हिमाचल दस्तक : रमेश सिद्धू : संपादकीय : बचपन में कहीं पढ़ा था…कानून के उग आए हैं जंगल, वृक्ष कहीं दिखाई नहीं देते। यहां हम कानून की जगह अभियान या योजनाएं लिख दें तो आज का परिदृष्य खुद ब खुद आंखों के सामने घूम जाएगा। गांधी जयंती है, तो फिलहाल चर्चा स्वच्छ भारत अभियान पर। आज का कोई भी अखबार उठाकर देख लीजिए। छोटे-बड़े सभी नेता, आला अधिकारी, कर्मचारी अखबार के पन्नों पर हाथ में झाड़ू थामे शान से फोटो खिंचवाते मुस्कुराते नजर आएंगे।
प्रधानमंत्री का आदेश है, 2 अक्तूबर को पूरे देश का सरकारी अमला सफाई अभियान चलाएगा। तो अपने-अपने आकाओं के सामने अपनी कर्मठता साबित करने का इससे बेहतर तरीका तो मिल नहीं सकता। स्मार्ट फोन का जमाना है। हाथ में झाड़ू थामे तस्वीरें खिंचवाइए या सेल्फी ही ले लीजिए। हैशटैग एंजॉइंग स्वच्छ भारत अभियान के साथ सोशल मीडिया पर अपलोड कर दीजिए। हजारों नहीं तो सैकड़ों लाइक्स तो पक्के हैं। अखबार में फोटो छप गई तो सोने पर सुहागा। वरना फ्रेंड लिस्ट में तो बॉस है ही। कर्मठता व देश के प्रति समर्पण देख ही लेगा।
2 अक्तूबर 2014 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के स्वच्छ भारत के सपने को पूरा करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वच्छ भारत अभियान को एक जनांदोलन बनाना चाहते थे। आज अभियान को शुरू हुए पांच साल पूरे हो गए। चाहत यही थी कि एक बड़े परिवर्तन की दस्तक सुनने को मिलेगी। लेकिन, बीतते वक्त के साथ तस्वीर ज्यादा उम्मीद अफजाह नजर नहीं आई। कारण साफ है, स्वच्छता अभियान एक सतत प्रक्रिया में तबदील न होकर एक या कुछ विशेष दिनों की कवायद मात्र बनकर रह गया। गलियों, नालियों सड़कों की हालत आज भी वही है। नालियों से उठती दुर्गंध ऑक्सीजन में घुलकर आज भी फेफड़ों में समा रही है।
रात के अंधेरे में चुपचाप सबकी नजर बचाकर घर का कचरा सड़क किनारे फेंकने का दस्तूर भी आदत में फिलहाल शुमार है। लावारिस पशु या आवारा कुत्ते उस कचरे से सड़क का शृंगार कर ही देते हैं। कार में चलते-चलते पानी की खाली बोतल या चिप्स के पैकेट सड़क पर फेंकने का प्रचलन भी गया नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी के इरादे नेक ही रहे होंगे, लेकिन यक्षप्रश्न यह है कि सफाई अभियान महज एक दिन का प्रतीकात्मक कार्यक्रम क्यों बनकर रह गया है और ये सिलसिला कब तक चलता रहेगा? सफाई देश की सबसे गंभीर समस्याओं में से एक है।
सार्वजनिक स्थलों, गली-मोहल्लों व घर के आसपास समुचित सफाई का अभाव ढेरों बीमारियां फैलाता है। सफाई व्यवस्था बनाए रखना हालांकि स्थानीय निकायों की जिम्मेदारी हे, लेकिन आम नागरिक भी इसकी जवाबदेही से बच नहीं सकता। सोचना ही होगा कि अपने आसपास के क्षेत्र को गंदगी से बचाने या गंदगी फैलाने में हम कितना योगदान देते हैं। मतलब यह कि इस अभियान का बाहें फैलाकर स्वागत कीजिए और स्वच्छता को समाज के प्रति जिम्मेदारी के रूप में स्वीकार करें।