हिमाचल दस्तक ब्यूरो। बिलासपुर : मत्स्य पालन में नवीनतम उन्नति, प्रोद्यौगिकी और उद्यमिता पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला में प्रदेश में मत्स्य उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए कलस्टर सिस्टम अपनाने पर बल दिया गया। इसके तहत चुनिंदा जिलों में स्थान का चयन कर मत्स्य किसानों के समूह बनाए जाएंगे और मछली उत्पादन की नवीनतम तकनीक पर उत्पादन शुरू करवाया जाएगा।
आने वाले समय में इसके दूरगामी परिणाम देखने को मिलेंगे। प्रदेश में ट्राउट व कार्प प्रजाति की मछली का उत्पादन बढ़ाने और उसकी ब्रांडिंग करने पर भी मंथन हुआ। विशेषज्ञों की राय व सुझावों पर मत्स्य पालन विभाग द्वारा कार्य योजना तैयार की जाएगी और इसे प्रदेश भर में कार्यान्वित किया जाएगा। कार्यशाला के समापन के बाद मत्स्य पालन विभाग के प्रांतीय निदेशक सतपाल मेहता ने पत्रकारों को यह जानकारी देते हुए बताया कि इस दौरान देश भर से जुटे वैज्ञानिकों व विशेषज्ञों ने अपने अमूल्य सुझाव दिए, जिससे न केवल मत्स्य किसानों की आय को दोगुना किया जा सकेगा, बल्कि मछली से विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन तैयार करके ऊंचे दामों पर बेचे जा सकेंगे।
विशेषज्ञों की राय पर अमल करते हुए विभाग वृहद कार्ययोजना तैयार करेगा, जिसका लाभ मत्स्य किसानों को होगा। उन्होंने बताया कि प्रदेश के कई मत्स्य किसान उद्यमी की श्रेणी में आ चुके हैं और उन्होंने कई लोगों को रोजगार भी प्रदान करना शुरू कर दिया है, जिन्हें इन योजनाओं से और अधिक लाभ मिलेगा। मत्स्य उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए कलस्टर सिस्टम अपनाया जाएगा। इसके तहत चुनिंदा जिलों में एक निश्चित स्थान का चयन कर किसानों के समूह बनाए जाएंगे और मछली उत्पादन की नवीनतम तकनीक पर उत्पादन शुरू करवाया जाएगा। नालागढ़ व ऊना में कई किसानों द्वारा शुरू किए गए प्रोजेक्ट्स के सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं।
उन्होंने बताया कि दो दिन तक चली इस राष्ट्रीय कार्यशाला में वैज्ञानिकों ने मत्स्य पालन के क्षेत्र में नवीनतम तकनीक पर मंथन व चिंतन किया है और कार्यशाला में जो भी सुझाव व शोध निकल कर सामने आए हैं, उन्हें एक कार्ययोजना के माध्यम से प्रदेश में लागू किया जाएगा ताकि चुनौतियों का सामना कर रहे 17 हजार से ज्यादा मत्स्य किसान परिवारों को लाभ मिल सके। उन्होंने बताया कि बायोफिल्टर विधि से कम पानी में अधिक मछली उत्पादन किया जा सकता है। फिश प्रोसेसिंग के तहत विभिन्न प्रकार के मछली के व्यंजन तैयार कर सीधे बाजार में बेचे जा सकेंगे। साथ ही किस प्रकार से मछली को तीन साल तक तरोताजा रखा जा सकता है, इस पर भी वैज्ञानिकों ने सुझाव दिए।
देशभर के वैज्ञानिकों ने बताई आधुनिक तकनीक
राष्ट्रीय कार्यशाला में नेशनल फिशरीज डिवेल्पमेंट बोर्ड (एनएफडीबी) के कार्यकारी निदेशक रतनीराज ने बायोलॉक कल्चर पर विस्तृत जानकारी दी। सेवानिवृत्त निदेशक एवं कंसलटेंट एनएफडीबी आरएन पंडता ने ट्राउट मछली की नई तकनीक के साथ ही प्रदेश के ऊंचाई वाले इलाकों में बनी झीलों में ट्राउट उत्पादन, सर्वे ऑफ इंडिया के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. हर्षवर्धन जोशी ने एक्वापोनिक्स, शिफी संस्थान मुंबई से आईं वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं असिस्टेंट प्रोफेसर उपासना साहू ने एक्वाकल्चर तकनीक पर जानकारी दी।
वहीं, री-सर्कुलेटरी एक्वाकल्चर सिस्टम (आरएएस) आगरा के उपनिदेशक डॉ. पुनीत ने अपने विभाग के सिस्टम के बारे में जानकारी दी। सिक्किम के मत्स्य निदेशक सुनील प्रधान ने ट्राउट पालन पर नवीनतम जानकारियां दीं। सेंट्रल फिशरीज ऑफ फ्रेश वाटर एक्वाकल्चर भुवनेश्वर के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. एससी रथ ने फिश फीड पर जानकारी दी। इसके अलावा निदेशालय कोल्ड वाटर फिशरीज रिसर्च (डीसीएफआर) भीमताल उत्तराखंड के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एनएन पांडेय ने ठंडे इलाकों में ट्राउट मछली पालन के बारे में कई जानकारियां मत्स्य किसानों को दीं।