नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने भारतीय वायुसेना के लिए फ्रांस से राफेल लड़ाकू विमान खरीदने के सौदे के मामले में दिसंबर, 2018 के अपने निर्णय पर पुनर्विचार के लिए दायर याचिकाएं बृहस्पतिवार को खारिज करते हुए कहा कि इनमे कोई दम नहीं है। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के एम जोसफ की पीठ ने इन याचिकाओं को खारिज करते हुए लड़ाकू विमानों के लिए फ्रांस की फर्म दसालट एविऐशन के साथ हुए समझौते में मोदी सरकार को क्लीन चिट देने का निर्णय दोहराया।
पूर्व केन्द्रीय मंत्रियों यशवंत सिन्हा और अरूण शौरी के साथ ही अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने इन याचिकाओं में न्यायालय से अनुरोध किया था कि वह 14 दिसंबर, 2018 के फैसले पर फिर से विचार करे। इस फैसले में न्यायालय ने कहा था कि 36 राफेल लड़ाकू विमान प्राह्रत करने के निर्णय लेने की प्रक्रिया पर संदेह करने की कोई वजह नहीं है। पीठ ने कहा, हम इन पुनर्विचार याचिकाओं को बगैर किसी मेरिट का पाते हैं। पुनर्विचार याचिकाएं खारिज होने का तात्पर्य राफेल सौदे के संबंध में मोदी सरकार को दूसरी बार क्लीन चिट देना है।
न्यायमूर्ति कौल ने फैसला सुनाते हुए कहा कि न्यायाधीश इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि आरोपों की रोविंग जांच का आदेश देना उचित नहीं है।
पीठ ने कहा कि पुनर्विचार याचिकाओं में राफेल लड़ाकू विमान सौदे के सिलसिले में प्राथमिकी दर्ज करने का अनुरोध किया गया है। पीठ ने कहा, हम नहीं समझते कि यह उचित कथन है। पीठ ने कहा, हम प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश देने पर विचार करना उचित नहीं पाते हैं। न्यायमूर्ति जोसफ, जिन्होंने अलग फैसला लिखा, ने कहा कि वह न्यायमूर्ति कौल के मुख्य निर्णय से सहमत हैं लेकिन इसके कुछ पहलुओं पर उन्होंने अपने कारण लिखे हैं।
शीर्ष अदालत ने 14 दिसंबर, 2018 को इस सौदे में कथित अनियमिततओं की जांच के लिए दायर याचिकाएं खारिज कर दी थीं।
शीर्ष अदालत ने पूर्व केन्द्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा और अरूण शौरी तथा अधिवक्ता प्रशांत भूषण की पुनर्विचार याचिकाओं पर 10 मई को सुनवाई पूरी की थी। इनके अलावा, अधिवक्ता विनीत ढांढा और आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने भी पुनर्विचार याचिका दायर की थी।
पीठ ने इन याचिकाओं पर सुनवाई पूरी करते हुए केन्द्र सरकार से इस सौदे से संबंधित कई तीखे सवाल भी पूछे थे। इनमें अंतर-सरकार समझौते में शासकीय गारंटी की छूट और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण का प्रावधान शामिल नहीं होना भी शामिल था। न्यायालय ने अपने पहले के फैसले का भी जिक्र किया जिसमे कहा गया था कि कि संज्ञेय अपराध होने की जानकारी सामने आने पर प्राथमिकी जरूरी है। अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने पीठ से कहा था कि पहली नजर में कोई मामला तो होना चाहिए अन्यथा जांच एजेन्सी आगे नहीं बढ़ सकती।