उदयबीर पठानिया । रंग बदलती सियासत
साल 2022 के आम विधानसभा चुनावों को लेकर भाजपा में खास हलचल शुरू हो चुकी है। पहले से शोर भाजपा में मचा हुआ है कि 2022 के टिकट वितरण में बड़े-बड़े चेहरों का वहम हटाया जाएगा। अब इसी शोर में यह नई खुसर-फुसर शुरू हो गई है कि चेहरे तो दूर की बात भाजपा वर्ग-समुदाय विशेष के कोटों में भी कटौती करने के मूड में आ गई है।
दरअसल,इस शोर के उठने के पीछे को वजहें भी हल्की-फुल्की नहीं हैं। सिलसिलेवार बात करें तो सबसे ज्यादा हल्ला मचा हुआ है ओबीसी बिरादरी को लेकर। सरकार बनने के बाद से ही कांगड़ा भाजपा में जंग शुरू हो गई थी। सबसे पहले इसका आगाज भाजपा संगठन के एक बड़े नेता और ओबीसी बिरादरी के कद्दावर नेता के बीच हुआ। यह आज तक लगातार जारी है। दूसरा प्रकरण तब हुआ जो जब जमीनी विवाद को लेकर इसकी चपेट में कैबिनेट मिनिस्टर और ओबीसी बिरादरी की ही सरवीण चौधरी आ गईं। इनके कद में ऐसी कटौती हुई कि शहरी विकास मंत्रालय से सीधे यह महिला कल्याण विभाग तक पहुंच गईं।
जबकि सीनियर मोस्ट और भाजपा के संकटमोचक रहे ध्वाला को सरकार में कैबिनेट का रैंक तो जरूर दिया गया, मगर सत्ता में हिस्सेदारी को लेकर वह रंक की ही भूमिका में चले आ रहे हैं। साफ है कि प्रदेश भाजपा कांगड़ा ओबीसी लीडरशिप को कटघरे में खड़ी है। सियासी माहिर यह मान रहे हैं कि 2022 में तमाम ओबीसी नेता संगठन और सरकार में टिकट के लिए हाथ मलते नजर आएं तो बड़ी बात नहीं होगी।
ध्वाला के ज्वालामुखी विधानसभा क्षेत्र में हालिया पंचायतीराज व्यवस्था में जिला परिषद चुनाव में जीती एक पुराने कांग्रेसी विजेंदर धीमान को उनकी पत्नी समेत भाजपा में एक बड़े संगठन के नेता के इशारे पर शामिल कर लिया गया है।
इशारा साफ है कि ध्वाला की राह में रोड़े कम नहीं होंगे। यही हल्ला सरवीण चौधरी के लिए भी गूंज रहा है। यानी क्या ओबीसी समुदाय के मौजूदा चेहरे अगले चुनावों में मौजूद रहे पाएंगे? यह यक्ष प्रश्न सामने उभर आया है। अब सवाल उठता है कि अगर भाजपा में ओबीसी से सियासी पंगा होता है तो फिर तारणहार समुदाय कौन होगा? इस कड़ी में नाम आ रहा है, शेड्यूल ट्राइब फैक्टर का। इस खाते से अचानक जो नाम उभर कर सामने आया है, वह भी भाजपा संगठन के बड़े नेता हैं।
शेड्यूल ट्राइब खाते से यह माना जा रहा है कि वह पालमपुर से ताल ठोंक सकते हैं। हाल ही में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर पालमपुर में उनकी पीठ थपथपा चुके हैं। इन नेता जी के जेपी नड्डा के साथ प्रगाढ़ संबंध होने की खबरें तो हमेशा हावी रहती ही हैं। इन हालात में फिलवक्त तो यह तय दिख रहा है कि भाजपा में कल को अगर पीढ़ी परिवर्तन की तरह टिकटों में खासकर ओबीसी समुदाय में भी बदलाव हो जाता है तो बड़ी बात नहीं होगी। कांगड़ा की स्थापित ओबीसी लीडरशिप के कैप्टनों के जहाज अभी से खतरनाक संगठनात्मक और सरकारी लहरों से जूझ ही रहे हैं…
संगठन वालों का दबका…
कांगड़ा में संगठन का सरकार में हस्ताक्षेप भी अव्वल दर्जे का है। संगठन के नेताओं की धमक के साथ अब इनकी ठसक भी बहुतों के लिए कसक का सबब बनी हुई है। संगठन के इस कदर हावी होने की खबरें हमेशा हवा में रहती हैं कि सरकार की कद्र बन ही नहीं पाती है।
कई मसलों में तो विधायक-मंत्री खुद के गौण होने का दर्द भी ऑफ द रिकॉर्ड दर्ज करवाते मिल जाते हैं। कांगड़ा के भाजपाई खानदान में यह हवा खूब बहती है कि हमें मौजूदा विरासत में नेता कम और थानेदार ज्यादा मिले हुए हैं।
ठाकुर लॉबी भी है अनमनी सी
राजपूत लॉबी भी भाजपा के लिए सहज नहीं है। विपिन परमार से हेल्थ महकमा छिनने के बाद उनको विधानसभा अध्यक्ष पद पर तैनाती इस समुदाय को सिवाए पॉलिटिकल एडजस्टमेंट से ज्यादा नजर नहीं आ रही। हालांकि राकेश पठानिया को वन मंत्री का रुतबा देकर पलड़ा बराबर रखने की कोशिश जरूर की गई। जयदेवा वाला तबका भी असहज ही है।