कमल शर्मा : शाहतलाई।
शाहतलाई गर्मियों के मौसम जंगलों को आग से बचाने वन विभाग के पुख्ता इंतजामों की पोल खुली । आग बुझाने के लिए विभाग की तैयारियां अधूरी है। वन विभाग कर्मचारियों के पास न तो पर्याप्त उपकरण है न ही संख्याबल है। जंहा जंगल की आग से जहां बहुमूल्य वन संपदा राख हो रही है, वहीं वन्य जीवन भी व्यापक स्तर पर प्रभावित हो रहा है। आग से बचने के लिए जंगली जानवरों ने रिहायशी इलाकों की ओर किया रूख। ऐसा ही मामला वन परिक्षेत्र झंडूता के अंतर्गत आने वाली घंडीर व तलाई जंगल में लगी आग से लाखों रुपए की वन संपदा जलकर राख हो गई। हालांकि वन विभाग के कर्मचारियों ने आग बुझाने के प्रयास किए लेकिन आग की लपटें इतनी तेज थी कि चंद मिनटों में आग ने चारों ओर विकराल रूप धारण कर लिया।
उल्लेखनीय है कि बढ़ते तापमान के साथ-साथ जंगल भी दहक रहे हैं। वंही क्षेत्र की गर्मी को बढ़ाने में आग में घी डालने का काम कर रही है। सुत्रो से मिली जानकारी के अनुसार घंडीर जंगल के कलर नामक स्थान पर बीती रात दस बजे शरारती तत्वों ने आग लगा दी जब तक विभाग के कर्मचारियों को भनक लगी तब तक आग ने विकराल रूप धारण कर लिया था।जिस कारण कलर जंगल के 12 हैक्टेयर ,कुठेडा जंगल तीन हैक्टेयर वह तलाई जंगल आठ हैक्टेयर जल कर राख हो गया। इन घटनाओं से अब तक तक लाखों रुपए की वन संपदा जलकर राख हो चुकी है। फिर भी विभाग का दावा कर रहा है कि आग को कु घंटे के अंदर ही नियंत्रित कर लिया था जबकि जंगल रातभर दहकते रहे।
गौरतलब है कि वन विभाग के पास जंगलों को आग से बचाने के लिए सिर्फ फायर वाचर ही सबसे बड़ा साधन है। फायर वाचर के पास सिर्फ एक दराट और एक रेकर (चलारू इकट्ठा करने का उपकरण) दिया गया है। इसके अलावा वन विभाग आग से निपटने के लिए अग्निशमन विभाग का सहारा लेता है। जबकि अग्निशमन का वाहन भी सिर्फ सड़क के आसपास वाले क्षेत्रों में ही जा पाता है। साफ है कि जंगलों को आग से बचाने के लिए इंतजाम नाकाफी हैं। वन विभाग ने अपने हर उपमंडल में जंगल क्षेत्र के आधार पर फायर वाचर तैनात किए हैं, जिनका काम आग के समय जंगलों को बचाना है। काविलेजिगर है कि फायर लांचर द्बारा दराट व रेकर से सूबे में वन संपदा को नहीं बचाया जा सकता। इस बजह से हर साल करोड़ों रुपये की वन संपदा राख हो रही है।