शैलेश सैनी। नाहन
सिरमौर जिले के प्रवेश द्वार कालाआंब के साथ लगते सढ़ोरा-कालाअंब रोड के पास झंडा गांव में महाकालेश्वर शिव मंदिर लोगों की प्रगाढ़ आस्था का प्रतीक है। इस मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। यहां पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु शीश नवाने पहुंचते हैं और अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
महाभारत काल से लेकर आज तक यह मंदिर प्रत्यक्ष रूप से पॉजिटिव एनर्जी का एक बहुत बड़ा स्रोत रहा है। शिव मंदिर गौशाला समिति के अध्यक्ष रमेश उर्फ बिट्टू भाई के अनुसार शिव मंदिर गौशाला समिति के द्वारा आज शिवरात्रि के उपलक्ष्य में मंदिर को दिव्य रूप में सजाया गया। समिति के अध्यक्ष रमेश उर्फ बिट्टू ने बताया कि सुबह प्राचीन दिव्य शिवलिंग का अभिषेक किया गया। उसके बाद हवन का आयोजन किया गया। इस हवन में क्षेत्र के कई लोगों ने पूर्णाहुति भी दी।
बड़ी बात तो यह है कि समिति के सदस्यों ने मेला स्थल से मंदिर तक वाहनों पर प्रतिबंध लगाया हुआ है जबकि बुजुर्ग व चल पाने में असमर्थ लोगों के लिए ट्रैक्टर और अन्य वाहनों का इंतजाम भी किया गया था। यही नहीं कोरोना वायरस को ध्यान में रखते हुए गौशाला शिव मंदिर समिति के सदस्य लोगों को मुंह पर मास्क वर्ड डिस्टेंस बनाने के लिए भी जागरूक कर रहे हैं।
मान्यता है कि महाभारत युद्ध के दौरान यहां पर पांडवों ने तपस्या की थी। महाकालेश्वर शिव मंदिर गौशाला समिति के सदस्य राम कुमार ने बताया कि यह मंदिर महाभारत काल का है।
1985 में तत्कालीन सरपंच के समय में गांव के लोगों ने जहां की यहां स्थापित शिवलिंग को यहां से निकालकर अन्य जगह रखा जाए। शिवलिंग निकालने का काम शुरू हुआ। कई फुट तक खुदाई करने के बाद भी शिवलिंग का तल नहीं मिला। खुदाई के दौरान शिवलिंग के चारों और गणेश जी व नंदी सहित कई मूर्तियां मिली। खुदाई के दौरान शिवलिंग से एक सांप लिपट गया। इसके बाद ग्रामीणों ने यहां से शिवलिंग अन्य जगह स्थानांतरित करने की बजाय मंदिर का जीर्णोद्धार किया।
2010 में इस मंदिर का पुन: निर्माण शुरू किया गया था। एक अन्य मान्यता भी है कि जब घटोत्कच और अहिलावती का बेटा बर्बरीक महाभारत युद्ध में भाग लेने चला आया तो कृष्ण भगवान ने यहां पर बर्बरीक की परीक्षा ली थी, तब श्री कृष्ण ने बर्बरीक से दान में उसका सिर मांग लिया। इसके बाद बर्बरीक ने महाभारत का युद्ध देखने की इच्छा जाहिर की तो भगवान श्री कृष्ण ने उसका सिर एक पेड़ पर रख दिया।
बताते हैं कि महाकालेश्वर मंदिर के पास आज भी वह बरगद का पेड़ खड़ा है। इस मंदिर के इतिहास से जुड़ी एक और भी मान्यता है की युद्ध के बाद पांडवों ने सतकुम्भा के पानी में स्नान कर हत्या के दोष को दूर किया था। महाकालेश्वर मंदिर से 3 किलोमीटर की दूरी पर सतकुम्भा है। यहां जमीन से पानी की 7 धाराएं निकलती हैं। महाभारत युद्ध के बाद पांडवों ने सतकुम्भा में स्नान कर हत्या के दोष को दूर किया था।