उदयबीर पठानिया : यह बाहर की अंदरुनी बात है
होटल डी’पोलो भाजपा की तीन दिवसीय कार्यकारिणी का बैठक स्थल। मुख्य द्वार पर सेना के आला अफसरों के दफ्तर की तरह साज-सज्जा। मुख्यद्वार के दो किनारों पर तीन भालों वाले स्टैंड और उसके आगे टी-स्टैंड। इन भालों और स्टैंड्स पर भाजपा के झंडे। माहौल बिल्कुल वैसा, जैसा भाजपा अपने किले को अभेद्य बनाए रखने के लिए 2022 में चाहती है। इसी माहौल में बुधवार को होटल डी’पोलो में हिमाचल भाजपा कार्यकारिणी की तीन दिवसीय बैठक का शुभारंभ हुआ। मिशन रिपीट और साल 2022 में पुन: सत्ता वापसी के लिए चिंतन-मंथन शुरू हुआ। होटल के भीतर मंथन था, मगर होटल के बाहर कार्यकर्ताओं में चिंतन और चिंता एक साथ चल रहीं थीं। कार्यकर्ताओं की फौज कई मुद्दों पर खुद के लिए अशांत थी, तो कहीं अपने नेताओं की हरकतों की वजह से परेशान थी।
दरअसल, बुधवार को कुछ ऐसे हादसे हुए जो थे तो भाजपा के अंदरूनी मसले, पर जब सरेआम हुए तो चर्चाएं शुरू हो गईं। पहला किस्सा यूं हुआ कि सीएम साहब के पहुंचते ही कुछ सीनियर मंत्रियों ने जूनियर नेताओं की क्लास ले ली। जब यह सब हो रहा था, तब आम कार्यकर्ताओं समेत कुछ आला अफसर भी मौजूद थे। बड़े नेताओं के सामने जूनियर नेताओं की क्लास लगी तो अफसर माहौल देख रहे थे और कार्यकर्ता अपने-अपने इलाके के नेताओं की फजीहत। इसके बाद जो अंडर करंट निकला, वह पॉलिटिकल पॉवर हाउस में अंदरूनी शॉर्ट सर्किट की वजह बन गया। इधर नेताओं ने हॉल में एंट्री ली तो बाहर कार्यकर्ताओं में रोष पनप गया।
सीधा आरोप लगा कि जब अफसरों के सामने यह हो-हल्ले होने हैं तो नेताओं और कार्यकर्ताओं की अहमियत कौन अफसर समझेगा ? घर की फूट से वाकिफ अफसर भी पार्टी कैडर की परवाह नहीं करेंगे। अफसरों को पता होगा कि इनकी आपस में नहीं बनती है तो मजे लो। न कार्यकर्ता कोई काम करवा पाएंगे और न ही नेता। खैर, बहुत कुछ ऐसा हुआ जो होटल के भीतर बैठे मंथन कर्ताओं और बाहर बैठे कार्यकर्ताओं के चिंतन से बिल्कुल अलग था। होटल के अंदर सत्ता के पहाड़ पर बने रहने के लिए मंथन था तो बाहर इसी पहाड़ के भीतर धधक रहा लावा था। बैठक के पहले दिन जो अंदर हुआ वो अंदर ही रह गया, पर जो बाहर हुआ वो जगजाहिर हो गया। जो कुछ हुआ वो ऐसा था…
गुट सरकार में बनते थे अब तो संगठन
कार्यकर्ता इस बात से भी खफा थे कि अब संगठन में भी गुट बनने शुरू हो गए हैं। एक वरिष्ठ कार्यकर्ता ने यहां तक कह दिया कि धूमल चुप बैठे हुए हैं। शांता कोरोनाकाल के बाद से शांत हैं। जयराम ठाकुर आराम से सरकार चला रहे हैं। बावजूद इसके भाजपा में गुटबाजी चरम पर है। कौन बना रहा है गुट ? संगठन हावी क्यों हो रहा है ? सिर्फ बाड़ ही इल्जामों के घेरे में क्यों? खलिहान के मालिक क्यों नहीं? क्यों चंद मंत्रियों और संगठन के नेताओं के आगे पूरी भाजपा गौण हो रही है ?
बीजेपी अति कर रही कार्यक्रमों की
सबसे हैरान करने वाली बात यह भी थी कि भाजपा कार्यकर्ता लगातार हो रहे कार्यक्रमों से तंग आ चुके हैं। इनका कहना था कि हर तीसरे दिन भाजपा नेता कोई न कोई नया कार्यक्रम ले आते हैं। खुद जमीन पर उतरना नहीं, सिर्फ मंच साझे करने से कार्यकर्ता जमीन में धंसा जा रहा है। काम-धंधा कोई है नहीं और सियासत से किसी कार्यकर्ता का घर चलना नहीं। नेता होते तब भी कोई बात होती। कुछ नेता थानेदार बन गए हैं।
आंखें बंद क्यों?
एक भाजपा नेता ने तो यहां तक आगाह कर दिया कि अभी तो लावा धधक रहा है। संभावित खतरे को देख कर भी नेता कबूतर की तरह आंखें बंद करके बैठे हुए हैं। इनको लगता है कि खतरा टल जाएगा। शुक्र यह मनाओ कि पॉलिटिकल पोटेंशियल वाले लीडर चुप हैं। खुदा न खास्ता यह बाहर निकले तो लावा भी फूटेगा और नुकसान भी होगा। शांति तब तक ही है जब तक लावा शांत है।