वरिष्ठ संवाददाता, शिमला
हिमाचल प्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र के पहले दिन सदन ने अपने चार दिवंगत विधायकों को श्रद्धांजलि दी। मुख्यमंत्री और सदन के नेता जयराम ठाकुर ने सबसे पहले अपना वक्तव्य रखा। उन्होंने कहा कि इस धरती पर कोई भी स्थाई नहीं है जो भी व्यक्ति आता है, वह अपने कर्म करके यहां से चला जाता है। चाहे वह बड़ा हो या छोटा सभी को जाना है। सदन ने अपने चार सदस्यों पंडित सुखराम, रूप सिंह, मस्तराम व प्रवीण शर्मा के निधन पर शोक व्यक्त किया। सदन में दो मिनट का मौन रखकर चारों को श्रद्धांजलि भी दी गई।
मुख्यमंत्री ने कहा कि पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम का हिमाचल की राजनीति में अपना अलग स्थान रहा है। संचार क्रांति के नाते उनकी अलग पहचान है। सुखराम समाजसेवी थे।
उन्होंने कहा कि पंडित सुखराम का निधन 11 मई 2022 को 94 साल की उम्र में हुआ। 27 जुलाई 1957 को मंडी में उनका जन्म हुआ। उन्होंने बीए, एलएलबी की थी। 1962 में वह पहली बार विधायक बनकर आए। इसके बाद वह 1967, 1972, 1974, 1977, 1982, 1992 और 2003 में हिमाचल प्रदेश विधानसभा में विधायक बने। इसके अलावा 1985, 1991 और 1996 में वह लोकसभा के सदस्य भी बने। मुख्यमंत्री ने कहा कि पंडित सुखराम राजनीति में ऐसा चेहरा थे जोकि सीएम पद के कुर्सी के काफी करीब आ गए, लेकिन सीएम नहीं बन पाए। उन्होंने कहा कि 1993 की बात है जब वह केंद्र में मंत्री थे, विषय यह चला कि पंडित सुखराम को मुख्यमंत्री बनाया जाए। मंडी से 10 सीटें थी, जिसमें से 9 कांग्रेस की और एक निर्दलीय, वह भी कांग्रेस विचारधारा के ही थे, लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था। चर्चा के बावजूद भी वह सीएम नहीं बन पाए।
उन्होंने कहा कि हर एक राजनेता के राजनीतिक कैरियर में इस तरह के उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। पंडित सुखराम भी उन्हीं में से एक थे। रूप सिंह चौहान के निधन पर भी उन्होंने शोक व्यक्त किया उन्होंने कहा कि वह 1977 में रेणुका से विधायक बनकर आए और जन सूचना संपर्क राज्य मंत्री रहे। उनका जन्म सिरमौर के नोराधार में हुआ था। इसके अलावा मुख्यमंत्री ने पूर्व सदस्य मस्तराम के निधन पर भी शोक व्यक्त किया 75 साल की उम्र के बाद उनका देहांत हुआ। मंडी में उनका जन्म हुआ था और 2003 में वह विधायक बने थे। उन्होंने बीएससी और बीएड की थी।
इसके अलावा हिमुडा के वर्तमान उपाध्यक्ष के पद पर रहे प्रवीण शर्मा के निधन पर भी सदन में शोक व्यक्त किया गया। 64 साल की उम्र में उनका निधन हुआ 1998 में वह सदन के सदस्य बने युवा सेवा एवं खेल विभाग के राज्यमंत्री रहे। मुख्यमंत्री ने कहा कि वह खुले दिल वाले आदमी थे और लंबे समय से शुगर की बीमारी से जूझ रहे थे, लेकिन उसके बावजूद भी वह खाने पीने को लेकर किसी तरह का परहेज नहीं करते थेद्ध देहांत वाले दिन भी रात को वह दूध पीकर सो गए लेकिन किसे पता नहीं था कि वह अगले दिन उठ नहीं पाएंगे और जब अगले दिन उन्हें देखने के लिए उनके परिवार के सदस्य के तो वह है गुजर चुके थे। करीब 25 मिनट तक मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने सदन के चारों पूर्व सदस्यों को श्रद्धांजलि दी और उनके बारे में अपने विचार रखे।
