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वीरभद्र सिंह ने 365 में से 23 दिन ऋण लेकर चलाई थी
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कैग ने कहा-अब राजकोषीय सुधार के रास्ते पर हिमाचल
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वेतन खर्च में 11 फीसदी पेंशन में 14% बढ़ोतरी हुई
राजेश मंढोत्रा। तपोवन (धर्मशाला) : जयराम सरकार की वित्तीय नीतियों पर कैग ने अपनी मुहर लगा दी है। शनिवार को विधानसभा पटल पर रखी गई कैग रिपोर्ट में अरसे बाद राज्य सरकार के लिए तारीफ थी। इसकी वजह है जयराम सरकार का वित्तीय अनुशासन।
रिपोर्ट खुलासा करती है कि मुख्यमंत्री जयराम ने अपनी सरकार के पहले ही साल यानी वर्ष 2017-18 में साल के 365 दिनों में से 363 दिन राजकोष को संतुलित रखा और केवल 2 दिन लोन लेकर बैलेंस बनाया गया। जबकि वीरभद्र सिंह की सरकार में वर्ष 2016-17 में 365 दिनों से 23 दिन लोन लेकर काटे गए। कैग ने कहा है कि ये डिटेल रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पास उपलब्ध हिमाचल सरकार के राजकोष से आई है। यह पहली बार है कि भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानी कैग ने अपनी रिपोर्ट में जयराम सरकार का हौसला बढ़ाते हुए राज्य को राजकोषीय सुधार के पथ पर माना है।
राज्य सरकारों के इतिहास में ऐसा अरसे बाद हुआ है कि कैग सरकार के वित्तीय रास्ते के प्रति सकारात्मक हो। ऐसा इसलिए क्योंकि इस साल 41,267 करोड़ की कुल कमाई के बदले सरकार ने कुल 37,811 करोड़ का खर्चा किया और साथ ही विभिन्न अनुदानों और विनियोजनों में 3843 करोड़ की बचत भी की।
मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने यहां तपोवन में राज्य विधानसभा के शीत सत्र के आखिरी दिन रिपोर्ट पेश की। पिछले बजट सत्र में लोकसभा चुनाव के कारण कैग रिपोर्ट पेश नहीं हो पाई थी। 2017-18 में सरकार ने कर्मचारियों के वेतन और पेंशन पर 15,475 करोड़ खर्च किए। वेतन में 11 फीसदी और पेंशन में 14 फीसदी बढ़ोतरी हुई। रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य ने राजस्व घाटे को खत्म करने का लक्ष्य हासिल किया और 14वें वित्तायोग की सिफारिश पर सेंट्रल ट्रांसफर में बढ़ोतरी के कारण वित्तीय जवाबदेही तय करने वाले एफआरबीएम एक्ट के संतुलन को बनाए रखा। राजस्व घाटा 922 करोड़ बढ़कर 3870 करोड़ है और राजस्व अधिशेष 920 करोड़ से घटकर 314 करोड़ रह गया है।
राजकोषीय घाटा राज्य सकल घरेलू उत्पाद का 2.85 फीसदी था, जो कि लक्ष्य के भीतर था। हालांकि इस दौरान भी राज्य का ऋण और जीएसडीपी का अनुपात 37.55 फीसदी था, जो चिंताजनक है। कैग ने यह भी कहा कि राज्य सरकार ने 14वें वित्तायोग की सिफारिश के मुताबिक अभी तक एफआरबीएम कानून में संशोधन नहीं किया है, जो बाध्यता है। राज्य की राजस्व प्राप्ति 2017-18 में 4 प्रतिशत बढ़कर 27,367 करोड़ हो गई और जीएसटी लागू होने के बाद कर उगाही में बढ़ोतरी थी।
इसमें से केवल 35 प्रतिशत राजस्व प्राप्ति राज्य के अपने संसाधनों जैसे करों और गैर कर राजस्व से जुटाई गई जबकि शेष 65 प्रतिशत राशि केंद्रीय करों और शुल्कों में राज्य के हिस्से से मिली। राज्य व्यय में इस दौरान 7 फीसदी बढ़ोतरी हुई और यह 27,053 करोड़ तक पहुंच गया। वाहनों पर ग्रीन टैक्स और अन्य कर लगने से उगाही बढ़ी। मुख्य वजह एचआरटीसी से एसआरटी आना था। बिजली बोर्ड ने भी विद्युत शुल्क जमा करवाया।
अगले 10 साल में चुकाने होंगे लोन 30,357 करोड़
कैग रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2016-17 तक राज्य की सभी राजकोषीय देयताएं 51,030 करोड़ रुपये की थीं। ये सकल राज्य घरेलू उत्पाद का 37.55 फीसदी और राजस्व प्राप्तियों की 1.86 गुणा है। चिंता की बात यह है कि अगले 10 साल में अब राज्य को ऋणों के भुगतान के तौर पर ही 30,357 करोड़ चुकाने हैं। इसमें से शुद्ध ऋण की राशि 10 हजार करोड़ से कम है और बाकी ब्याज ही है। 2017-18 में बाजार से लिए लोन में 1200 करोड़ बढ़ोतरी हुई, क्योंकि राज्य सरकार ने राष्ट्रीय बचत योजना निधि के अगेंस्ट लोन लेना बंद कर दिया।
मुख्य खामियां अब भी बोझ बने हुए हैं बोर्ड-निगम
- राज्य सरकार के अधिकांश बोर्ड-निगम बोझ बने हुए हैं। इन पर सरकार ने 31 मार्च, 2018 तक 3533 करोड़ लगाया हुआ है, लेकिन प्रतिफल केवल 5.88 फीसदी है, जबकि सरकार अपने लोन पर 7.78 फीसदी ब्याज दे रही है।
- 23 विभागों ने 1800 करोड़ के 1560 उपयोगिता प्रमाणपत्र प्रस्तुत ही नहीं किए। कैग की बार-बार आपत्ति के बावजूद केंद्र से आए 902 करोड़ रुपये राज्य की कुछ एजेंसियों या विभागों को सीधे ट्रांसफर कर दिए गए।
- बिजली बोर्ड की उदय स्कीम के कारण 2890 करोड़ के ऋण के कारण राज्य के कुल व्यय पर असर पड़ा। पीडब्ल्यूडी और आईपीएच में 11 स्कीमों पर 176 करोड़ खर्च करने के बावजूद ये पूरी नहीं हुई और ये खर्च बेकार गया।
- जुलाई, 2018 तक 80 लाख की हानि या चोरी के 48 मामले दर्ज सूचित किए गए। इनमें से 46 मामले 5 साल पुराने थे। वैट एवं अन्य टैक्स से संबंधित 490 करोड़ की हानि के 863 मामले सामने आए।