रामसेतु के लिए किया था सरकार का विरोध
पराशरण : उम्र के नौ दशक पार करने के बावजूद पूरी ऊर्जा से अयोध्या मामले में अकाट्य दलीलें रखने वाले के. पराशरण को भारतीय वकालत का भीष्म पितामह यूं ही नहीं कहा जाता।
अयोध्या मामले में रामलला विराजमान की ओर से पैरवी करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता के. पराशरण ने शनिवार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राहत की सांस ली होगी, जिन्होंने हाल ही में कहा था कि उनकी आखिरी ख्वाहिश है कि उनके जीते जी रामलला कानूनी तौर पर विराजमान हो जाएं।
सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त में जब अयोध्या मामले की रोजाना सुनवाई का फैसला किया तो विरोधी पक्ष के वकीलों ने कहा था कि उम्र को देखते हुए उनके लिए यह मुश्किल होगा, लेकिन 92 साल के पराशरण ने 40 दिन तक चली सुनवाई में पूरी शिद्दत से दलीलें पेश कीं। न्यायालय में पराशरण को बैठकर दलील पेश करने की सुविधा भी दी गई, लेकिन उन्होंने यह कहकर इनकार कर दिया कि वह भारतीय वकालत की परंपरा का पालन करेंगे।
रामलला विराजमान से पहले सबरीमाला मामले में भगवान अयप्पा के वकील रहे पराशरण को भारतीय इतिहास, वेद पुराण और धर्म के साथ ही संविधान का व्यापक ज्ञान है और इसकी बानगी न्यायालय में भी देखने को मिली। उन्होंने स्कंध पुराण के श्लोकों का जिक्र करके राम मंदिर का अस्तित्व साबित करने की कोशिश की।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले की बड़ी बातें
- विवादित जमीन रामलला की, सुन्नी पक्ष को कहीं और जमीन।
- हाईकोर्ट का फैसला तार्किक नहीं।
- 1856 से पहले अंदरूनी हिस्से में हिंदू भी पूजा करते थे।
- खाली जमीन पर नहीं बनी थी मस्जिद।
- अयोध्या में राम के जन्मस्थान के दावे का विरोध नहीं।
- मस्जिद कब बनी, इससे फर्क नहीं।
- निर्मोही अखाड़े का दावा खारिज।