वहीं विपक्ष के नेता मुकेश अग्निहोत्री ने शोकोद्गार प्रस्ताव में स्वयं को ओर अपने दल को शामिल करते हुए पर अपनी संवेदनाएं प्रकट की। उन्होंने कहा कि पंडित सुखराम उस समय इस सदन के सदस्य बन गए थे, जब वह पैदा भी नहीं हुए थे। 1962 में वह विधायक चुनकर आ गए थे। 8 बार एमएलए रहे, तीन बार लोकसभा सदस्य के रूप में भी उन्होंने चुनाव जीता। मुकेश ने कहा कि पंडित सुखराम ने जितनी बार भी चुनाव लड़ा वह जीते ही। उन्होंने कहा कि आज के दौर में एक चुनाव जीतना भी किसी नेता के लिए आसान नहीं है। केंद्र में मंत्री रहते हुए उन्होंने अपना सिक्का जमाया। राजनीति के चाणक्य के रूप में वह अपनी भूमिका अदा करते रहे। इसके अलावा उन्होंने रूप सिंह चौहान, मस्तराम और प्रवीण शर्मा के निधन पर भी अपनी संवेदना व्यक्त करते हुए अपने दल को शामिल किया।
वही शोकोद्गार प्रस्ताव में सदन के सदस्य महेंद्र सिंह, सुखविंद्र सिंह सुक्खू, सुरेश भारद्वाज, बलवीर, राकेश जम्वाल, हीरालाल ने भी अपनी श्रधंजलि दी। विक्रमादित्य सिंह ने कहा कि पंडित सुखराम ही एक ऐसे राजनेता थे, जो हिमाचल में तीसरा विकल्प खड़ा करने में सफल रहे। उनके पिता वीरभद्र सिंह के साथ उनका खास जुड़ाव रहा है। चाहे वह पारिवारिक हो भावनात्मक हो या किसी और रुप से भी। आज तक हिमाचल में दूसरा विकल्प खड़ा नहीं हो पाया है लेकिन सुखराम जी एक ऐसे व्यक्ति थे, जो अपने दम पर तीसरा विकल्प लेकर आए और इस तीसरे विकल्प के कई सदस्य आज हमारे बीच पक्ष और विपक्ष में है।
पंडित सुखराम के बेटे अनिल शर्मा भी बोले
पंडित सुखराम के बेटे अनिल शर्मा ने सदन में अंत में अपनी संवेदनाएं प्रकट की। उन्होंने कहा कि किसी के भी जाने के बाद खालीपन सा लगता है और जब कोई ऐसा इंसान चला जाए जो मार्गदर्शक आपका रहा है। देश और प्रदेश का रहा हो तो और भी ज्यादा खालीपन लगता है। उन्होंने कहा कि जब उनके पिताजी बीमार थे, तो उन्होंने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से उन्हें दिल्ली ले जाने के लिए चौपर की मांग की। मुख्यमंत्री ने भी दरियादिली दिखाते हुए तुरंत उन्हें चौपर से दिल्ली उपचार के लिए भेज दिया। उन्होंने कहा कि जब उनके पिता की पहली बार दिल्ली चुनाव लड़ कर गए तो वह भी उनके साथ गए थे और उनके पास उस समय एक मारुति 800 कार थी। जब उन्हें राष्ट्रपति भवन को शपथ के लिए फोन आया तो वह अपने पिताजी के साथ राष्ट्रपति भवन गए। यहां पर जाने के बाद उनके पिताजी ने उन्हें सूचित किया कि बेटा अब तू वापस चला जा यहां से सरकारी गाड़ी में ही आऊंगा। उन्होंने कहा कि उनके पिताजी अक्सर यही कहा करते थे, कि अपनी पावर का गलत इस्तेमाल कभी नहीं करो। जितना हो सके लोगों की मदद करो, ताकि लोग याद रखें। अनिल शर्मा ने कहा कि राजनीति में उनको केवल दो ही गुरु रहे हैं। एक पंडित सुखराम और वीरभद्र सिंह।
विधानसभा अध्यक्ष भी होंगे सम्मिलित
शोकोद्गार में विधानसभा अध्यक्ष विपिन सिंह परमार भी शामिल हुए। उन्होंने कहा कि अधिकतर सदस्य इस शोकोद्गार में शामिल हुए हैं। में भी अपने आप को शामिल करता हूं। उन्होंने कहा कि पंडित सुखराम का राजनीतिक जीवन बेहतर रहा है। 8 चुनाव लगातार जीते, तीन बार लोकसभा के सदस्य भी रहे। उन्होंने काम कर्म पर अपनी छाप बनाई। जिस समय पंडित सुखराम राजनीति में थे तो वह विद्यार्थी जीवन में थे और भारतीय जनता पार्टी में ऐसे में उस समय ऐसे व्यक्तियों को सुनने का काफी मन करता था। पंडित सुखराम ने पूरी दुनिया को एक मोबाइल से जोड़ा है।