पुनीत वर्मा। सोलन
प्रदेश में होने वाले चुनाव का समय जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है। सत्ताधारी भाजपा के भीतर नेताओं के गुटों में शह और मात का खेल भी तेज हो गया है। खुद को पार्टी विद डिफरेंस कहने वाली भाजपा में कई जगह अब गुटबाजी साफ देखने को मिल रही है। खासकर सोलन भाजपा मंडल में सब कुछ ठीक नहीं है। यहां काफी कुछ ऐसा चल रहा है जिससे पार्टी में बिखराव और गुटबाजी हावी है। इस विस क्षेत्र में कहीं इस बात की चर्चा है की बड़े नेताओं में तालमेल का अभाव है तो कहीं आम कार्यकर्ता गुटबाजी के चलते आहत है। पार्टी के भीतर गुटबाजी इस कदर हावी है की आगामी चुनाव को लेकर टिकट के दावेदार ज्यादा और पार्टी के प्रति निष्ठा रखने वाले लोग कम नजर आ रहे है। अधिक दावेदारों के कारण कार्यकर्ता इतना हताश है कि समझ ही नहीं पा रहा किसके साथ चलें किसके नहीं।
आम कार्यकर्ता ही नहीं पार्टी के कई वरिष्ठ कार्यकर्ता व पदाधिकारी भी अब इससे परेशान हो रहे है। टिकट का हर दावेदार जनता के बीच अलग-अलग गुटों में घूम रहा है। पार्टी के प्रति निष्ठा रखने वाले लोग इससे खफा है। लेकिन पार्टी के भीतर इन परेशान लोगों को समझने वाला भी कोई नजर नहीं आ रहा। टिकट को लेकर चल रही खींचतान के कारण कार्यकर्ता सबसे ज्यादा असमंजस में है। दावेदार अपनी-अपनी डफली अपना राग अलाप रहे है। जिसमें कार्यकर्ता पिस रहा है। हालत यह बन गए है कि गुटबाजी के चलते बिखरी सोलन भाजपा को समेटने वाले कदावर की जरूरत है।
चर्चा अब आम कार्यकर्ताओं में ही नहीं बल्कि आम जनता में भी हो रही की पार्टी को एकजुट होने की जरूरत है। पिछले दो चुनाव लगातार हारी है। ऐसे में दोनों हार से सबक लेना चाहिए। बहरहाल, इसी वर्ष चुनाव है। ऐसे में सोलन विधानसभा क्षेत्र पर गौर करें तो फिलवक्त कमजोर स्थिति में नजर आ रहा है। यदि चुनाव से पहले गुटबाजी और निजी स्वार्थ किनारे रख संपूर्ण नेतृत्व एकजुट नहीं होता है तो सत्ता में वापसी करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।
अलग-अलग मंचो से हो रहा शक्ति प्रदर्शन…
टिकट के चाहवान आए दिन अलग-अलग मंचों से शक्ति प्रदर्शन कर रहे है। बिरले ही किसी मंच पर एक साथ नजर आते है। मजेेदार यह कि हर दावेदार अपने-अपने राजनीतिक आका का टैग लेकर लोगों के बीच जा रहा है। बैठकों में भी गुटबाजी के किस्से आम है। बुद्धिजीवी तबके का कहना है की सोलन मंडल भाजपा नेतृत्व विहिन है। यही वजह है जो पिछले चुनाव गुटबाजी से हारे है।
हार की तरफ न धकेल दें गुटबाजी…
यहां पार्टी एक दो नहीं बल्कि कई गुटों में बंटी है। इन गुटों में शह और मात का खेल तेजी से चल रहा है। लेकिन इनको एकजुट करने का आमादा रखने वाला एक भी चेहरा दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा है। कभी सोलन भाजपा को एकजुट रखने में बिंदल का बड़ा रोल रहा है। लेकिन नाहन जाने के बाद सोलन भाजपा ऐसे बिखरी की आज तक इक_ी नहीं हो पाई। नतीजतन पिछले दो चुनाव लगातार हार गई। अबके भी स्थिति डांवाडोल नजर आ रही है। सियासी गलियों में चर्चा है कि सोलन भाजपा की यह गुटबाजी पार्टी को तीसरी दफा भी हार की तरफ न धकेल दें।
आप दे रहा तख्ता पलट की रणनीति पर जोर…
प्रदेश में होने वाले चुनाव में अब लड़ाई भाजपा कांग्रेस की ही नहीं रही। आम आदमी पार्टी ने भी तख्ता पलट की रणनीति बनानी शुरू कर दी है। हालांकि सोलन विस क्षेत्र में आम आदमी पार्टी ने रफ्तार नहीं पकड़ी है। लेकिन इक्का दुक्का कांग्रेसी जरूर टूट कर आप पार्टी में शामिल हुए है। यदि सोलन भाजपा पुराने लोगों और वर्तमान कार्यकर्ताओं को साथ लेकर चलने में असमर्थ रही तो कांग्रेस इसका फिर लाभ उठाएगी साथ ही आम आदमी पार्टी भी पीछे नहीं रहेगी।
निगम में हार भी बिखराव का नतीजा…
नगर निगम के चुनाव में भाजपा को मिली हार भी बिखराव का ही नतीजा है। सात भाजपा समर्थित उम्मीदवार ही जीत हासिल कर पाए। यहां भी तालमेल का अभाव है। पार्टी की बैठकों में पार्षद कम ही नजर आते है। चर्चा यह भी है की पार्टी में पुराने कार्यकर्ताओं को दरकिनार किया जा रहा है और नए लोगों को तरजीह दी जा रही है।