ज्वालामुखी /सचिन शर्मा
विश्व प्रसिद्ध शक्तिपीठ श्री ज्वालामुखी मंदिर में आषाढ़ मास शुल्क पक्ष में परंपरानुसार गुप्त नवरात्र के दौरान मां ज्वाला का प्रकटोत्सव मनाया जा रहा है। श्रद्धालु बडी श्रद्धा से मां ज्वाला को भोग प्रसाद भेंट कर रहे हैं। मां ज्वाला के प्रकटोत्सव के पावन दिवस पर मंदिर को 100 क्विंटल फूलो से सजाया गया है रंग बिरंगी लाईटें भी लगाई गई है ताकि मां ज्वाला का दरबार कि भव्यता और ज्यादा दिव्य रुप में दिखाई दे। इसके अलावा मां ज्वाला के प्रकटोत्सव पर मंदिर में मैया को विभिन्न प्रकार के 56 भोग लगाए जाऐगें।
मंदिर अधिकारी विचित्र सिंह ठाकुर ने बताया कि श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए विशेष प्रबंध किए गए हैं मंदिर को मां ज्वाला के प्रकट उत्सव के उपलक्ष में फूलों और रंग बिरंगी लाइटों से सजाया गया है मां को भिन्न भिन्न प्रकार के भोग लगाए जा रहे हैं परंपरा अनुसार मां ज्वाला सब को सद्बुद्धि प्रदान करें विश्व का कल्याण हो यही मां से प्रार्थना है।
51 शक्तिपीठों में सर्वोपरि है मां ज्वाला का स्थान
हिमाचल के विश्वप्रसिद्ध शक्तिपीठ श्री ज्वालामुखी मंदिर सैकड़ों वर्षो से साक्षात रुप में चमत्कारी ज्योतियों के रुप में मां ज्वाला दर्शन देती हैं। यह शक्तिपीठ अपने आप में इसलिए अनूठा हैं क्योंकि यहां पर मूर्ति पूजा नही होती। मां ज्वाला के मंदिर में यह साक्षात ज्योतियां अपने ओज से वर्षो से प्रकाशमान हो रही हैं। देश हो या विदेश मां ज्वाला देवी के दर्शनो के लिए वर्षों से करोडों श्रद्धालु इस स्थान पर आज के वैज्ञानिक युग में भी मां के चमत्कार को साक्षात देखकर नतमस्तक होते हैं।
मां ज्वाला देवी के मुख्य मंदिर के गर्भ गृह में 7 अखंड ज्योतियों विराजमान है जिन्हे अलग-1 नामों से पुकारा जाता है। ज्योतियों में सर्वप्रथम मां ज्वाला महाकाली के रुप में प्रकट हैं। चंडी, हिंगलाज, विध्यवासिनी,अन्नपूर्णा,महालक्ष्मी, महासरस्वती के रुप में मंदिर में यह ज्योतियां साक्षात भक्तों को दर्शन देती है। 51 शक्तिपीठों में मां ज्वाला को सर्वोपरि माना गया है।
मां ज्वाला का इतिहास
कांगड़ा घाटी में स्थित श्री ज्वालामुखी शक्तिपीठ की मान्यता ५१ शक्तिपीठों में सर्वोपरि मानी गई है। इन पीठों में यही एक ऐसा शक्तिपीठ है जहां मां के दर्शन साक्षात ज्योतियों के रुप में होतें हैं।
शिव महापुराण में भी इस शक्तिपीठ का वर्णन आता है। जब भगवान शिव माता सती को पूरे ब्रहांड़ के घूमने लगे तब सती की जिव्हा इस स्थान पर गिरी थी जिससे यहां ज्वाला ज्योति रुप में यहां दर्शन देती हैं।
एक अन्य दंत कथा के अनुसार जब माता ज्वाला प्रकट हुई तब एक ग्वालो को सबसे पहले पहाडी पर ज्योति के दिव्य दर्शन हुए। राजा भूमिचन्द्र ने मंदिर के भवन को बनवाया ।
यह भी धारणा है कि पांडव ज्वालामुखी में आए थे कांगड़ा का एक प्रचलित भजन भी इस का गवाह बनता है..पंजा पंजा पांडवां मैया तेरा भवन बनाया, अर्जुन चंवर झुलाया मेरी माता…
अकबर भी हुआ था मां ज्वाला का मुरीद
राजा अकबर भी मां ज्वाला की परिक्षा लेने के लिए मां के दरबार में पंहुचा था। उसने ज्योतियों के बुझाने के लिए अकबर नहर का निर्माण करवाया लेकिन मां के चमत्कार से ज्योतियां नही बुझ पाई। तब राजा अकबर एक अन्य प्रचलित भेंट के अनुसार नंगे नंगे पैरी माता अकबर आया, सोने दा छत्र चढ़ाया मेरी माता प्रचलित है। राजा अकबर को अंहकार हुआ था कि उसने सवा मन सोने का छत्र हिंदू मंदिर में चढ़ाया था मां ज्वाला ने इस छत्र को अस्वीकार कर खंडित कर दिया था। आज भी दर्शनार्थ अकबर का छत्र मंदिर में मौजूद है।
ज्वालाजी मंदिर मंडप शैली निर्मित है।
मां ज्वालादेवी का मंदिर मंडप शैली का है मुख्यमंदिर के बाहरी छत्र पर सोने का पालिश चढ़ाया गया है। इसे महाराजा रणजीत सिंह ने अपने शासनकाल में चढवाया था। उनके पौत्र कुंवर नौनिहाल सिंह ने मंदिर के मुख्य दरवाजों पर चांदी के पतरे चढवाऐ थे जो कि आज भी दर्शनीय हैं।
साल में दो बार होतें है ‘गुप्त नवरात्र
जनवरी- फरवरी माघ शुक्ल प्रतिपदा में मां ज्वाला देवी के मंदिर में गुप्त नवरात्र का आयोजन विश्व कल्याण के लिए परंपरानुसार किया जाता है। जून-जुलाई आषाढ़ शुक्ल में मां ज्वाला का प्रकटोत्सव मनाया जाता है। कहां जाता है मां ज्वाला इसी समय यहां प्रकट हुई थी।
दर्शनीय स्थल
टेढा मंदिर, अबिंकेश्वर महादेव, अर्जुननागा मंदिर, गोरखडिब्बी, लाल शिवालय, राधाकृष्ण मंदिर, तारा देवी, भैरव मंदिर, प्राचीन गणेश मंदिर, अष्टभुजी मंदिर ज्वालामुखी मे दर्शनीय स्थल हैं।