हिमाचल प्रदेश : विजय कुमार : संपादकीय : प्रदेश में विकास की योजनाओं में खींचतान नई बात नहीं है। हर नेता विकास योजनाओं को अपने क्षेत्र में स्थापित करवाना चाहता है। जब बात सत्ता और विपक्ष के बीच आती है तो यह खींचतान और बढ़ जाती है। कई बार यह इतनी बढ़ जाती है कि अंधा बांटे रेवडिय़ां मुड़-मुड़ अपनों को देवे की कहावत भी सच साबित हो जाती है।
हालांकि हर प्रतिनिधि का काम अपने क्षेत्र का विकास करवाना होता है। अपने क्षेत्र का विकास उसकी प्राथमिकता में रहे, यह सही भी है। लेकिन अपने क्षेत्र के आगे कुछ न दिखे, यह सरासर गलत है। अपने क्षेत्र के विकास की भावना की अति से कई बार प्रदेश के हित गौण हो जाते हैं, यह प्रवृत्ति ज्यादा खतरनाक है। प्रदेश ने इसका खामियाजा कई बार भुगता है। कुछ योजनाएं तो इस कारण सालों तक लटकी रही हैं। और तो और बात उनके लैप्स होने तक भी जा पहुंची है। सालों तक लटकी योजनाओं में केंद्रीय विश्वविद्यालय बड़ा उदाहरण है। इसको लेकर तो खींचतान की अति ही हो गई थी।
बाद में जैसे-तैसे मसला सुलझा, लेकिन इसका कोई तार्किक हल नहीं निकल पाया। बात दो जगह कैंपस पर आकर खत्म हुई, जिसे सही नहीं कहा जा सकता है। इसके बाद बारी प्रदेश को मिले एकमात्र एम्स की आई। इसकी स्थापना में भी खींचतान के कारण विलंब हुआ। अब बड़े एयरपोर्ट पर खींचतान शुरू हुई है। और भी कई ऐसे उदाहरण हैं। यह प्रवृत्ति ठीक नहीं है। विकास योजनाओं का क्रियान्वयन प्रदेश हित में होना चाहिए।
जहां योजना का ज्यादा लाभ हो, वहीं स्थापना हो। खींचतान के बजाय हर क्षेत्र के विकास की ओर ध्यान दिया जाना चाहिए। हर क्षेत्र की जरूरत और परिस्थितियों के हिसाब से विकास का खाका खींचा जाना जाहिए। विकास योजनाओं में जिसकी लाठी, उसकी भैंस वाली कहावत की तर्ज पर काम नहीं होना चाहिए।