रमेश सिद्धू : स्थानीय संपादक
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस यानी आधी आबादी की पूरी कहानी यानी स्त्रियों के त्याग, उनके संघर्ष, उनके मूल्यों और उनके समर्पण को जश्न के रूप में मनाने का दिन। हालांकि सशक्तिकरण के नाम पर एक दिन विशेष को महिला दिवस के रूप में मनाना आज के दौर में थोड़ा अजीब भी लगता है। कई क्षेत्रों में पुरुषों से ज्यादा सशक्त हो चुकी महिलाओं के सशक्तिकरण की बात करना उनकी क्षमताओं को स्वीकार न करने जैसा है। हर क्षेत्र में पुरुषों के आधिपत्य को चुनौती देकर आगे बढ़ रही महिलाओं को अब इस प्रकार की सहानुभूति दर्शाते स्लोगन उनकी उपलब्धियों पर सवाल उठाते प्रतीत होते हैं मानो कहीं न कहीं हम आज भी पुरुष सत्ता के चश्मे से देखते हुए महिलाओं की सफलता को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। आज की नारी न तो महज रसोई तक सीमित है, न ही भोग्या है।
प्रतिस्पर्धा के दौर में महिलाओं को भी उतना ही खटना और खपना पड़ता है जितना पुरुषों को। ऑफिस के साथ घर की दोहरी जिम्मेदारी उठाते हुए देखें तो पुरुषों से दो कदम आगे ही नजर आएंगी। लेकिन हमारी मानसिकता है कि बदलती ही नहीं। क्यों नहीं मान लेते कि पुरुष प्रधान समाज अब गुजरे जमाने की बात हो गई है। आधी आबादी का पूरा सच ये है कि अब महिलाएं मजबूर नहीं मजबूत हैं जो हर क्षेत्र में पुरुष सत्ता को चुनौती नहीं दे रहीं, बल्कि पुरुषों के वर्चस्व वाले क्षेत्रों में भी बुलंद हौसलों के दम पर ऊंची उड़ान भर रही हैं। इसके लिए जब भी मौका मिला है, इन्होंने साबित करके दिखाया है।
हालांकि नारी को कमतर आंकने की ये जंग आज की नहीं सदियों से चली आ रही है। कभी नारी के लिए शास्त्र व शस्त्र सीखना निषेध था। महारानी लक्ष्मीबाई ने शस्त्र चलाने भी सीखे और अंग्रेजों को शस्त्र चलाकर भी दिखाए। आज भी शहरी महिलाएं हों या ग्रामीण, कामकाजी महिला हो या गृहिणी, सभी को अपने जीवन में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। लेकिन जबरदस्त जज्बे और जीवट वाली आज की नारी किसी से भी हारी नहीं बल्कि सब पे भारी ही नजर आती है।
इस वर्ष महिला दिवस का थीम है ‘जेंडर इक्वैलिटी टुडे फॉर ए सस्टेनेबल टुमारो’ यानी ‘एक स्थायी कल के लिए लैंगिक समानता’ रखी गई है। महिलाओं केे लिए विशेष सम्मान का प्रतीक बन चुके अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर हिमाचल दस्तक का आज का विशेषांक समर्पित है प्रदेश की नारी शक्ति के लिए।
आज पाठकों को हर पन्ने पर मौका मिलेगा रूबरू होने का कुछ ऐसी महिलाओं से जो अपने-अपने क्षेत्र का मुआजिज हस्ताक्षर बन चुकी हैं। जो सामाजिक तानों व चुनौतियों को मात देकर समाज के लिए नजीर बन गई हैं। कुछ अपनों का सहारा बनीं तो कुछ ने घर से बाहर निकलकर बेसहाराओं के आंसू पोंछे। किसी ने मुफलिसी को मात देकर सफलता की नई इबारत लिख डाली, तो कोई लीक से हटकर काम करके सुर्खियों में है। खास बात यह कि इनके खुद के जीवन में जितना भी संघर्ष रहा हो, लेकिन आज इनकी जिंदगी हर किसी के लिए प्रेरणादायी है।