक्ति में पिरोए तो हर कोई तारीफ किए बिना न रह सका। सौम्या का यह पहला साहित्य सम्मेलन था। सौम्या केरल की रहने वाली हैं। उनके घर में हिंदी नहीं बोली जाती है, लेकिन जब उनकी हिमाचल में पोस्टिंग हुई तो उन्होंने हिंदी की हर विधा को सीख लिया। सौम्या ने निधि सहौड़ और जुपिंदरजीत सिंह से चर्चा में कहा कि विधा दस तरह की होती है।
विधा से हर किसी को सिद्ध कर सकते हैं। चर्चा के दौरान उन्होंने नारी को सौंदर्य, संघर्ष, युद्ध और ममता की देवी बताया। उन्होंने चाणक्य सीरियल का जिक्र करते हुए उस प्रसंग का जिक्र किया, जब कौटिल्य कहते हैं कि शिक्षक कभी साधारण नहीं होता। निर्माण और प्रलय उसके हाथ में होता है। शिक्षक चाहे तो कई चंद्रगुप्त और अशोक बना सकता है।