ओबीसी नेता अनिल को दी भाजपा मंडल अध्यक्ष की कुर्सी, प्रदेश कांग्रेस को वक्त से पहले फिर डाला दिया मुसीबत में
उदयबीर पठानिया। धर्मशाला : कम उम्र में ही सियासत में एंट्री करने वाले विशाल नैहरिया भले ही लिटल मास्टर के नाम से मशहूर हुए हों, पर अब मास्टरस्ट्रोक जडऩे भी शुरू हो गए हैं। शनिवार को धर्मशाला मंडल के अध्यक्ष पद पर नैहरिया ने ओबीसी वर्ग से संबंधित अनिल कुमार को बिठा दिया। यह मास्टरस्ट्रोक इसलिए अहम माना जा रहा है कि उपचुनाव में भाजपा को सबसे बड़ी टक्कर इसी समुदाय से आजाद प्रत्याशी से मिली थी।
आजाद प्रत्याशी राकेश चौधरी ने भाजपा संग कांग्रेस को भी इतना सियासी धुआं दिया था कि खुद दूसरे नंबर पर रहे थे और कांग्रेस को तीसरे पायदान पर धकेल दिया था। नतीजा यह हुआ था कि कांग्रेस की जमानत जब्त हुई और भाजपा को अपने ही बागी ने दिन में तारे दिखा दिए थे। ऐसे में यह जरूरी हो गया था कि सामाजिक और जातीय समीकरणों में ऐसा तालमेल बिठाया जाए कि साल 2022 के आम विधानसभा चुनावों में कोई घालमेल होने का अंदेशा न रहे।
खुद अनिल चौधरी भी टिकट की दौड़ में थे। पर टिकट न मिलने पर उन्होंने बगावत की बजाए पार्टी की अदावत को ही तरजीह दी। धर्मशाला में ओबीसी फैक्टर का अपना आधार रहा है। ऐसे में नैहरिया ने भी अनिल के नाम को आगे करके पार्टी लाइन पर निष्ठाएं बनाए रखने वाले अनिल को तरजीह दी, जबकि हकीकत यह थी कि डेढ़ दर्जन से ज्यादा नाम प्रदेश भाजपा के पास पहुंचे थे। इन नामों में प्रदेश भाजपा ने भी नैहरिया की तरह अनिल को ही प्राथमिकता दी।
माना जा रहा है कि नैहरिया की इस सोच में भाजपा के पॉलिटिकल बेनिफिट्स तो थे ही, साथ मे भाजपा के प्रति ओबीसी विरोधी होने की पनप रही सोच की वह मोच भी निकल गई, जो उपचुनाव राकेश चौधरी की कथित अनदेखी के आरोपों से पार्टी पर लगी थी। सियासी माहिर भी मान रहे हैं कि लिटल मास्टर विशाल का यह मास्टरस्ट्रोक बदली सोच का नतीजा है।
वजह गिनवाते हुए वह कहते हैं कि राकेश ने चुनाव के तुरंत बाद अपना झुकाव कांग्रेस की तरफ दिखा दिया था। ऐसे में यह जरूरी था कि आम विस चुनावों में कांग्रेस के साथ निपटने में भाजपा के पास इस वर्ग का कोई अहम चेहरा अध्यक्ष पद पर आता। पुराने राकेश के सियासी क्लेश तो अब कांग्रेस के लिए नफे-नुकसान का सामान हो सकते हैं।