शैलेश सैनी। नाहन
देश और दुनिया के सामने कोरोना ने जानीय संकट खड़ा कर दिया है। मौजदा स्थिति को लेकर हाहाकार मचा हुआ है, तो वहीं कोविशील्ड के नाम पर देश में बनी रेमडेसिविर के निर्माण को लेकर सरकार और ड्रग कंट्रोलर जरनल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) की कार्यप्रणाली शक के दायरे में आती नजर आ रही है।
इसकी पुष्टि खुद-ब-खुद भी होती है। जब देश पर आपातकालीन स्थिति चली हुई है और आपात नियम लागू किए गए हैं तो ऐसी स्थिति में जीवन रक्षक मानी जा रही रेमडेसिविर के निर्माण पर सरकार व डीसीजीआई कायदे-कानून झाडऩे में लगा है। मार्केट में इस समय कोविडशील्ड को लेकर जो कालाबाजारी का धंधा पनप रहा है इसके लिए दवा निर्माता कंपनियां नहीं बल्कि डीसीजीआई को ज्यादा जिम्मेवार माना जा सकता है। वहीं दूसरी तरफ इस वैक्सीन को खरीदने के लिए लोग हर कीमत अदा करने को तैयार हैं। ऐसे में जब वैक्सीन बाजार उपलब्ध नहीं होगी तो कालाबाजारी होना निश्चित है।
सवाल तो यह उठता है कि जब फार्मा हब कहलाने वाले हिमाचल प्रदेश में इस दवा के निर्माण को लेकर अच्छे इंजेक्शन यूनिट लगे हुए हैं तो उन्हें इस दवा के निर्माण को लेकर अभी तक प्रमिशन ग्रांट क्यों नहीं की गई है।
जानकारी तो यह भी है कि इसके पीछे नई यूनिटस का हवाला दिया जा रहा है। तो सवाल यह भी उठता है कि इनमें से कुछ यूनिटस ऐसे हैं जिन्होंने रेमडेसिविर को एक्पोर्ट के लिए बनाया भी है। 11 अप्रैल को सरकार द्वारा एक्सपोर्ट किए जाने वाले इंजेक्शन के निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसके बाद इन यूनिटस में उत्पादन रुक गया था। यही वजह है कि हिमाचल प्रदेश के बद्दी स्थित हेल्थ बायोटेक पर इंजेक्शन के ब्लैक किए जाने को लेकर गंभीर आरोप लगे हैं।
हालांकि ब्लैक किया जा रहा था या नहीं यह सब अभी जांच के दायरे में है। मगर एक बात तो स्पष्ट हो जाती है कि जब यह यूनिट पहले से ही दवा का निर्माण कर रही थी तो उसे स्थानीय बाजार में बेचने को लेकर किस बात का प्रतिबंध और कैसे नियम? देश में आपात की स्थिति लगी है ऐसे में नियमों से ज्यादा जरूरी इंसानी जान बचाने का सबसे पहला कार्य होता है।
भारत सरकार की मंशा अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि वे लोगों की जान बचाने को ज्यादा महत्व देे रहे हैं या फिर इस दवा के निर्माण करने वाली कंपनियों पर नियमों का हवाला दे रहे हैं। सिरमौर जिले में भी सक्षम उद्योग हैं, जहां पर रेमडेसिविर वैक्सीन को बनाया जा सकता है। इनमें से कुछ को तो प्रमिशन भी मिली है। बावजूद इसके इनमें से कुछ को डीसीजीआई ने निर्माण की मंजूरी नहीं दी है।
बता दें कि पांवटा साहिब स्थिति हिथ्रो ड्रग्स के पास डोमेस्टिक सेल प्रमिशन है। सिपला और डा. रैडी को भी करीब पांच छह दिन पहले से प्रमिशन मिली है। यहां पर तो इंजेक्शन बने भी हैं। यहां बने इंजेक्शन प्रदेश के लोगों को ही लगाए गए हैं। वहीं कालाअंब स्थित निक्सी और प्रोटैक्ट को भी इस इंजेक्शन निर्माण के लिए चुना गया है। बाजवूद इसके अभी तक डीसीजीआई की तरफ से इन सक्षम उद्योगों को प्रमिशन नहीं मिली है।
जानकारी तो यह भी है कि महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों ने भी इस ड्रग्स के लिए हिमाचल के फार्मा यूनिट से डिमांड की है। अब सूत्रों की बात माने तो कुछ ऐसी कंपनियां भी हैं जो ऊपरी पहुंच ज्यादा रखती है और उन पर सरकार के वर्दहस्थ भी है। वे कंपनियां देश में बढ़ रही कोरोना स्थिति के अनुरूप रेमडेसिवर का निर्माण नहीं कर पा रही है।
बहरहाल केंद्र सरकार को आपात स्थिति को ध्यान में रखते हुए कायदे कानूनों पर सोफ्ट कार्नर रख इन हिमाचल की यूनिटस से कोविशील्ड वैक्सीन बनाने से लेकर जल्द से जल्द प्रमिशन देनी चाहिए। जबकि हिमाचल प्रदेश का ड्रग डिपार्टमेंट देश में अव्वल दर्जे का भी माना जाता है। ऐसे में अनुभवहीनता और लापरवाही बेमानी साबित होती है।
उधर, ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया के पीआरओ डॉ. सुनील कुलश्रेष्ठ का कहना है कि पॉलिसी बनाना सरकार का कार्य है। हमारा कार्य उस पॉलिसी के अनुरूप बनाए गए कायदे कानूनों को लागू करना है। उन्होंने माना कि कोविड शील्ड एक प्रभावशाली वैक्सीन है। डिमांड के अनुरूप इसके निर्माण में तेजी भी आनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार संभवतः इस विषय पर भी गंभीरतापूर्वक सोच रही है।