शहनाज़ भाटिया। अर्की
उपमंडल अर्की की ग्राम पंचायत दानोघाट में आयोजित होने वाले प्राचीन मेला के अवसर पर सूक्ष्म रूप से ही स्थानीय लोगों के आराध्य देव श्री कुरगण प्रकाश जी की विधिवत पूजा-अर्चना करके परंपराओं का निर्वहन किया गया, ताकि क्षेत्रवासियों पर देवता की कृपा सदैव बनी रहे।
यह मेला सैकड़ों वर्षों से दोनघाट में स्थानीय लोगों के आराध्य देव श्री कुरगण प्रकाश जी के सम्मान में आयोजित किया जाता है। इस दिन यहां पर कुरगण देवता जी के चार स्थानों कोलका, कराड़ाघाट, संघोई औऱ मांगू से ढोल-नगाड़े सहित चार रथ जात्रा के रूप में आते थे और उनके सम्मान में यहां पर देव जात्रा व मेला लगाया जाता है।
इस मेले का आयोजन पिछले कई वर्षों से दानोघाट और कोटली पंचायत मिलकर करवाती है। इस वर्ष भी कोरोना महामारी के चलते केवल देवता जी के मंदिर में पुजारी विधिवत रूप से पूजा करके सभी ग्रामवासियों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना की है।
ये है प्राचीन व ऐतिहासिक मेले का इतिहास
इस प्राचीन व ऐतिहासिक मेले के इतिहास के बारे में अधिक जानकारी देते हुए स्थानीय निवासी व देवता के कल्याना सन्तराम शर्मा ने बताया कि यह सैकड़ों वर्षों से देवजात्रा राजाओं के समय से आयोजित की जा रही है।
उन्होंने बताया कि सैकड़ों वर्ष पहले देव श्री कुरगण प्रकाश जी का रथ के साथ उनके गुर और श्रद्धालु डुमैहर में जात्रा में जा रहे थे। उस दिन ज्येष्ठ माह के 14 प्रविष्टे थे। जब रथ अर्की नगर से होते हुए गुजरा तो उस समय के तत्कालीन राजा को उनके सलाहकारों द्वारा भड़का दिया गया कि ये देव जातरू देवता के नाम पर ढोंग करते हैं। राजा ने सलाहकारों से कहा कि इन्हें डुमैहर से वापस आते हुए राजदरबार में बुलाकर इनकी परीक्षा ली जाए।
जब देव जातरू अगले दिन डुमैहर से वापस आ रहे थे तो उन्हें राजा की आज्ञा हुई कि उन्हें राजा के दरबार मे उपस्थित होना पड़ेगा। उनके अर्की पहुंचने से पहले ही राजदरबार में कंटीली झाड़ियां और बड़े-बड़े कड़ाहों में खौलता हुआ पानी रख दिया गया। जैसे ही देव जातरू वहां पहुंचे तो इस तरह का खौफनाक दृश्य देखकर देवता जी के गुर देवकला में आ गए और खौलते हुए पानी के कड़ाह में कूद गए, देखते ही देखते सब कुछ मिट्टी में परिवर्तित हो गया। तब देवकला में आए देव गुरुओं ने राजा को चेतावनी देते हुए कहा कि राजन अब और क्या परीक्षा लेना चाहते हो।
यह दृश्य देखकर राजा नतमस्तक होकर उनके श्रीचरणों में नाक रगड़ते हुए अपने किए की माफी मांगने लगा। उसके पश्चात दोनो पक्षों में समझौता हुआ कि राजा को हर वर्ष देवता जी के सम्मान में देवजात्रा का आयोजन करना होगा। कुछ दिनों बाद पुनः राजा के सलाहकारों ने राजा को सलाह दी कि क्यों न यह देवजात्रा अर्की राजमहल की जगह दानोघाट में आयोजित की जाए और उसका सारा खर्चा राजपरिवार वहन करेगा। उसके बाद राजपरिवार हर वर्ष इस मेले में स्वयं भी आता रहा और इसका सारा खर्चा भी देते रहे, परंतु जब देश आजाद हुआ तो राजाओं के राज भी चले गए
उसके बाद इस देवजात्रा को मंदिर के पुजारी व देव कल्याणे ही आयोजित करने लगे। इसके पश्चात पंचायतों ने भी इस मेले के आयोजन में अपनी सहभागिता देनी शुरू की और यह मेला जो सदियों से सभी की आस्था का केंद्र बना हुआ है और दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आकर देवता जी का आशीर्वाद भी प्राप्त करते हैं। हालांकि इस वर्ष भले ही कोरोना महामारी के चलते यह देवजात्रा अयोजित नहीं हो पाई है, परंतु लोगों की आस्था फिर भी देवता श्री कुरगण जी में वैसी ही है और सभी इस वर्ष भी सरकार और प्रशासन के दिशा निर्देशों का अनुपालन कर रहे हैं।