शाहपुर के लदवाड़ा में एक ऐसा स्कूल चल रहा है, जिसके पास स्मार्ट क्लासरूम के अलावा हर टीचर बुकलेस है। चंबी मैदान के सामने यह स्कूल चल रहा है। सीबीएसई से मान्यता प्राप्त इस स्कूल की प्रिंसिपल अनुराधा राणा से हिमाचल दस्तक के जिला कांगड़ा ब्यूरो प्रभारी जीवन ऋषि ने बात की। सवालों का सिलसिला शुरू हुआ, तो इस दौरान कई रोचक पहलू सामने आए। पेश हैं वार्ता के कुछ अंश…
लदवाड़ा में सीबीएसई से मान्यता प्राप्त स्कूल में प्रिंसिपल अनुराधा राणा जगा रहीं शिक्षा की अलख
सबसे पहले तो यह बताएं कि यह स्कूल कब से चल रहा है?
हमने अप्रैल 2018 में इस स्कूल की स्थापना की थी। हमारा स्कूल अब सीबीएसई से मान्यता प्राप्त है। इसमें दिल्ली, चंडीगढ़ व बेंगलुरू जैसे शहरों की तर्ज पर शिक्षा प्रदान की जा रही है। शुरू में हमने तीन साल एक कंपनी से टाइअप किया था। इसमें हर माह बाकायदा टीचर ट्रेनिंग प्रोग्राम भी चलते थे।
आपको स्कूल चलाने की प्रेरणा कहां से मिली?
मैंने शिक्षा विभाग में करीब 35 साल तक सेवाएं प्रदान की हैं। मेरे पति भी कॉलेज प्रोफेसर हैं। हमारा उद्देश्य है कि छात्रों को अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधाएं मिलें। यही कारण
है कि हमने इस पाठशाला की शुरुआत की है।
कोविड के अनुभव कैसे रहे?
कोविड का दौर बहुत खराब था। इसमें हर किसी पर बुरा असर पड़ा है। हम क्योंकि पहले से ही ऑनलाइन या डिजिटल एजुकेशन के लिए तैयार थे, ऐसे में हमें पढ़ाई में ज्यादा दिक्कत नहीं आई। खैर, कोविड का मानसिक, आर्थिक और सामाजिक असर तो हुआ ही है।
कोविड का बच्चों पर क्या असर देखते हैं?
कोविडकाल में रीडिंग हैविट घटा है। बच्चों की सिटिंग हैविट पर भी असर हुआ है। अब हमने लीड कंपनी से टाइअप किया है। डिजिटली यह कंपनी बहुत मजबूत है।
छात्रों के लिए क्या सुविधाएं दे रहे हैं?
हम निर्धन छात्रों को हर तरह की छूट देते हैं। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय स्तर की शिक्षा देकर बच्चों को कंपीटीशन के लिए तैयार किया जा रहा है, ताकि वे भविष्य में कामयाबी की सीढिय़ां चढ़ सकें।
नए छात्र आपके साथ कैसे जुड़ सकते हैं?
इसके लिए हमारी वेबसाइट है। इसके अलावा ई-मेल, व्हाट्सऐप, फेसबुक, इंस्टाग्राम जैसे माध्यमों से जुड़ रहे हैं।
छात्रों और अभिभावकों को क्या संदेश है?
छात्रों के लिए हमारा यही संदेश है कि वे कभी हार न मानें। फाइटर ही जीतते हैं। अभिभावकों के लिए यही कहना चाहूंगी कि मौजूदा समय में उनकी जिम्मेदारी ज्यादा बढ़ गई है। शिक्षकों के साथ अभिभावकों को भी मिलकर प्रयास करने होंगे,
तभी क्वालिटी एजुकेशन का सपना पूरा हो सकेगा।