जीवन ऋषि :धर्मशाला
खेती में अहम योगदान देने वाले सबसे बड़े जिला कांगड़ा में किसान तेजी से रासायनिक खादों से मुंह मोड़ रहे हैं। पिछले तीन साल में ही कांगड़ा जिला में 15 हजार मीट्रिक टन अंग्रेजी खाद की खपत घटी है। यह अचंभा उस समय हुआ है, जब किसान हाइब्रिड बीजों की तरफ ज्यादा जा रहे हैं। जिला में साढ़े तीन लाख के करीब शुद्ध किसान हैं। इसके अलावा तीन लाख के करीब ही ऐसे लोग हैं, जो बागवान की श्रेणी में आते हैं या फिर तेजी से बागवानी की तरफ बढ़ रहे हैं। हालात कैसे भी हों, ताजा सच्चाई यह है कि जिला के किसानों ने तेजी से रासानियक खादों की जगह देसी को अपनाना शरू कर दिया है।
ताजा आंकड़ों पर गौर करें, तो साल 2019-20 में खेती के दोनों सीजन खरीफ और रबी में नाइट्रोजन की कुल खपत 7170 मीट्रिक टन थी। इसी तरह फास्फेट की खपत 1906 मीट्रिक टन थी। वहीं उस साल पोटाश 883 मीट्रिक टन जिला में डाली गई थी। यानी एक साल में तीनों को मिला दिया जाए, तो कुल खाद 9959 मीट्रिक टन खर्च हुई। अब साल 2021-22 के आंकड़ों पर गौर करें, तो इसमें साल के दोनों सीजन में नाइट्रोजन की खपत 6845 मीट्रिक टन रही। फास्फेट की खपत 1086 मीट्रिक टन रही। पोटाश की खपत 597 मीट्रिक टन रही। कुल खपत 8529 मीट्रिक टन रही। फर्क साफ है, महज दो साल में अंग्रेजी खाद का आंकड़ा 15 हजार मीटिक टन घट गया।
डॉ. राहुल कटोच की मेहनत लाई रंग
मौजूदा जिला कृषि उपनिदेश राहुल कटोच लगातार फील्ड दौरे कर रहे हैं। वह किसानों को प्राकृतिक खेती के प्रति प्रेरित कर रहे हैं। राहुल कटोच ने बताया कि अब वक्त आ गया है कि हम फिर से प्राकृतिक खेती की तरफ लौट आएं। प्राकृतिक खेती के लिए कृषि विभाग ने कई योजनाएं चला रखी हैं। इन योजनाओं के सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। जिला में हजारों किसान प्राकृतिक खेती अपना चुके हैं। किसानों को चाहिए कि वे कृषि विभाग की योजनाओं का लाभ उठाकर इस दिशा में आगे बढ़ें।
पालम-कांगड़ा- नूरपुर घाटियां उगलती हैं सोना
खेती और बागबानी के लिए विख्यात कांगड़ा जिला की तीनों घाटियों पालम, कांगड़ा और नूरपुर में गेहूं- धान की फसलें खूब होती हैं। इसके अलावा आलू व नकदी फसलें आर्थिकी का बड़ा साधान है। जिला में अब किसान तेजी से बागबानी की तरफ भी बढ़ रहे हैं। यह बड़ा सकारात्मक साइन है।