राजीव भनोट/संतोष कौशल। अंब (ऊना)
यूं तो हर किसी के जीवन में दुख आते हैं और अपनों के सहारे दुखभरा समय जैसे-तैसे काट लेते हैं, लेकिन आज ऐसे ही दुखभरी सच्चाई की बात रहे हैं, जिसे पढ़कर आपका मन भी पसीज जाए।
बात कर रहे हैं उपमंडल अंब के गांव रिपोह मिसरां की, जहां पर अनाथ भाई-बहन दूसरों के आंगन में अपना जीवन काटने को मजबूर हैं। मां-बाप के गुजरने के बाद इन भाई-बहन का साथ कुदरत ने भी नहीं दिया और मकान काफी पुराना होने के चलते टूट गया।
ऐसे में इन दोनों का साथ देने वाले कई आए और कई चले गए, लेकिन अभी तक मदद के नाम पर कुछ हासिल न हुआ। दिव्यांगता का शिकार बहन मीना का अभी तक अपगंता का प्रमाण पत्र नहीं बन पाया है। वहीं दो वर्ष मकान टूटे को हो गए, लेकिन पैसा मंजूर नहीं हो पाया है। ऐसे में अब दूसरे का आंगन ही इनको सिर ढकने के लिए छत दे रहा है।
बता दें कि 33 वर्षीय मीना कुमारी बचपन से ही दिव्यांग है, ये 3 बहनें हैं, जिनमें से 2 की शादी हो चुकी है, जबकि छोटा भाई 30 वर्षीय है, जो कि मजदूरी कर अपना व बहन की देखरेख कर रहा है। दिव्यांगता के कारण मीना चलने-फिरने में असमर्थ है, जिस कारण शादी भी नहीं हुई। ऐसे में भाई के ऊपर पूरी जिम्मेदारी है।
मीना के पिता की मौत करीब 8 वर्ष पहले हुई, जबकि मां को गुजरे कुछ समय ही हुआ है। ऐसे में अपना मकान न होने के चलते भाई-बहन दुखभरी जिंदगी व्यतीत कर रहे हैं।
मां गुजरने के बाद तकलीफ में मीना
दिव्यांगता का शिकार मीना कुमारी मौजूदा समय में खुद को असहाय महसूस कर रही है। भले ही मीना का छोटा भाई साथ है, लेकिन एक महिला का दर्द महिला ही जान सकती है।
चलने-फिरने में असमर्थ होने के कारण अंदर-बाहर जाने में एक महिला पर निर्भर रहना पड़ रहा है। जब तक मां साथ थी, तब तक मीना को ज्यादा दिक्कत नहीं थी। मां के गुजरने के बाद अब पड़ोसी महिला ही सहारा बनी हुई है। कभी-कभार बहनें आकर मीना का दर्द कम कर जाती हैं।
दो विधायक आए, लेकिन हालात वही
ऐसा नहीं है कि प्रशासन व नेताओं को मीना व उसके छोटे भाई के दर्द की व्यथा नहीं मालूम है। प्रशासनिक अधिकारी सहित चिंतपूर्णी के विधायक बलवीर चौधरी व गगरेट के विधायक राजेश ठाकुर भी मीना के घर आ चुके हैं, लेकिन हालात जस के तस बने हुए हैं। दो वर्ष मकान टूटे हुए हो गए, लेकिन अभी तक नए मकान के लिए पैसा मंजूर नहीं हो पाया है।