विजय कुमार : संपादकीय:
प्रदेश विधानसभा के विशेष सत्र में संसद से पारित एससी-एसटी आरक्षण की मियाद बढ़ाने वाले विधेयक पर मुहर लगने के दौरान जो किस्से सामने आए, वे चौंकाने वाले हैं। इनसे साफ हो गया है कि अभी भी जातिवाद की कुप्रथा से प्रदेश के लोग ऊपर नहीं उठ पाए हैं।
ऐसे हालातों में तो इसके निकट भविष्य में समाप्त होने की कोई उम्मीद नहीं है। प्रदेश से जातीय भेदभाव की खबरें समाचार पत्रों में अकसर छपती रहती हैं। कभी मिड-डे मिल के दौरान बच्चों को अलग बैठाकर खाना परोसा जाता है तो कभी किसी मंदिर में दलितों का प्रवेश वर्जित होने के पोस्टर चस्पा कर दिए जाते हैं। कई बार लोगों को मंदिरों में जाने से रोका जाता है। सामाजिक और निजी समारोहों में भी भेदभाव होता है। जाति के हिसाब से खाना बनाने और परोसने के किस्से सामने आते हैं।
जातिसूचक शब्दों से अपमान की तो बात पूछिए ही मत। प्रदेश में जातीय बंधन देश के मुकाबले ज्यादा कड़े हैं। यही भेदभाव और शोषण का कारण बनते हैं। लोगों के मन में जातिवाद की बुराई घर कर गई है। सभी इसे सत्य मानकर चुप रहते हैं। अमीर-गरीब और शिक्षित-अशिक्षित सभी जातिवाद की बुराई को नहीं छोड़ रहे हैं। विधानसभा मेंं सामने आए किस्से इस स्थिति की पुष्टि करते हैं।
एक मंत्री और विधायाक यदि मंदिर में नहीं जा पा रहे हैं तो यह कौन सी स्वस्थ परंपरा है। बेशक उन्हें किसी ने नहीं रोका, पर वे मंदिर तो नहीं जा पाए। इसी तरह अलग धाम की बात सामने आई। ये किस्से शर्मसार करने वाले हैं। इनसे तो यह साफ हो गया है कि आरक्षण देने भर से कुछ होने वाला नहीं है। एससी-एसटी को मुख्य धारा में लाने के लिए सभी को अपनी मानसिकता में बदलाव लाना होगा।